सत्येन्द्र कुमार पाठक
धार्मिक और वैज्ञानिक विवेचन में ग्रहण आकाशीय चमत्कृत का अनुपम दृश्य है। विश्व में ग्रहों की घटना भारतीय ऋषियों को पुरातन काल से ज्ञात रही है। महर्षि अत्रि ग्रह, ग्रहण ज्ञान के प्रथम ज्ञाता हुए है। ऋगवेद के 5/40/5,6,79 में महर्षि अत्रि ने सूर्य पर ग्रहण पर चमत्कारी वर्णन किया है। उन्होंने सुर्य ग्रहण पर कहा है कि है सूर्य! असुर राहु ने आप पर आक्रमण कर अंधकार से आप को ढक दिया उससे मानव, जीव, जंतु आप के रूप को देख नहीं पाए और अपने कार्य क्षेत्र में ठप हो गए है। इन्द्र ने अत्रि की सहायता से राहु की माया से सूर्य की रक्षा की थी। अत्रि ग्रंथ के अनुसार ग्रहण के प्रथम आचार्य अत्रि, मध्ययुगीन ज्योतिषविद भास्कराचार्य ने सूर्यग्रहण का विवेचन कर ग्रहण काल में जाप, दान हवन,श्राद्ध आदि का महत्व बताया है। पाश्चात्य खगोल शास्त्रियों ने आकाशीय तेजस्वी ज्योतिषीय पिंडों के सामने जब कोई अप्रकाशित अपारदर्शक पदार्थ आ जाता है तब उस अपारदर्शक पदार्थ भाग के कारण छिप जाता है तथा दूसरे परवालो के लिए छाया बन जाती है। यही छाया उपराग ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी के उपग्रह चंद्रमा अपारदर्शक एवं अप्रकाशित पिंड है। अंडे की आकर वाला चंद्रमा अपने भ्रमण पथ पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करता हुआ पृथ्वी की परिक्रमा करते है। चंद्रमा की अपने कक्ष की एक परिक्रमा 27 दिन 7 घंटे,43 मिनट 12 सेकंड में होती है। अपने भ्रमण पथ पर चलते हुए चंद्रमा अमावस्या को सूर्य और पृथ्वी के बीच आते है और कभी कभी सूर्य के प्रकाश को ढक लेते है जिससे सूर्य ग्रहण कहा जाता है। जब चंद्रमा पृथ्वी के पास हों राहु और केतु विंदू पर है तब उसकी परीछाई पृथ्वी पर पड़ती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस मार्ग पर पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है वह क्रान्तिवृत और चंद्रमा के चारो ओर का मार्ग अक्ष ये दोनों जिन विंदुओ पर एक दूसरे को काटते है उनमें एक राहु और दूसरे केतु कहा जाता है। आकाश में उतर की ओर बढ़ते हुए चंद्रमा की कक्षा जब सूर्य को काटती है तब उस संपात विंदू को राहु और दक्षिण की ओर नीचे उतरते हुए चंद्रमा की कक्ष जब सूर्य की कक्ष को पार करती है तब उस संपात विंदू को राहु कहते है। खग्रास सूर्य ग्रहण - जब अमावस्या को चद्रामा, ठीक राहु या केतु विंदू पर और पृथ्वी समीप विंदू पर हो एवं चड्रमा की गहरी छाया जितने स्थान पर हल्की परछाई पड़ती है उतने स्थानों पर खंडग्रास सूर्यग्रहण होता है। कांगण अकार सूर्य ग्रहण - जब अमावस्या को चढ्रमा ठीक राहु और केतु विंदू पर होते है किन्तु चंद्रमा पृथ्वी से दूर विंदू पर होते है वह कंगणाकार सूर्यग्रहण कहा गया है। खंडित सूर्यग्रहण - अमावस्या को चंद्रमा ठीक राहु या केतु विंदू पर नहीं होते है वल्कि उनमें से किसी एक के समीप होते है उसे खंडित सूर्य ग्रहण कहा गया है। खगोशास्त्रीयों के अनुसार 18 वर्ष 18 दिनों की अवधि में 41 सूर्य ग्रहण लगते है। खग्रास सूर्य ग्रहण 2 घंटे लगते है। यह ग्रहण को दिव्य कहा गया है। भारतीय और मागधीय प्राचीन खगोल शास्त्री आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त के अनुसार ग्रहण केवल सूर्य और चंद्रमा में नहीं होते बल्कि अन्य ग्रहों एवं उप ग्रहों पर लगते है।
ज्योतिष विदों तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 2020 में 6 ग्रहण में चार चन्द्र ग्रहण और 02 सूर्यग्रहण लग रहे है। वर्ष का प्रथम सूर्यग्रहण 21 जून 2020 रविवार और अंतिम 14 दिसंबर 2020 को लग रहा है। 21 जून 1955,,1963,1982,2001, के बाद 21 जून 2020 को वर्ष का प्रथम सूर्य ग्रहण लग रहा है। आषाढ़ कृष्ण पक्ष पक्ष अमावस्या 2077 दिनांक 21 जून 2020 रविवार मृगशिरा नक्षत्र, मिथुन राशि पर वर्ष का प्रथम कंकड़ाकृत सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार सुबह 09 : 15 मिनट से संध्या 03:04 मिनट तक लगेगा। आंशिक प्रभाव 09:16 मिनट, स्पर्श 10:18 मिनट मध्य दोपहर 12:10 मिनट , मोक्ष 02:02 मिनट तथा अंतिम दृश्य 03:04 मिनट पर होगा। यह ग्रहण भारत के अतिरिक्त पूर्वोत्तर यूरोप, पूर्वोत्तर एशिया, उतरी आस्ट्रेलिया, मध्य अमेरिका, आदि जगहों पर दिखाई देगा। कंकड़ाकृत सूर्य ग्रहण के समय मंगल जलीय राशि मीन में स्थित होकर सूर्य, बुध, चंद्रमा राहु को देखेंगे और शनि, गुरु, शुक्र वक्र होंगे।06 ग्रह वक्र रहने से अशुभ प्रभाव पड़ता है। विश्व में अराजकता, महामारी, जनधन की हानी, आर्थिक संकट तथा अनिष्ट कार्य होंगे। यह ग्रहण वृष, मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु, कुंभ राशि वालों के लिए अनिष्टकारी है।
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