मानवीय मूल्यों की पहचान लिपि और भाषा
सत्येन्द्र कुमार पाठक
विश्व की मानवीय एवं जीवों की पहचान लिपि और भाषा है। विश्व भर में 89 लिपि है जिसमें सिंधु लिपि, ब्राह्मी लिपि, खरोष्टी लिपि वत्तेलुत्तू, कदंब, सारदा, गुरुमुखी, मोड़ी, देवनागरी, शंख लिपि, रोमन लिपि , अरबी लिपि, है। कई लीपिया का अभी तक पढ़ी नहीं जा सका है। भारतीय ग्रंथ नारद स्मृति, वृहस्पति स्मृति ललितविस्तर सूत्र तथा पाण वणा सूत्र के अनुसार 600 ई. पू. में 18 लिपियों में प्रथम लिपि ब्राह्मी लिपि की चर्चा की गई है। जैन धर्म के प्रवर्तक ऋषभ देव की बंपी को पढ़ाने के लिए ब्राह्मी लिपि का आविष्कार हुआ था जिसका उपयोग सम्राट अशोक ने गुहालेखन और स्तंभ लेखन में किया है । 250-232 ई., पू. सम्राट अशोक का शिलालेख ब्राह्मी लिपि का कुत्वाचन अध्ययन 1837 में जोन्स प्रीसेप द्वारा की गई है। यह लिपि समकालीन शामी सेमिटिक लिपि सिंधु लिपि से उत्पन्न हुई। दक्षिण पूर्व एशिया में जीवित इंडक लीपियां ब्राह्मी की संतान है। ध्वनियों की जिन चिहन का प्रयोग किया जाता है वह लिपि है। मानव जीवन के प्रारंभ में भाव चित्रात्मक लिपि में मानव, जीव, जंतु तथा चित्रत्मक लिपि का प्रयोग इंसान करना प्रारंभ किया था। बाद में चिह्न लेखन, शब्द चिहनात्मक, अक्षरात्मक, अर्धक्षारत्मक, खंड युक्त, लक्षणात्मक, दिग्दर्शन वर्णनात्मक, रैखिक वर्णनात्मक, अन्यरैदिवक वर्ण, ब्राइले, ब्राह्मी परिवार की आबुगीदा, लिपियां है जिसकी खोज की गई परन्तु बायलोस, रुनी, बोरमा, ओल, चि , शंख लिपि की खोज अभी तक नहीं हो सकी है और नहीं पढ़ी गई है। खारोष्टी लिपि ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में जेम्स प्रिसेस द्वारा खोज की गई उसी तरह अबुगीडा जिसे रोमन लिपि प्रारंभ हुआ है।
भारतीय पुरालेखों का अध्ययन के अनुसार पशु पक्षी की लिपि सांकेतिक लिपि और मूक मानव भी सांकेतिक लिपि का प्रयोग करते है। बाद में मानव जीवन में सिन्हित लिपि का प्रयोग किया गया है। चित्र लिपि का प्रयोग चीन, जापान, कोरिया ब्राह्मी लिपि का एशिया भारत, नेपाल, तिब्बत, मलेशिया, फॉनेशियान लिपि यूरोप, अफ्रीका, मध्य एशिया, लैटिन लिपि या रोमन लिपि का प्रयोग अंग्रेजी, फंसिसी, जर्मन, यूरोप, यूनानी लिपि का यूनानी भाषा, गणितीय चिन्ह, अरबी लिपि का अरबी, फारसी, उर्दू,, सिरिलिक लिपि का सोवियत रूस, देवनागरी लिपि हिंदी, संस्कृति, मराठी, नेपाली, गुरुमुखी लिपि पंजाबी, तमिल, गुजराती, बांग्ला, कनो लिपि जापानी, मिस्त्री लिपि चीनी लिपि कांजी लिपि का प्रयोग विभिन्न देशों में की जाती है।: भारतीय लिपियों की जननी ब्राह्मी लिपि से देवनागरी, तमिल, तेलगु, कन्नड, ओड़िया, बांग्ला लिपियों का उदय हुआ है। सिंधु घाटी सभ्यता द्वारा सिंधु लिपि प्रितिकों के माध्यम से होता था। गुप्त साम्राज्य में ब्राह्मी से उत्पन्न नागरी, शारदा और सिद्धम लिपि हुआ। इन लिपियों के द्वारा भारत की देवनागरी, कैथी ,गुरमुखी, असमिया, बांग्ला तथा तिब्बती लिपि की उत्पति हुई है। खरोष्ठी लिपि को अबुगीदा बाएं से दाएं लिखी जाती है और रोमन अंको के समान होता है। गांधार में प्राचीन लिपि खारोष्ठी लिपि है। वत्तेलुत्त दक्षिण भारत की लिपि, कदंब लिपि 4 थीं से 6 ठी शताब्दी में कदंब राजवंश के शासन के दौरान विकसित थी बाद में कन्नड और तेलगु लिपि हो गई। ग्रंथ लिपि का प्रयोग छठी शताब्दी में हुई वहीं शारदा लिपि 8 वीं शताब्दी में प्रारंभ संस्कृत तथा कश्मिरी लिखने में प्रयुक्त किया गया था। शारदा लिपि 16 वीं शताब्दी में गुरु अंगद द्वारा मानवीकृत कर गुरुग्रंथ साहिब लिखा गया तथा देवनागरी लिपि भारत और नेपाल की अबुगिदा लेखन प्रणाली बाएं से दाएं लिखे गए है। देवनागरी लिपि का इस्तेमाल 120 भाषाओं से अधिक यथा संस्कृत, हिंदी, नेपाली, पाली, मागधी, कोंकणी, बोडो, सिंधी, मैथिली, भोजपुरी, आदि भाषाओं में किया जाता है। मोड़ी लिपि अबुगंडा लेखन प्रणाली है। संकेत लिपि को संकेत प्रणाली कहा जाता है। इस प्रणाली को आधुनिक नाम शॉर्ट हैंड मैथड कहा जाता है। बाएं से दाएं लिखने वाली अरबी लिपि से शाहमुखी लिपि, उर्दू लिपि 13 वीं शताब्दी में प्रयोग पूर्व में नस्तालिक शैली में होता था। विश्व में मानव की संकृतिक, धार्मिक, राजनयिक, वैज्ञानिक वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए विभिन्न लिपि का प्रयोग किया जाता है । मानवीय लेखन से भाषा के साथ लिपियों का विकास प्रारंभ हुआ है। भाषा से सांस्कृतिक, जीवन शैली, समाज का विकास के साथ ध्वनि और वाणी का संचार हुआ है।1961 के जनगणना और भाषा अनुसंधान केंद्र बड़ोदरा के अनुसार विश्व में 1100 भाषाएं थी जिसमे 220 भाषाएं लुप्त हो गई तथा 780 भाषाएं है। भारत में बोले जाने वाली भाषा 187 है जिसमें 94 भाषाएं 10000 से कम लोगों द्वारा बोली जाती है। भारत के संविधान के 8 वीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल है। भारतीय भाषाएं उपसमूह में भारतीय आर्य समूह, द्रविड़ समूह, चीनी तिब्बती समूह, नीग्रो समूह शामिल है। प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का विकास 1500 ई. पू. संस्कृति भाषा से प्रारंभ हुआ जिसमें वेदों, पुराणों, उपनिषदों रामायण, गीता, महाभारत आदि ग्रंथों की रचना संस्कृत में हुई है।200 ई., पू. तक संस्कृति भाषा चरम पर थी।1000 ई. में संस्कृत के साथ प्राकृत भाषा का उदय प्रारंभ हुआ। प्राकृत भाषा को मागधी , अर्द्ध मागधी भाषा का उपयोग जैन धर्म आगमो में किया गया है। प्राकृत भाषा से पाली, मगधी , शौरसेनी भाषा का इस्तेमाल बौद्ध एवं जैन धर्म के अनुयायिों द्वारा किया जाने लगा वहीं महाराष्ट्री प्राकृत भाषा 9 वीं शताब्दी, इलू श्री लंका तथा छठी शताब्दी में गुणाभ्य ने पैशाची प्राकृत जिसे भूत भाषा कहा गया है। पैशाची भाषा का प्रयोग जादू टोना, भूत प्रेत के लिए किया जाता है।
भाषा विज्ञान के अनुसार विश्व में बोले जाने वाले भाषाओं की संख्या 6900 है। भारत में 2001 के जनगणना के आधार पर हिन्दी भाषियों की संख्या 422048642 तथा विश्व में तीसरा स्थान है। बिहार की मगही भाषाई की संख्या 13978565, भोजपुरी भाषाई 33015420 तथा मैथिली भाषाई 12178673 है। अंगिका और वज्जिका भाषाएं खतरे में है।29 भाषाएं का प्रयोग 10 लाख करते है। विश्व में 35 करोड़ की मातृभाषा अंग्रेजी और 35 करोड़ लोग अंग्रेजी को संपर्क भाषा के रूप में इस्तेमाल करते है। अमेरिका के भाषा विद विलियम लेबोब ने भाषा विज्ञान की स्थापना 1977 ई. में की थी। मंडारिन भाषा अर्थात चीन भाषा है जिसकी बोलने वालो की संख्या विश्व में प्रथम स्थान है।537 भाषा का प्रयोग कम है 46 भाषाएं। लुप्त प्राय हो गई है। भाषा समन्वय और समाज को एकीकृत करने का मार्ग प्रशस्त करता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें