जीवन का आनंद संगीत
सत्येन्द्र कुमार पाठक
संगीत प्रकृति और संस्कृति की आत्मा होती है। विश्व में मनावोचित गुणों को जीवन का तारतम्य बना कर मुग्ध कराने का द्योतक संगीत है। पृथ्वी पर मानव सभ्यता का उद्भव होने के बाद देवर्षि नारद ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त ध्वनि के सबं में शिक्षा दी और संगीत कला का प्रारंभ किया है। संगीत संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों से वाद्य यंत्र, लंका के होला सभ्यता से रावण हत्था उपकरण से उत्पति हुई है।2000 वर्ष पूर्व से प्राचीन संगीत का इतिहास है। वैदिक काल में राग खरहर अर्थात सात स्वर समावेश में आरोही क्रम में पाए जाते है। प्राचीन काल में संगीत विज्ञान को साम वेद का उप वेद गंधर्व वेद है जिसमें एतरेय आरण्यक और जैमिनी ब्राह्मण, पाणिनि ने संगीत विद्या के सभी रागों का वास्तविक सिद्धांत 200 ई. पू. तथा भरत द्वारा नाट्यशास्त्र में प्रमुखता दिया गया है। संगीत का प्रथम स्वर ऊं प्रकट हुआ। उतर वैदिक काल में संगम के माध्यम से जतिगान में संगीत धुनों, भरत ने 22 संगीत कुंजियों को श्रुति का रूप दिया है। संगीत रत्नाकर ने 264 रागों, मतंग मुनि द्वारा 6 टी शताब्दी वृहद्दशी,16 वीं सदी में रामात्य द्वारा स्वरामेला कलानिधि,17 वीं सदी में वेंकात्मखिन ने चतुर्वदी प्राकाशिका पुस्तक में संगीत रागों की प्रमुखता दी है।15 वीं सदी में ध्रुपद शैली को ख्याल शैली अाई। भारतीय शास्त्रीय संगीत के स्वर, राग और ताल स्तंभ है। स्वर या स्केल डिग्री को भरत ने 22 स्वरों और हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में सात स्वरों जिसे सरगम का रूप दिया है।: राग भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का समावेश है। सौंदर्या नंदम और नौ रसो से युक्त होकर श्रृंगार रस में प्रेम, हास्य रस में हंसी, ठिठोली, करुण रस में करुणा, दया, दुख, रौद्र रस में क्रोध, भयानक रस में आतंक, वीर रस में वीरता, अदभूत रस में विस्मय, वीभत्स रस में घृणा और शांत रस भक्ति रस में शांति प्रदान का रूप राग है।15 वीं सदी में भक्ति रस की रूप का संगीत प्रवल हुई है। धुनों का लयबद्ध समूहों को ताल कहा गया है। ताल 108 धुनों का है। वर्तमान में 12 तालों से दादरा, कहरवा, रूपक, एक ताल, आदि तालों में प्रयोग करते है। भारतीय संगीत में शास्त्रीय संगीत में ध्रुपद, धमर, होरी, ख्याल, टप्पा, चतुरंग, रससगर , तराना, सरगम शैलियां है। ध्रुव और पद का प्रयोग कविता और गाने की शैली 13 वीं सदी में शिखर पर पर था और इसकी मजबूती बादशाह अकबर के समय है। इसके बबागोपाल दास, तानसेन, हरिदास, बैजूबावरा ध्रुपद गायन में महारथ हासिल किया था। ध्रुपद काव्यात्मक रूप है। ध्रुपद गायन संस्कृत के अक्षरों से उतपन्न है। ख्याल शैली का उत्पन्न करने का श्रेय 15 वीं सदी में अमीर खुसरो को दिया गया है। 13 वीं सदी में अमीर खुसरो ने द्वारा तराना शैली का आविष्कार किया गया है। ठुमरी शैली की रूमानी, भक्ति कामुकता, प्रेम अंतर्निहित है। इस शैली का प्रयोग महिलाएं करती है। टप्पा शैली 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में लोक गीत में होने लगी वहीं 10 वीं सदी में ग़ज़ल की उत्पति ईरान सूफी रहस्य वादी द्वारा की गई। ग़ज़ल में प्रेम रस और श्रृंगार रस का समावेश है। कर्नाटक संगीत 1484 ई. में पुरंदर दास द्वारा उत्पन्न किया गया वहीं लोक संगीत में बंगाल का बाउल शैली, जम्मू का वनावन शैली छत्तीसगढ़ का पंडवानी शैली, मध्यप्रदेश का अल्हा शैली पाई शैली, राजस्थान का पनिहारी शैली, माड़ शैली, गुजरात का डांडिया शैली महाराष्ट्र का ओवी शैली, लावणी शैली, पोवाडा शैली, बिहार का मगही, भोजपुरी, मैथिली शैली में कोहवर , सोहर, डोमकच, चौहट , गण गीत प्रसिद्ध है। संगीत शैली के द्वारा संगीतकारों को जोड़ने वाली संगीतत्मक विचारधारा का स्थल घराना है। भारतीय संगीत मदिरों से उदगम हुआ है। खुदाबख्श ने 19 सदी में आगरा घराना की स्थापना की वहीं फैयाज खां ने रंगीला घराना, फतेह अली खां द्वारा पटियाला घराना, छजू खां ने भिंडी बाजार घराना की स्थापना की थी। डागरी घराना, बिहार में दरभंगा घराना के संस्थाक रामचतुर मलिक, बेतिया घराना की स्थापना इंद्रकिशोर मिश्र , ग्वालियर घराना का प्रतिपादन कृष्ण राव शंकर पंडित, गोपाल ने किराना घराना, खुदाबख्श ने आगरा घराना की स्थापना की। गया घराना ,बनारस घराना की स्थापना हुई है। कर्नाटक संगीत का प्रारंभ 1428-1503 ई. में अन्नमाचार्य द्वारा किया गया है। संगीत में वाद्य यंत्रों में अवनद्ध वाद्य में तबला, ढोल, मृदंग, दुदुंभी ड्रम, है वहीं सुषिर वाद्य में वांसुरी, सहनाई, डमरू, पुंगी वैदिक काल से उपयोग में रहा है। घन वाद्य में घुंघरू, करताल, मंजीरा, जल तरंग, घाटम तथा तत वाद्य में सारंगी, सितार, वीणा, गिटार है। लोक संगीत में तुम्बी, एकतरा, वोतारा, चिकारा, तमक, घुमोट, अलगोजा, वीन, तिट्टी, मशक, हारमोनियम आदि वाद्य यंत्र का उद्भव हुआ है। संगीत के विकास के लिए संगीत प्रेमियों द्वारा घराने की स्थापना की वहीं 1901 ई. में वी डी पलुस्कर द्वारा लाहौर में गंधर्व महाविद्यालय प्रारंभ किया गया परन्तु 1915 ई. में मुंबई स्थापित हो गई।1926 ई. में इलाहाबाद में प्रयाग संगीत समिति तथा 1952 ई. में भारत सरकार द्वारा संगीत नाटक अकादमी,1926 ई. में लखनउ में विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा मैरिज संगीत महाविद्यालय, 1977 ई. में किरण सेठ ने दिल्ली में स्पिक मैक स्थापित करै विश्व में संगीत का विकास किया। नाट्य वेद में नृत्य, नाटक,, संगीत का उद्भव ऋग्वेद से शब्द, यजुर्वेद से अभिनव,, सामवेद से संगीत और अथर्ववेद से रस को समावेश किया गया है। इस कृति का संकलन 200 ई. पू. कर संगीत, शिल्प कला, काव्य एवं नाटक का प्रादुर्भा व हुआ जिसे पूर्ण कला की संज्ञा कहा गया है। भारत में भरत नाट्यम, कुचिपुड़ी, कथकली, मोहिनीअट्टम, ओडिसी, मणिपुरी और सत्रिय अस्तिव में है। लोक नृत्य में छऊ, गरबा, डांडिया, तरंग, धुमर, कालबेलिया, चारबा , भांगड़ा, दादरा, जवारा , मटकी, गौर मारिया, आलकाप, बिहार का बिरहा, पाइका, बगुरुंबा, बिहार के जाट जटिन , झूमर, डंडा जात्रा, बिहू, थांग टा, रांगमा , सिंघी छप, कुम्मी, मई लट्टम, बटाबॉम्मालू ,, कर्मा नाच, आदि नृत्य प्रचलित है। 21 जून 1981 ई. को पेरिस में ,120 देशों के 700 शहरों से आए हुए प्रतिनिधियों के बीच विश्व संगीत दिवस मानने की घोषणा करने के पश्चात् संगीत का बढ़ावा दिया गया है। जैकलांग मिनिस्टर ऑफ कल्चर फ़्रांस द्वारा विश्व संगीत दिवस , वर्ल्ड म्यूजिक डे मनाने के लिए घोषणा की गई। जीवन का आनंद और कोटे डी ला म्यूजिक का रूप दिया गया। प्रत्येक वर्ष का 21 जून विश्व के संगीत प्रेमियों के लिए विश्व संगीत दिवस प्रेरणा का श्रोत बन गया है।
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