: प्रकृति और मानव प्रवृति का तारतम्य से पर्यावरण संरक्षण
सत्येन्द्र कुमार पाठक
विश्व में पर्यावरण संरक्षण तभी संभव है जब प्रकृति और मानव प्रवृति का तारतम्य बनता है। विश्व धरातल पर मानव निर्मित पर्यावरण के प्रभाव से प्राकृतिक पर्यावरण का संतुलन नष्ट किया जा रहा है। तकनीक मानव द्वारा आर्थिक उद्देश्यों तथा विलासिता के लक्ष्यों की प्राप्ति की कामना के लिए प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ का क्रियाकलापों की प्रवृति ने प्राकृतिक पर्यावरण का संतुलन नष्ट किया जा रहा है इस पर विचार किया जाना अत्यावश्यक है। संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति के लिए 05 जून 1972 ई. में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीडन में पर्यावरण संरक्षण और विश्व पर्यावरण दिवस पर 119 देशों द्वारा बहुमूल्य विचार दिया गया है।05 जून 1974 में प्रथम बार विश्व पर्यावरण दिवस अमेरिका एवं 143 देशों में मनाई तथा संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण दिवस, इको डे, एन्वाइरन्मेंट डे और इब्लू ई पी के रूप में मनाया गया है। पर्यावरण असंतुलन से प्रकृति की आपदाओं से मानव भूकंप, महामारी, भूस्खलन, चक्रवात, बाढ़, सुखाड़ और ज्वालामुखी उदगार जूझ रहा है। यह संकट मानव जनित है। जल, मृदा, वायु, ध्वनि प्रदूषण , कीटनाशक, युद्ध तेल का रिसाव और नाभिकीय आपदाएं तथा मानव की प्रवृति आर्थिक एवं विलासिता के उत्पन्न होने के कारण और जवाबदेही के अभाव ज्ञानात्मक तथा असंबदिता का परिणाम से पर्यावरण असंतुलित हो गया है। भारतीय संस्कृति में वेदों,पुराणों, उपनिषदों और ऋषियों ने प्रकृति , जल, भूमि, वृक्ष, अग्नि, सूर्य, चन्द्र, वायु, पौधों की संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भूकंप, ज्वालामुखी, भू स्खलन, सुनामी और हिमस्खलन भूगर्भिक वर्ग तथा चक्रवात, सूखा, बाढ़ और महामारी मौसम वर्ग आपदा का प्रकोप है। 20 वीं सदी में विश्व में 17 भूकंप,16 चक्रवात 02 बाढ़ और एक ज्वालामुखी विस्फोट हुए है। मानव जीवन विभिन्न वातावरण अपने आप को अनुकूल जोखिम बनता है। इंसान को अपने व्यवहार में बदलाव और भटकाव में परिवर्तन लाना होगा तभी पर्यावरण संरक्षण होगा।
: मानव द्वारा मृदा और शैलों का परीक्षण किए बिना पर्वतीय क्षेत्रों में, वृक्षों की कटाई जिससे वनों का उन्मूलन कर इमारतों का निर्माण, घरों, होटलों, सड़कों का निर्माण किया जा रहा है। खनन और उत्खनन तथा सड़कों का विकास धड़ल्ले से चल रहा है। जीव जंतु खतरों से सावधान करते रहे है परन्तु मानव अपनी मनोकांक्षा के लिए उन्हें किसी प्रकार जीने नहीं देता है। नदियां का जल प्रवाह और क्षेत्रों के तटों पर घर बनाने में लोग चूकते नहीं है। पर्यावरण संरक्षण से मानव जीवन संरक्षित रहेगा अन्यथा व्यक्ति महामारी, सुनामी, सुखाड़, बाढ़ और अनेक आपदा से ग्रसित रहेगा। महामारी की तीव्रता का रूप व्यवसाय एवं जीवन शैली, आवासीय स्थान, खान पान का तरीका, धूम्रपान और शराब सेवन आयु एवं लिंग संयोजन, नृजतियता , साक्षरता जीवन स्तर जानवरों, पक्षिओ के साथ संबंध, जन संकुन पर प्रभावित करता है। प्रकृति इंसान को सुव्यवतित रहने के लिए सब कुछ दिया परन्तु व्यक्ति प्रकृति के साथ खेलावड कर अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण कर रहा है। प्राकृतिक वातावरण की रासायनिक भौतिक विशेषताओं में परिवर्तन लाने वाले पदार्थ, उद्योगों में रसायन लौह इस्पात कोयला तथा तेलपरिशकरण से जल और वायु एवं ध्वनि प्रदूषण हार्न, पुरानी मशीनों का प्रतिस्थापन, लाउडस्पीकर, और गाड़ियों से निकली आवाज और धुएं को रोका लगाना चाहिए। जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास तथा मानव की प्रवृति में महत्वाकांक्षाएं का कारण पर्यावरण अवक्रमित हो रहा है जिसके कारण पर्यावरण घटते जाने से इंसान को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। भूमंडलीय पर्यावरण के परिवर्तन करने वाले मानव क्रियाकलाप प्रकृति से मेल नहीं खाता है वल्कि पर्यावरण की क्षति पहुंचने वालों पर ध्यान देना आवश्यक है। व्यक्ति द्वारा जीवाश्म ईंधन का जलना, औद्योगिक विकास, वृक्ष की कटाई, वनों, पहाड़ों का उत्खनन, नदियों के तटों का अतिक्रमण, ईंधन का उपयोग, आर्थिक विकास के लिए पौधों और जानवर की प्रजातियां नष्ट हो रही है। पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण के लिए समाज के सभी वर्गों, वैज्ञानिकों, राजीतिज्ञों, गैर सरकारी संगठन, बुद्धिजीवियों ,मीडिया तथा समाज सेवियों द्वारा सभी स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करना होगा तभी प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण होगा।
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