बुधवार, जून 24, 2020

मानव जीवन के शारीरिक अवनति का रोकता आवंला


निरोगता और प्रतिरोधक क्षमता क्षमता युक्त आंवला 
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय आयुर्वेद ग्रंथों में वृक्षों तथा पौधों का मानव जीवन की रक्षा और संक्रमण मुक्त करने का महत्व पूर्ण व्याख्यान किया गया है। महर्षियों तथा वैज्ञानिकों ने औषधीय गुणों को इंसान के जीवन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देव वैद्य भगवान् सूर्य की भार्या संज्ञा के पुत्र अश्विनी कुमार द्वारा उत्पन्न उत्पन्न वृक्ष आवंला का प्रयोग क्षय रोग नाशक, मानसिक, शारीरिक क्षमताओं को वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वेदों पुराणों और आयुर्वेद ग्रंथों और प्राचीन काल से  ऋषि मुनियों ने आवला को औषधीय रूप में प्रयोग किया तथा आंवले का धार्मिक रूप माना गया है। आंवले का एक वृक्ष लगाता है उसे एक राजसूय यज्ञ का फल मिलता है और महिला कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन करती है उन्हें जीवन पर्यन्त सौभाग्यशाली और मानव जीवन निरोगता प्राप्त करता है।अक्षय नवमी के दिन जो भी व्यक्ति आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करता है, उसकी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है एंव दीर्घायु  होते है।आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राहमणों को मीठा भोजन कराकर दान दिया जाय तो उस जातक की अनेक समस्यायें दूर होती तथा कार्यों में सफलता होती है साथ ही बुध ग्रह की पीड़ा से मुक्त और शान्ति  मिलता है। बुध ग्रह पीडि़त हो उसे शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को स्नान जल में- आंवला, शहद, गोरोचन, स्वर्ण, हरड़, बहेड़ा, गोमय एंव अक्षत डालकर निरन्तर 15 बुधवार तक स्नान करना चाहिए जिससे उस जातक का बुध ग्रह शुभ फल देने लगता है। इन सभी चीजों को एक कपड़े में बांधकर पोटली बना लें। उपरोक्त सामग्री की मात्रा दो-दो चम्मच पर्याप्त है। पोटली को स्नान करने वाले जल में 10 मिनट के लिये रखें। एक पोटली 7 दिनों तक प्रयोग कर सकते है।शुक्र ग्रह पीडि़त होकर उन्हे अशुभ फल दे रहा है। वे लोग शुक्र के अशुभ फल से बचाव हेतु शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को हरड़, इलायची, बहेड़ा, आंवला, केसर, मेनसिल और एक सफेद फूल युक्त जल से स्नान करें तो लाभ मिलेगा। इन सभी पदार्थों को एक कपड़े में बाधकर पोटली बना लें। उपरोक्त सामग्री की मात्रा दो-दो चम्मच पर्याप्त रहेगी। पोटली को स्नान के जल में 10 मिनट के लिये रखें। एक पोटली को एक सप्ताह तक प्रयोग में ला सकते है।वास्तुशास्त्र के अनुसार आंवले का वृक्ष घर में लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ माना जाता है। पूर्व की दिशा में बड़े वृक्षों को आंवले को इस दिशा में लगाने से सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है।
आवंला को घर की उत्तर दिशा में भी लगाया जा सकता है। जिन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है या फिर स्मरण शक्ति कमजोर है, उनकी पढ़ने वाली पुस्तकों में आंवले की हरी पत्तियों को पीले कपड़े में बांधकर रखने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।पीलिया रोग में एक चम्मच आंवले के पाउडर में दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेंवन करने से लाभ मिलता है।  नेत्र ज्योति कम है वे लोग एक चम्मच आंवले के चूर्ण में दो चम्मच शहद अथवा शुद्ध देशी घी मिलाकर दिन में दो बार सेंवन करने से नेत्र ज्योति में बढ़ती है एंव इन्द्रियों को शक्ति प्रदान होती है।गठिया रोग वाले जातक 20 ग्राम आंवले का चूर्ण तथा 25 ग्राम गुड़ लेकर 500 मिलीलीटर जल में डालकर पकायें। जब जल आधा रह जाये तब इसे छानकर ठण्डा कर लें। इस काढ़े को दिन में दो बार सेंवन करें।  वैवस्वत मनु के पुत्र सोन प्रदेश के राजा शार्यति की पुत्री सुकन्या का वरण महर्षि भृगुनंदन  ऋषि च्यवन के साथ होने के पश्चात  सुकन्या द्वारा ऋषि च्यवन के तपस्या के कारण शरीर जर्जर को युवा अवस्था में करने के लिए देव वैद्य अश्विनी कुमार को आह्वान किया गया था।  सुकन्या के आह्वान पर अश्विनी कुमार द्वारा च्यवन ऋषि के आश्रम में आ कर  आवंले से युक्त औषधि का निर्माण कर ऋषि च्यवन के जर्जर शरीर को युवा अवस्था में ला कर सुकन्या की इच्छा की पूर्ति की गई थी। उस औषधि का नाम कारण आर्युवेद शास्त्र में च्यवनप्रास के नाम से विख्यात है। चरक संहिता, 2 री शताब्दी ई. पू. , अथर्ववेद में च्यवनप्रास और आवंला की महत्व बताया है। ऋषि भारद्वाज ने इंद्र के क्षय रोग से मुक्ति करने के लिए आवंलाप्रास का निर्माण किया था जिसे इंद्रप्रास कहा गया है।
विश्व में पादप सम्राज्य के मगोलियोफाइटा विभाग में रिविस जाति में आर युवा क्रिस्पा उप जाति का आवंला है। यह 25 फीट लंबा झारीय पौधा है। भारत, यूरोप, अफ्रीका, हिमालीय क्षेत्र, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन में खेती और आवंला पाया जाता है। आवंला को अमृता, अमृत फल, आमलकी, पंचरस, ऐब्लिक, मैरीबलान, इंडियन गूजबेरी, फाइलमबस एबिलिका, नेल्ली और गूजबेरी के नाम से ख्याति प्राप्त है। सनातन धर्म में आवंला भगवान् विष्णु और सूर्य का प्रिय वृक्ष और देव वैद्य अश्विनी कुमार का औषधीय वृक्ष है। शास्त्रों के अनुसार आवंला वृक्ष की जड़ और छाया में कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को शयन, भोजन करने, पानी पीने, और चिंतन करने पर व्यक्ति को संक्रमण से मुक्ति मिलती हैं और मानव जीवन का संरक्षण होता है।

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