शुक्रवार, जून 12, 2020

ब्रह्माण्ड का नेत्र भगवान् सूर्य

ब्रह्माण्ड का नेत्र भगवान् सूर्य
सत्येन्द्र कुमार पाठक
ब्रह्मांडीय और प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए ग्रहों के स्वामी सूर्य नेत्र है। प्राचीन मानव सभ्यता में सूर्य  और प्रकृति उपासना आवश्यक था। भारतीय वैद, पुराणों, उपनिषद् और संस्कृति में सभी ग्रहों, नक्षत्रों का विभिन्न कालों से आराधना होने की चर्चा महत्वपूर्ण रूप से की गई है। प्रथम मन्वन्तर में विश्व को सात द्वीपों में विभक्त किया गया था। शाकद्वीप के स्वामी महात्मा भव्य के पुत्रों में जलद, कुमार, सुकुमार,मनिरिक, कुसुमोद, गोदाकी और महाद्रूम ने विभिन्न अपने नाम से वर्ष ( देश ) की नीव रखी थी। यहां 07 पर्वतों में उदयागिरी, जलधार, रैवतक, श्याम, अंभोगीरी आस्टिकेय और केशरी एवं नदियों में सुकुमारी , कुमारी, नलिनी, रेणुका, इक्षु, धेनुका और गाभस्ती से जल प्रवाहित होती है। शाकद्वीप  में मग ( ब्राह्मण ) , मागध ( क्षत्रिय ) , मानस ( वैश्य ) तथा मंदग ( शूद्र ) वर्ण रहते है साथ ही सौर धर्म के अनुयाई रह कर अपने इष्टदेव भगवान् सूर्य के उपासक और प्रकृति पूजक है। सौर धर्म और ऋगवेद में कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र आदित्य ( सूर्य ) है। आदित्य छ: में मित्र, अर्यमा, भग, वरुण, दक्ष अंश है महाभारत आदि पर्व 121 अध्याय में धता, अर्यमा, मित्र, वरुण, अंश, भग, इन्द्र, विवस्वान, पूषा त्वष्टा, सविता और विष्णु कुल 12 आदित्य है। तैतरीय आरण्यक के अनुसार सृष्टि के पूर्व सभी जगह जल था। इस जल साम्राज्य में कमल पत्र पर प्रजापति ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। मार्कण्डेय पुराण में प्रजापति ब्रह्मा जी ने प्रजा की उत्पति की जिसमे दक्ष और उनकी पत्नी के गर्भ से अदिति का जन्म हुई। दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री अदिति का विवाह ऋषि कश्यप से की। कश्यप की भार्या अदिति से सूर्य आदित्य का जन्म हुआ है।भूलोक और द्युलोक के मध्य में अंतरिक्ष लोक में ग्रह और नक्षत्रों के स्वामी सूर्य उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुवत मार्गों से मंद, शीघ्र और समान गतियों से चलते हुए दिन रात करते है। भगवान् सूर्य मेष और तुला राशि पर आते है रात दिन समान होते हैं और जब वृष आदि पांच राशियों पर चलते है तब प्रतिमास रात्रि एक एक घड़ी कम और दिन बढ़ते हैं और वृश्चिक राशि आदि पांच राशियों पर सूर्य चलते है तब प्रातिमास रात्रि दिन एक एक घड़ी घटते है और रात्रि बढ़ते हैं। अर्थात दक्षिणायन में रात बड़ी और दिन छोटी तथा उतरायण में दिन बड़ा और रात छोटी होती है। सौर धर्म के अनुसार सूर्य की परिक्रमा मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर09 करोड़ 51 लाख योजन है मानसोत्तर पर्वत पर मेरु पर्वत के पूर्व की और इन्द्र की देवधानी पूरी , दक्षिण में यमराज की संयमी पूरी, पश्चिम में वरुण की निमनलोचनी पूरी, और उतर में चंद्रमा कि विभावरी पूरी है। इन पुरियों में मेरु के चारो दिशाओं में सूर्योदय, मध्याह्न संध्या काल एवं अर्द्ध रात्रि होते है। सूर्य देव इन्द्र की देवधानि पूरी से यमराज की संयमी पूरी को चलने में पंद्रह घड़ी में सवा दो करोड़ और साढ़े बारह लाख योजन मार्ग पर चलने पर 25 हजार वर्ष लगते है। इसी क्रम में वरुण एवं चंद्रमा की पुरीयों में पहुंचते है। भगवान् सूर्य वेदमय रथ एक मुहूर्त में 34 लाख 08 सौ योजन के हिसाब से इन चार परियों में घूमते है। भगवान् सूर्य का एक चक्र अर्थात रथ संबत्सर में 12 अरे मास रूप में 06 नेमियां हाल ऋतुओं तीन नाभियां आवन अर्थात चौमासे रूप में कहा जाता है।
भगवान् सूर्य ब्रह्माण्ड की आत्मा है। वे पृथ्वी तथा द्यूलोक के मध्य में स्थित आकाशमण्डल के अंदर कालचक्र में रह कर बारह मासों को भोगते है। प्रत्येक मास चंद्रमान से शुक्ल और कृष्ण पक्ष, पितृमान से एक रात और एक दिन और सौरमान से दो नक्षत्र कहे जाते है। सूर्य की किरणों से एक लाख योजन ऊपर चंद्रमा है । चंद्रमा द्वारा समस्त जीवों को प्राण अन्न देव, पितर, मानव, भूत, पक्षी, वृक्षादी समस्त प्राणियों बनस्पतियो के प्राणों के पोषक है। चंद्रमास से तीन लाख योजन ऊपर अभिजीत सहित 27 नक्षत्र है तथा अभिजीत से 2 लाख योजन ऊपर शुक्र वर्षा के ग्रह है। शुक्र से दो लाख योजन ऊपर बुध मंगलकारी है वहीं बुध ग्रह से दो लाख योजन ऊपर मंगल और मंगल से दो लाख ऊपर बृहस्पति तथा उनके ऊपर दो लाख योजन ऊपर शनि ग्रह है। शनि ग्रह के ऊपर 11 लाख योजन पर कश्यप आदि सप्तऋषि है। इनके ऊपर तेरह लाख ऊपर ध्रुव लोक स्थित है। राहु ग्रह सूर्य से दस हजार योजन नीचे है। नव ग्रहों का स्वामी सूर्य है ।भगवान् सूर्य मध्यभाग वर्तलुमंडल,अंगुल 12कलिंगदेश ,कश्यप गोत्र रक्त वर्ण और सिंह राशि का स्वामी है।इनका सप्ताश्व वाहन और मदार समिधा प्रिय है।लाल वस्त्र,लाल चंदन ,लाल गौ, लाल मूंगा,,केशर,तांबा,गुड,लाल माणिक्य ,गेहूं,घी, तथा सोना प्रिय है। भगवान् सूर्य के उपासक सौर धर्म के अनुयाई है। सौर धर्म के उपासक लाल वस्त्र, झंडे, लाल चंदन, स्फटिक माला, मूंगा धारण करते है और दिन में उपासना करते है । चद्रमा अग्नि कोण,चतुरस्ट्र मंडल ,अंगुल 4यमुना तट वर्ती देश ,आत्रिगोत्र ,श्वेत वर्ण , कर्का राशि के स्वामी है।इनका वाहन हरिना तथा समिधा पलाश ,मोतिया ,सफेद फूल,शंख,सफेद चंदन,कपूर,चावल,चांदी ,सफेद बैल,दही, प्रिय ह तथा चाद्रमा के अनुयाई सफेद वस्त्र और सफेद झंडे का प्रयोग करते हैं।मंगल ग्रह दक्षिण दिशा त्रिकोण मंडल , अवंटिदेश के स्वामी है।इनका वाहन भेदा समिधा खादिर चिड़चिड़ी तथा लाल वस्त्र,उदहुल फूल,लाल चंदन बैल,मूंगा,गुड, मसूर,तांबा,गुड, प्रिय है।मंगल भारद्वाज गोत्र से है। बुध ग्रह ईशान कोण, वानाकार मंडल ,अंगुल 4,मगध देश ,आत्रीगोत्र ,पित वर्ण, मिथुन कन्या राशि के स्वामी है ।इनका हरा वस्त्र,पन्ना ,सफेद फूल,फल,कासा ,मूंगा ,प्रिय है वहीं इनका वाहन सिंह और समिधा अपामार्ग अकावन है।बुध के उपासक हरा वस्त्र, हरा झंडे का प्रयोग करते है। वृहस्पति ग्रह दिशा, दीर्घ चतुरास्ट्र मंडल,अंगुल6, सिंधु देश अंगिरा गोत्र पीत वर्ण, धनु, मीन राशि का स्वामी है। इनका वाहन हाथी तथा समिधा पीपल है। पुखराज, चने की दाल, पीला वस्त्र,फूल, फल,हल्दी , सोना, घोड़ा, पुस्तक प्रिय है। वृहस्पति के उपासक पीला वस्त्र और झंडे तथा फल का प्रयोग करते हैं। वृहस्पति देवताओं के गुरु है। शुक्र ग्रह पूर्व दिशा, षष्ठ कोण मंडल अंगुल 6 भोजकट देश भृगु गोत्र, श्वेत वर्ण, वृष तुला राशि के स्वामी है। इनका वाहन अश्व और समिधा गूलर है। हीरा, चांदी, सोना, चावल, दूध, सफेद वस्त्र, फूल घोड़ा चंदन प्रिय है। शुक्र का अनुयाई सफेद वस्त्र और सफेद झंडे का प्रयोग करते हैं। शनि ग्रह पश्चिम दिशा, धनुषाकार मंडल अंगुल 2 सौराष्ट्र देश, कश्यप गोत्र, कृष्ण वर्ण, मकर कुंभ राशि का स्वामी है। इनका वाहन गिद्ध और समिधा शमी है। इन्हे कला वस्त्र,गौ , भैंस लोहा, उरद, कुलत्थी,कस्तूरी, नीलम प्रिय है। शनि सूर्य पुत्र और न्याय का देव है। इनके उपासक काला वस्त्र, कोट, झंडा का प्रयोग करते हैं। राहु ग्रह नैऋतय कोण सुरपाकार मंडल, अंगुल 12 मलय देश, पैठानस गोत्र तथा कृष्ण वर्ण है। राहु का वाहन सिंह और समिधा दूर्वा है। इनका कम्बल, नीला वस्त्र, सरसो का तेल, सिसा, सूप, घोड़ा, गोमेद प्रिय है। राहु की उपासना रात्रि में उपासक करते है। केतु ग्रह वायव्य कोण, ध्वजा कार मंडल कुश देश, जैमिनी गोत्र, धूम्र वर्ण है। केतु का वाहन कबूतर और समिधा कुश है। द्रव्य में लहसुनिया लाजावर्त , लोहा, तिल, सप्तधान्य, धूमिल वस्त्र फूल, नारियल, बकरा, शास्त्र प्रिय है। केतु के उपासक उपासना रात्रि में करते है। भारतीय ग्रंथों के अनुसार कलिंग देश के स्वामी कश्यप गोत्र के रवि है ।सिंह राशि के स्वामी रवि रक्त वर्ण और रक्त वस्त्र धरणकर्ने तथा सप्ताश्व वाहन है।कलिंग को आधुनिक नाम उड़ीसा कहा गया है। वर्ती देश और करके राशि के स्वामी अत्रिगोत्र के चंद्रमा श्वेत वस्त्र धारण करते है।  अवंतिदेश के स्वामी भारद्वाज गोत्र का मंगल मेष  वृश्चिक राशि का स्वामी तथा वाहन मेष है।मंगल लाल वस्त्रधारी है।मगध देश और मिथुन कन्या राशि के आत्रिगोत्रका  स्वामी सोम और तरा पुत्र बुध है ।बुध हरे रंग के वस्त्र धारण कर सिंह की सवारी करते है। सिंधु देश का स्वामी वृहस्पति ,भोजकत देश का स्वामी शुक्र भृगु  गोत्र के ,सौराष्ट्र देश का कश्यप गोत्र और सूर्य पुत्र स्वामी शनि ,मलय देश का पैठीनस गोत्र के स्वामी राहु और कुश देश का जैमिनी गोत्र के स्वामी केतु है। अंगिरा गोत्रिय वृहस्पति देवो के गुरु और दैत्य, दानव, राक्षस संस्कृति के गुरु भृगु गोत्रीय शुक्राचार्य शुक्र थे।: मानव जीवन में नैमितिक काम्य कर्मों की आधारशीला सूर्य है। ग्रंथों में मनुष्य काल,पितृ काल, देवकाल और ब्रह्मकाल है। सूर्य की उसनाना से अंधकार, राक्षसों का नाश, नेत्र ज्योति की वृद्धि, चराचर की आत्मा, आयु वर्धक, लोक धारण, कुष्ठ रोगी निवारण, क्षय रोग , नेत्र रोग से मुक्ति तथा मानव को सर्वार्थ सिद्धि प्राप्ति होती है। सृष्टि के पूर्व सभी जगह जल था, देव दानव, मानव, बनस्पती, तरू लता कुछ नहीं था । जब ब्रह्मा जी ने कमल पुष्प पर जगत की सृष्टि करने लगे उस समय सूर्य अंड दृश्य उदय हुआ। जिन्हें आदित्य कहा गया है। निरुक्त में आदित्य का नाम भरत अर्थात आदित्य की ज्योति को भरत कहा जाता है । भरत के नाम से विख्यात भारत है।
भगवान् सूर्य अवतार - ब्रह्मा जी के पौत्र मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। ऋषि कश्यप की प्रजापति दक्ष की 13 कन्याओ में अदिति ने देवों का जन्म दी, दिती ने दैत्य, दनू ने दानव, विनीता ने अरुण, गरुड़, सखा ने यक्ष, राक्षस, कद्रू ने नागों,, मुनि ने गंधर्वो, क्रोध से कुल्याएं , अरिष्टा से अप्सराएं, इरा से एरावत हाथियों, ताम्रा से श्येनी आदि कन्याएं, श्येन बाज , भाष, शुक, पक्षी का जन्म हुआ है। कश्यप ऋषि की भार्या अदिति से जन्म लिए देव, पुत्र, पौत्र, दौहित्र, आदि से विश्व में देवता प्रधान है। ब्रह्मा जी ने अदिति पुत्रों को यज्ञ भाग का भोक्ता, राजस तथा त्रिभुवन का स्वामी बनाया परन्तु दिती , दनु, सखा के पुत्रों में दैत्य, दानव, राक्षस में तामस युक्त रहने के कारण देवताओं के साथ एक हजार दिव्य वर्ष तक तामसी प्रवृति वाले दैत्य, दानव और राक्षस के साथ भयंकर युद्ध हुए तथा दैत्यों और दानवों द्वारा देवताओं का राज्याधिकारी से वंचित तथा यज्ञ भाग छीन लिया गया। दैत्यों, दानवों और राक्षसों के तामसी प्रवृति के कारण देवों और अन्य लोग पीड़ित हो गए । इस कारण देव माता अदिति शोक से अत्यंत पीड़ित हो गई थी। उन्होंने भगवान् सूर्य की आराधना के लिए महान् यज्ञ कर कठोर तप करते हुए सूर्य का स्तवन करने लगी।कठोर तपस्या करने के बाद देव माता अदिति को भगवान् सूर्य प्रत्यक्ष दर्शन देकर मनोकामना की पूर्ति किए। भगवान् सूर्य ने देवमाता अदिति से प्रसन्न होते हुए कहा कि देवी मै अपने सहस्त्र अंशों सहित तुम्हारे गर्भ से अवतीर्ण हो कर तुम्हारे पुत्रों के शत्रुओं को नाश करूंगा और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करूंगा। तदनतर सूर्य की सहस्त्र किरणों वाली सुषुम्ना नाम की किरण देव माता अदिति के गर्भ में अवतीर्ण हुई। देव माता अदिति गर्भ धारण करती हुई कृच्छ और चंद्रायन ब्रत आदि ब्रतों का अत्यंत पवित्रता पूर्वक रहने लगी। माता अदिति के गर्भ से मार्तण्ड का अवतरण हुआ। भगवान् सूर्य के अंश से उत्पन्न मार्तण्ड अवतरण से देवो में खुशी और दैत्यों, दानवों एवं राक्षसों असुरों में ज्वाला से भाष्म हो गया। देवों ने तेज के उत्पति स्थान, अंडाकार मार्तण्ड तथा देव माता अदिति का स्तवन करने लगे। तदनतर भगवान् सूर्य को प्रसन्न करके विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री संज्ञा से विवाह किए। चैत्र मास मधुमास में धाता आदित्य, वैशाख मास में अर्यमा आदित्य , जेष्ठ मास में मित्र आदित्य, अषाढ़ मास में वरुण आदित्य, सावन मास में इन्द्र आदित्य, भाद्र मास में विवस्वान आदित्य , आश्विन मास में पूषा आदित्य, कार्तिक मास में पर्जन आदित्य अगहन मास में अंश आदित्य, पौष मास में भग आदित्य, माघ में  त्वष्टा आदित्य और फाल्गुन मास में विष्णु आदित्य के रूप में भगवान् सूर्य तपते है। अग्नि पुराण के परिचछेद19,51,73,99,148 वें हरिवंश पुराण के तीसरे अध्याय का श्लोक संख्या 60-61 के अनुसार चाक्षुष मन्वन्तर में तुषित नामक 12 देवता थे वे ही वैवस्वत मन्वन्तर में कश्यप ऋषि की भार्या अदिति के गर्भ से भगवान् सूर्य के अंश से विष्णु, शक्र इन्द्र, त्वष्टा, धाता , अर्यमा, पूषा , विवस्वान , सविता मित्र, वरुण, भग, और अंशु 12 आदित्य हुए। भगवान् सूर्य उपासना प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठ तिथि और सप्तमी एवं चैत्र और कार्तिक मास शुक्ल पक्ष षष्ठी तथा सप्तमी तिथि महत्व पूर्ण है। रविवार प्रसिद्ध दिन है।
: सौर धर्म -  सौर धर्म अज्ञान के सागर को दूर कर ज्ञान का सागर में लाने का कार्य करता है। सौर धर्म के अनुयाई प्रकृति पूजक तथा भगवान् सूर्य के उपासक है। वाल्मिकी रामायण,मनुस्मृति के अनुसार भगवान् विवस्वान आदित्य  (सूर्य देव ) के पुत्र वैवस्वत मनु हुए जिन्होने वैवस्वत मन्वंतर प्रारंभ किया है। वैवस्वत मनु सृष्टि के प्रथम शासक, मनुस्मृति ग्रंथ का निर्माण, विधि सम्मत शासन व्यवस्था को दृढ़ रखा है। जिन्हें सूर्य वंश की स्थापना की। पुराणों में ऋषि वंश और राजवंश की परंपरा वैवस्वत मन्वंतर से है। 27 चतुर्युग युग समाप्त हो कर 28 चतुर्युग का सतयुग, त्रेता, द्वापर तीन युग समाप्त होने के बाद कलियुग प्रारंभ है। युग को अंग्रेजी में पीरियड कहा गया है।
भगवान् सूर्य की भार्या प्रभा , संज्ञा,राज्ञी ( रात्रि ), वड़वा और छाया थी। त्वष्टा की पुत्री और सूर्य की भार्या संज्ञा से वैवस्वत मनु, यम पुत्र , वाड़वा के नासत्य, दस्ट्र ( अश्विनी कुमार ) पुत्र और यमुना पुत्री हुई और छाया ( सवर्णा )  से सावार्णी मनु, शनैश्चर , ताप्ती, और विष्टि तथा प्रभा से प्रभात पुत्र हुए। वैवस्वत मनु भू लोक का स्वामी, यम को यम पूरी का स्वामी तथा अश्विनी कुमार को वैद्य राज , शनि को न्याय, प्रभात को किरणों का स्वामी तथा सावर्ण को राजा बनाई। वर्तमान में सावर्णी मन्वन्तर चल रहा है।वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भगवान् सूर्य के प्रकाश पुंज का व्यास 1392000 किलोमीटर और तापमान13000000 सेंटीग्रेट है। जहां तक सूर्य का प्रकाश जाता है वह ब्रह्माण्ड है। पाश्चात्य भौतिक वैज्ञानिक ने सूर्य मानवीय जीवन, प्रज्ञा और विज्ञान आदि के उत्स तथा ब्रह्माण्ड उत्सर्जित बताया है। सूर्य शरीर रचना, रोगों से निवारण तथा पृथ्वी का नियामक और प्रकाशमान तथा ज्योतिष, चिकित्सा विज्ञान का केंद्र विंदू है। आर्य ऋषियों एवं सौर धर्म के अनुसार प्राचीन काल में जब कहीं कुछ नहीं था तब मानव जीवन में प्रकृति पूजन में सूर्य की महत्ता थी। शाक्त , शैव , वैष्णव धर्म के अनुयाई द्वारा सौर धर्म की प्रधानता दी। अमेरिका के रेड इंडियन, चीन के विद्वानों ने सूर्य को यांग तथा चन्द्रमा को यिन तथा लिकी की पुस्तक कि आओ तेह सेंग में सूर्य की महत्वपूर्ण चर्चा की है। बौद्ध जातक में , इस्लाम में सूर्य को इल्म अहाकम अन नजुम , ईसाईयों के न्यू टेस्टामेंट में , ग्रीक और रोमन विद्वानों, आर्य, अनार्य, द्रविडों तथा सौर धर्म ने सूर्य का दिन रविवार को पवित्र दिन कहा है। जैन धर्म के धर्म ग्रंथों के आधार पर जम्बूद्वीप में दो सूर्य, लवण समुद्र में चार सूर्य और धातकी खंड में बारह, कलोदधी में42 सूर्य और पुष्करार्ध द्वीप में 72 सूर्य की चर्चा है।: मानव जीवन की संस्कृति में सौरवाद या सौर धर्म में सूर्य को सर्वोच्च ईश्वर मानते हैं। अर्थात प्रकृति पूजन का महत्व है। शैववाद अर्थात शैव धर्म में शिव सर्वोच्च भगवान् हुए है। जिन्हें वैदिक देवता रुद्र के रूप में मानी जाती है।  शैव धर्म में लिंगायत संप्रदायकी स्थापना कन्नड कवि वसवा द्वारा बारहवीं सदी में की गई तथा नाथ सम्प्रदाय धर्म में विष्णु को सर्वोच्च भगवान् मानते हैं। शक्तिवाद या शाक्त धर्म में देवी को सर्वोच्च शक्ति की प्रधानता है। इसके उपासक तंत्र, मंत्र, जादू टोना की विभिन्न उप परंपराओं के लिए जानते है। वायु पुराण अध्याय 68,12 में असुरों के देवता सूर्य चंद्रमा थे। सौर धर्म के उपासक अगस्त ऋषि ने सूर्य वंशिय राम को आदित्य हृदय का मंत्र दिया। जीवित गुप्त ने दसवीं शताब्दी में सूर्य मूर्ति की स्थापना कर सौर धर्म की स्थापना की है। जेनरल कनिंघम ने अपनी आर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट वॉल्यूम सोलह पेज पैसठ में चर्चा किया है कि सूर्य के अंश से प्रदूर्भाव प्रकाशमान शाक द्वीप का मग ब्राह्मण से भगवान् कृष्ण के पुत्र सांब को कुष्ठ व्याधियों से हुई थी। सांब पुराण में भगवान् सूर्य और सौर धर्म के उपासकों की चर्चा विस्तृत रूप से की गई है। बेबीलोन के प्राचीन वृतग्रंथ ईटना माइथ में इगल गरुड़ पर बैठ कर थर्ड हेवन आफ अन्नू में जाकर औषधि लाने का उल्लेख है। अमेरिका के आण्विक जीव  वैज्ञानिक डॉ फ्रासिस ने कहा है कि पृथ्वी पर प्राणियों का उद्भव400 करोड़ वर्ष तथा छाया पथ1300 करोड़ वर्ष है। विश्व में ईस्वी सन और संबत से 6 हजार वर्ष पूर्व से 140 ई. तक सूर्य पूजा उपासना तथा सौर धर्म स्थल का प्रमाण है। विश्व का प्राचीन सौर धर्म दर्शन विभिन्न क्षेत्रों में फैला है। पर्सियन चर्चों में मित्र, ग्रीको के हलियोस, एजिप्त मिश्र के रा , तातारियों भाग्य वर्धक देवता फ्लोरस, प्राचीन पेरू दक्षिण अमेरिका के ऐश्वर्य दाता फुल्लेस्ट, उतरी अमेरिका के रेड इंडियन का एटना और एना, अफ्रीका के विले श्वेत व्हाइट , चीन का वू. ची., जापान के इज्ना- गी, नवीन सेंटो इजम का एमिनो - मिनाक - नाची के रूप में सूर्य, मित्र, दिवाकर आदित्य को उपासना करते है। भारतीय संस्कृति में सूर्य उपासना प्राचीन काल से है सिंध देश केमुलस्थान पुर मुल्तान सूर्य मंदिर है। कश्मीर में मार्तण्ड मंदिर  था अब भग्नावशेष है। चितौड़गढ़, मोधेरा गुजरात में सूर्य मंदिर था जिसका अवशेष है। कोणार्क उड़ीसा का सूर्य मंदिर 13 वीं सदी में निर्मित हुआ था वह आज भी प्रसिद्ध है। काशी में लोलार्क, कर्णादित्य, सुमंतादित्य सूर्य मंदिर है। लोलार्क में सौर धर्म द्वारा आदित्य पीठ की स्थापना की थी। काशी क्षेत्र में लोलार्क, उत्तरार्क,द्रुपद आदित्य, मयुखादित्य, काखोलकादित्य, अरुनादित्य, वृद्धादित्य, केशावादित्य, विमालादित्य, गंगादित्य, यमादित्य, मंदिर विख्यात है। वैवस्वत मनु ने सूर्यवंशी , राम काल और सूर्य पूजा की प्रधानता दी वहीं महाभारत काल में भगवान् कृष्ण ने, मगध सम्राट जरासंध ने सूर्य उपासना के लिए मंदिर, तलाव तथा सौर धर्म के लिए सौर मठ की स्थापना कराई है।
: सौर धर्म - सौर धर्म की स्थापना शाकद्वीप के मग ब्राह्मण अर्थात शाकद्वीपीय  ब्राह्मण द्वारा की गई थी। सौर धर्म के अनुयाई लाल वस्त्र, लाल झंडे, लाल फूलों की माला तथा ललाट पर लाल चंदन से सूर्य किआकृती बनाते है। वे ब्रह्म मुहूर्त उदयोंमुख सूर्य , मध्याह्न में सूर्य को महेश्वर रूप में तथा अस्तो मुख अस्तलगामी सूर्य को विष्णु के रूप में उपासना करते है। सूर्य भक्त लोहे से ललाट पर सूर्य की मुद्रा को अंकित कर सूर्य ध्यान करते है और सूर्योदय के बाद सूर्य दर्शन उपासना के बाद भोजन पानी करते है। यूनान का सम्राट सिकंदर, कुषाण काल में ईरान, इराक, रोम एशिया में रहने वाले सूर्य उपासक थे। प्राचीन ईरान में मग ब्राह्मण या मग जाति रहते है। ब्रह्म पुराण, सौर पुराण, में सौर धर्म के साबंध में उलेख किया गया है। भारत में 5 वीं तथा 6 वी और 13 वींं सदी के राजाओं द्वारा सूर्य के उपासक और सूर्य मूर्ति , सूर्य मंदिर तथा आदित्य मठ की स्थापना, तलाव का निर्माण कराया है। मौर्य साम्राज्य द्वारा 4 थीं शताब्दी ई. पू. में शुंग वंश, पाल काल तथा सेन वंश के राजाओं और 7 वीं सदी में हर्षवर्धन शासन काल में सूर्य मंदिर एवं सूर्य मूर्ति की स्थापना तथा तलाव का निर्माण हुआ। बादशाह अकबर ने दिन ए इलाही धर्म चलाया और सूर्य देवता है तथा रविवार को अवकाश घोषित कर सूर्य उपासना का दिन घोषित किया था। आइन- अकबरी ब्लाखामैनाका का अंग्रेजी अनुवाद 1965 पृष्ठ 209-212 के अनुसार अकबर का आदेश में कहा गया कि प्रात: काल, मध्याह्न काल, सायम काल तथा अर्द्ध रात्रि में सूर्य की उपासना पूर्व दिशामुख करना है। वह सौर संवत् को राजकीय आय व्यय की गणना के लिए प्रचलित रखा था। पद्म पुराण सृष्टि खंड अध्याय 82 में राजा भद्रेश्वर ने अपनी कुष्ठ निवारण के लिए सूर्य की उपासना एवं मयूर भट्ट ने सूर्य शतक की रचना कर अपनी कुष्ठ रोग से निवृत हुए थे। राजा अश्वपति ने सूर्योपासना से सावित्री पुत्री प्राप्त की वहीं द्रोपदी ने सूर्य आराधा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण की थी। अंग राज कर्ण ने सूर्य की आराधना एवं अर्घ्य देकर कार्य संपादन करते है। सम्राट कुषाण 78 ई.,3 शताब्दी में गुप्त सम्राटों , कुमार गुप्त 414-55 ई. ,स्कन्द गुप्त 455 - 67 ई. में बुलंद शहर के इंद्रपुर में , मलावा के मंदसौर, ग्वालियर, इंदौर, बघेल खंड, में सूर्य मंदिर तथा सूर्य मूर्ति की स्थापना एवं तलाव का निर्माण हुआ है। ललितादित्य मुक्तापिड 724-760 ई. में मार्तण्ड मंदिर, प्रतिहार सम्राटों ने 11 शताब्दी में कोणार्क मंदिर का विकास किया। वेदों पुराणों उपनिषदों के अनुसार विश्व में 33 कोटि  प्रकार में आठ वसु,11 रुद्र,12 आदित्य, एक राजर्षी और एक प्रजापति है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य की उपासना से वेशियोग, वसियोग, यूभायाचरी योग, भास्कर योग, बुधादित्य योग, राजराजेश्वर योग, रजाभंग योग, अंध योग, उन्माद योग का प्रभाव प्रत्येक जीवों, प्राणियों तथा इंसानों पर होता है।,बिहार का क्षेत्र सूर्योपासना केंद्र रहा है । प्राचीन काल में मगध देश में चंद्रमा और तरा के पुत्र राजा बुध , किकट देश का राजा गया सुर  ने गायार्क आदित्य मूर्ति  उत्तरायण और दक्षिणायन सूर्य मूर्ति की स्थापना कर सौर धर्म का सृजन किया । अंग वंशीय  राजा  वेन के अंग से उत्पन्न राजा पृथु के ब्रहमेश्ठी यज्ञ से उत्पन्न मागध ने मगध की स्थापना कर सूर्य उपासना के लिए सूर्य मंदिर, सूर्य मूर्ति की स्थापना और तलाव का निर्माण किया वहीं सोन प्रदेश का राजा शार्यती , करूष देश का राजा कारूष ने हिरण्याबहू प्रदेश एवं मिथिला राज्य के राजा मिथी , जनक ने सूर्य उपासना के लिए तलाव, सूर्य मंदिर का निर्माण और सूर्य मूर्ति की स्थापना की थी। अरवल जिले के पुनपुन नदी तट पर पंतित में प्राचीन सूर्य मूर्ति किंजर पुनपुन नदी तट पर, शेरपुर पुनपुन नदी तट पर ,करपी ( अरवल ) में विष्णुआदित्य खटांगी में शुंगकलीन सूर्य मूर्ति , सुकन्या ने अपने पति ऋषि च्यवन की युवा और निरोग के लिए सूर्योपासना, अर्घ्य अर्पित की वह स्थल मदासावां तथा औरंगाबाद जिले के देवकुंड है। पटना जिले के पंडारक में पुण्यार्क आदित्य, उलार में उल्यार्क आ दित्य औरंगाबाद जिले के राजा एल द्वारा देव में देवार्क आदित्य की स्थापना की है। वहीं देव राज ने ब्रह्म कुंड का निर्माण कराया तथा उमगाा पहाड़ पर देव राज्य का परिवार 15 वीं सदी में सूर्य मंदिर एवं तलाव का निर्माण करा कर अपने आवास के लिए किले का निर्माण कराया था।जहानाबाद जिले के काको में पनिहास सरोवर के किनारे विष्णु आदित्य, दक्षणी में राजा दक्ष द्वारा स्थापित उतरायण और दक्षिणायन सूर्य मूर्ति , जहानाबाद के ठाकुरवाड़ी दरधा यमुने संगम पर सूर्य मूर्ति , मखदुमपुर, धराऊत , भेलावर में सूर्योपासना का स्थल है । दैत्य राज बाणासुर द्वारा गया जिले के बेलागंज प्रखंड में सोनपुर में सूर्य मूर्ति स्थापित किया वहीं नवादा जिले के रूपौ , आती, समना में सौर धर्म का केंद्र स्थली था। सौर धर्म के शाकद्वीपीय ब्राह्मण द्वारा सूर्य को अर 24 , आर्क 07, आदित्य 12, किरण 07, कर 10 और मंडल 12 कुल 72 पुरों में सूर्य आराधना का केंद्र बनाए गए। श्री कृष्ण संवत् में राजा सांब के कुष्ठ निवारण हेतु शाक द्वीप से 18 कुल के मग चंद्रभागा नदी के किनारे रह कर सूर्योपासना की वहीं धृष्टद्युम्न के कुष्ठ निवारण के पश्चात् 72 गावों में सूर्योपासना का केंद्र स्थापित कर मग ब्राह्मणों को अर्पित किया। सौर धर्म के  भारद्वाज, कश्यप, कौड़िन्य, भृगु, अत्रि ऋषि, अगस्त, चाणक्य, मयूर, प्रथम स्वयंभुव मनु की भार्या शतरूपा से प्रियब्रत ने रोग, शोक निवारण हेतु सूर्योपासना की नीव डाल कर सौर धर्म को अग्रसर किया। कर्दम प्रजापति की पुत्री काम्या के साथ स्वयंभुव मनु के पुत्र वीर से विवाह किया। वीर और काम्या ने काम्यक वन में सूर्योपासना की नीव डाली थी। नवादा जिले के क्षेत्र काम्यक वन से प्राचीन काल में विख्यात था। नवादा जिले की पर्वत लोमष , दुर्वासा , नारद, ध्रुव का स्थल नाम से ख्याति है।,नालंदा जिले के औंगरी में औंज्ञादित्य, भोजपुर के बेलाउर में बेलार्क आदित्य है। झारखंड के रांची, जमशेदपुर, चतरा, हजारीबाग चाईबासा में सूर्योपासना स्थल और सूर्य मंदिर है। सौर धर्म के सौर सिद्धांत के अनुसार सातवें वैवस्वत मनु काल का 28 वाँ सौर संवत् का  महायुग 4323000 है।14वें मनुमय सृष्टि सौर संवत् 1955885121 हुए है। विभिन्न काल में भिन्न भिन्न राजाओं ने संबत प्रारंभ किया जिसमें प्राचीन सप्तर्षि संवत् 6676 ई. पू., कलियुग संवत् 5121, यहूदी संवत् 5733 बुद्ध निर्वाण संवत् 487 ई. पू. मौर्य संवत् 321 ई. पू. , वीर निर्माण संवत् 427 ई. पू. , विक्रम संवत 2077, ईस्वी संवत् 2020 शालीवाहन संबत 1942, फसली संवत् 1427, बांग्ला संवत् 1427, नेपाली संवत् 1140 तथा इस्लामी संबत 1441 कुल विश्व में 35 संबत विभिन्न नामों से समय समय पर संचालन हुआ है। विभिन्न संवत् में भिन्न भिन्न राजाओं ने सूर्योपासना, सूर्य स्थल पर सूर्य मूर्ति, सूर्य मंदिर, सूर्य कुंड का निर्माण कराया वहीं गंगा, यमुना आदि नदियों के किनारे सूर्य घटो, सूर्य मंदिरों का निर्माण कराया है ताकि सूर्य उपासक भगवान् सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर मनोकांक्षा की पूर्ति कर सके। बिहार में सूर्य पूजा, छठ, छठी बरत , छठ व्रत के नाम से विख्यात है।

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