शनिवार, जून 06, 2020

हेमकुंड अध्यात्म चिंतन स्थल...




             

प्रकृति की सौंदर्य हिमालयन की वादियां जहां आध्यात्म, चिंतन और शांति स्थल के रूप में सुविख्यात है। ऐसे उत्तराखंड में चार धामों में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और जमुनोत्री , हरिद्वार, जोशीमठ, ऋषिकेश है वहीं हेमकुंड सिख धर्म का महान् तीर्थस्थल है। हिमालयन की वादियां जहां आध्यात्म चिंतन और शांति की संस्कृति एवं सभ्यता का उद्भव है वहीं पर्यटन का प्रमुख केंद्र है। चमोली जिले के सप्त पर्वतों के श्रृंखलाओं से घीरा समुद्रतल से 4632 मीटर अर्थात 15197 फीट ऊंचाई पर प्राकृतिक हिमनद झील निर्मित है। जिसे हेमकुंड के नाम से विख्यात है । सतयुग में हेमकुंड स्थल शेषनाग की तप: स्थली था और त्रेता में अयोध्या के राजा दशरथ की भार्या सुमित्रा के पुत्र तथा भगवान् राम के अनुज लक्ष्मण ने राक्षस राज रावण के पुत्र मेघनाथ को मारने के बाद लक्ष्मण अपनी शक्ति पाने के लिए हेम कुंड में कठोर तप किया था। कठोर तप के कारण लक्षमण को श्रद्धा, भक्ति एवं शक्ति प्राप्त हुई थी। द्वापर युग में पांडु का योग स्थल था। हेम कुंड का जल नीला है जिसे हिमगंगा कहा जाता है। यहां म्यूंदार के निवासियों का आराध्य देव लक्ष्मण की मूर्ति एवं लक्ष्मण मंदिर हेमकुंड के किनारे निर्मित है। जिन्हें लोकपाल कहा गया है। सिख धर्म के 10 वें गुरु गोविंद सिंह जी का पूर्व जन्म का तप: स्थल था उस समय सर्ववंशदाली के नाम से विख्यात थे। उस समय यहां का राजा दमन अत्याचारी और अहंकारी था जिससे शिवालिक पहाड़ियों के अहंकारी राजाओं से 14 दिनों तक युद्ध हुए थे । इन अहंकारी राजाओं को गोविंद राय ने समाप्त कर नया समाज की स्थापना की थी। यहां के निवासी गोविंद राय को सर्वावंशदाली, कलगीवर, दशमेश, बजांवाले और संत सिपाही के रूप में गुणगान करते है। यहां गुरुगोविंद सिंह की याद में हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा निर्मित है। पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 दिनांक 26 दिसंबर 1666 ई.को गुरूतेगबहादुर सिंह की भार्या गुजरी के पुत्र गोविंद राय के रूप में पटना में जन्म लिए। सिख धर्म के 10 वे गुरु गोविंद सिंह जी को 11 नवंबर 1675 ई. को अलंकृत किया गया है। वैशाखी के दिन 1619 ई. को गुरूगोविंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना की थी। 07 अक्टूबर 1708 ई. को गुरु गोविंद सिंह का निधन महाराष्ट्र के नदेर में हो गया। गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का अदम्य साहस, शक्ति, श्रद्धा और भक्ति की रूप में याद करते है।

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