मंगलवार, जून 23, 2020

गुप्त नवरात्र : प्रकृति और पुरुष का आध्यात्मिक

: प्रकृति और पुरुष का आराध्या शक्ति 
सत्येन्द्र कुमार पाठक
विश्व वांग्मय पौराणिक ग्रंथों में प्रकृति और पुरुष का आराध्या शक्ति को नवरात्र में उपासना की जाती है। भारतीय ग्रंथों में वर्ष का माघ और आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तिथि तक माघीय एवं आसाढ़ नवरात्र तथा  चैत्र मास के वासंती और आश्विन मास में शारदीय नवरात्र में शक्ति की उपासना की परंपरा कायम है। शक्ति की उपासना भगवान् शिव ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ कर सृष्टि का प्रारंभ की जिसे गुप्त नवरात्रि के नाम से ख्याति दिलाए। इस आसाढ़ नवरात्रि को वाममार्ग नवरात्र कहा गया है। गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना कर ब्रहमहर्षी विश्वामित्र  अद्भुत शक्ति प्राप्त किए वहीं लंका पति रावण और मेघनाथ ने अतुलनीय शक्ति प्राप्त की। दैत्य गुरु शुक्राचार्य , महर्षि श्रृंगी द्वारा गुप्त नवरात्रि का रूप किकट , मगध , कारुष प्रदेश , बंग प्रदेश में यंत्र, मंत्र और तंत्र की सिद्धि के लिए प्रसिद्ध है। मानव अपनी आध्यात्म और मानसिक शक्तियों को प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र करते है। देवी भागवत में 108 , देवी गीता में 72 तथा देवी पुराण में 51 शक्ति स्थल की चर्चा कर शक्ति पीठ का महत्व दिया है। शक्ति पीठों में शाक्त धर्म के अनुयाई रह कर शक्ति उपासना और आराधना का रूप देते रहे है। श्रृंगी ऋषि ने मगध साम्राज्य के क्षेत्र में गुप्त नवरात्रि का संदेश फैलाया । वर्तमान में नवादा जिले के एक पर्वत का नाम श्रृंग पर्वत है वहीं मार्कण्डेय ने गया का भष्म गिरि पर्वत पर मां मंगला है। सतयुग में संपूर्ण संसार को नष्ट करने वाला तूफान आया था जिससे प्राणियों के जीवन पर संकट को समाप्त करने के लिए भगवान् विष्णु द्वारा सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर पर शक्ति को प्रसन्न करने के लिए तप करने के पश्चात श्री विद्या ने सरोवर से निकल कर पीतांबरा के रूप में दर्शन देकर विध्वंशकारी उत्पात से बचाई है। इन महाशक्ति को बांग्ला माता के रूप में ख्याति मिली है। इन्हीं महा विद्या के नाम पर बांग्ला प्रदेश पड़ा था । बंग्ला माता वाणी, विद्या और गति को अनुशासित करती है।
 बांग्ला प्रदेश 100 योजन वर्ग क्षेत्र में वर्तमान बंगाल राज्य, बांग्ला देश और असम राज्य है जिसमें प्रमुख असम के नीलगिरी पर्वत पर माता कामाख्या शक्ति पीठ , बांग्ला देश के रीक्ष पर्वत से प्रवाहित करातोया नदी तट पर माता सती अर्पणा रूप में तथा भगवान् शिव वामन भैरव  खुलना के जैशोर में यशोरेश्चरी शक्ति पीठ एवं चंद्र भैरव , चटगांव के चंद्रशेखर पर्वत भवानी शक्ति पीठ और चंद्रशेखर भैरव, सुनंदा नदी के किनारे सुनंदा शक्ति पीठ एवं त्र्यंबक भैरव रूप में शक्ति पीठ, बंगाल राज्य के क्षेत्रों में हुगली नदी के किनारे कालीघाट स्थित काली शक्ति पीठ है। यहां सती देह के दाहिने पैर की चार उंगलियां का पतन होने से कालिका शक्ति और नकुलिश भैरव है। गंगा तट पर दक्षिणेश्वर काली है। वर्धमान के क्षीर ग्राम में सती के दाएं पैर का अंगुठा पतन से धुत धात्री शक्ति पीठ एवम् क्षिरकंटक भैरव, सिलीगुड़ी के तीस्ता नदी के तट पर देवी देह का वाम चरण का पतन होने पर भ्रामरी शक्ति पीठ और ईश्वर भैरव, हावड़ा के केतु ग्राम में देवी का वाम बाहु के पतन से बहुला शक्ति पीठ एवं भिरुक भैरव, ओंडाल के बकेश्चर नाले के किनारे अष्टावक्र ऋषि आश्रम के समीप देवी देह का मन पतन से महिषा मर्दनी शक्ति पीठ एवं वक्त्रानाथ भैरव , बोलपुर के नलाहटी पर उदर नली का पतन से कालिका पीठ और योगीश भैरव का उत्पति हुई थी। लबापुर में फुल्लरा शक्ति पीठ, विष्वेश भैरव, लाल बाग के समीप गंगा नदी के किनारे विमला शक्ति पीठ और समवर्त भैरव, मिदनापुर के ताम्र लुक रूपनारायण पर्वत के किनारे कपालिनी शक्ति पीठ और सर्वानंद भैरव विराजमान है। बिहार के शक्ति पीठ में गया का मंगला गौरी, सहरसा का उग्रतारा मंदिर, समस्तीपुर का जयमंगला मंदिर, पटना का पटन देवी मंदिर,  सासाराम के तारा चंडी मंदिर, कैमूर का मुंडेश्वरी, भालुनी का यक्षणी, नवादा का चामुंडा , मुजफ्फरपुर जिले के कटरा का चामुंडा, गोपालगंज का थावे मंदिर शक्ति पीठ के रूप में ख्याति मिली है वहीं शाक्त धर्म द्वारा अरवल जिले के करपी का जगदंबा स्थान, जहानाबाद जिले का धराउत का काली मंदिर, चारुई का काली स्थान गया जिले के बेलागंज का काली स्थान विभिक्षुनी भवानी प्रसिद्ध है। हिमाचल प्रदेश राज्य का कांगड़ा के काली धर पर्वत पर ज्वालामुखी शक्ति पीठ में सिद्धिदा शक्ति और उन्मत भैरव विराजमान है। नेपाल का गंडक नदी के उद्गम स्थल पर गंडकी शक्ति पीठ और चक्रपाणि भैरव , बागमती नदी के किनारे काठमांडू का पशुपति नाथ मंदिर के समीप माता गुहेशवरी महामाया शक्ति पीठ और कपाल भैरव, पाकिस्तान के बलूचिस्तान का हिंगोस नदी के किनारे हिंगलाज गुफा में कोत्तरि शक्ति और भिमालोचन भैरव हिंगुला शक्ति पीठ नाम से ख्याति प्राप्त है। श्री लंका में इन्द्राक्षी शक्ति एवं रक्षेश्चर भैरव लंका शक्ति पीठ में है । झारखंड के देवघर में जय दुर्गा शक्ति और वैद्यनाथ भैरव के रूप में चिताभूमि शक्तिपीठ के रूप में स्थापित है।

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