मानवीय मूल्यों में कलात्मकता की परंपरा भितचित्र
सत्येन्द्र कुमार पाठक
विश्व का मानवीय मूल्यों में प्राचीन कलात्मकता की परंपरा भितिचित्र और चित्रकला व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। भारत में भितिचित्र तथा चित्र कला का रूप विश्व में पहचान बनाई और पुरातात्विक महत्व रखता है। प्राचीन काल एवं आधुनिक काल के चित्रकारों ने शैलियों, रंगों और 6 सिद्धांतों में वास्तु का विषय का प्रमाण , रंगों का चमक, प्रकाश को भाव, भावनाओं की लावण्य योजना, विषय की दृश्यता का रूप सदृष्य बिधन और सभ्यता के लिए रंगों का मिश्रण कर वर्णिका का रूप सवारा है। ब्राह्मण धर्म एवं बौद्ध धर्म के ग्रंथों में लिप्य चित्र के रूप में ख्याति अर्जित की है। बौद्ध धर्म ग्रंथो में चौंका पिटक, दिग्हल पीटक, यम पिटक में चित्र कला का प्रदर्शन किया है। प्रागैतिहासिक काल में चट्टानों पर की गई शैल उत्कीर्ण को पेट्रोग्लिफ कहा गया है। 40000 से 10000 ई. पू. उच्च पूरापाषाण काल में चट्टानों की गुफाओं की दीवारों पर मिश्रित गेरू लाल, सफेद, पीले और हरे रंग का उपयोग हाथी, गाय, गैंडे, बाघ, सिंह आदि जानवरों, पक्षियों का चित्र एवं मानव आकृतियों के लिए किया गया था।मध्य पाषाण काल 10000 से 4000 ई. पू. में चित्र कला में लाल रंग का प्रयोग होने लगा तथा ताम्र पाषाण काल में हरे और पीले रंग वाले चित्र बनने लगे थे। उतर काल का छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का रामगढ़ के पर्वत समूह स्थित जोगीमारा की गुफाओं, कांकेर जिले के उदकुदा, गरागोदी, खेरखेरा आदि गुफाओं में 1000 ई. पू. का मानव, पशुओं, आदि का चित्र है। मध्य प्रदेश के विंध्य पर्वत की श्रंखला पर बना 500 से अधिक शैल चित्र प्राचीन धरोहर है जिसे युनेस्को द्वारा 2003 ई. में विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया है। विंध्य पर्वत समूह में शैल चित्र कला 30000 वर्ष पूर्व की बताई जाती है। भीम टेका में बनाई गई चित्र कला उतर पाषाण युग, मध्य पाषाण युग, ताम्र पाषाण युग, प्रारंभिक ऐतिहासिक है। भारतीय भितिचित्र 10 वीं शताब्दी ई. पू. से 10 वीं ई. तक शैल चित्र प्राचीन काल से प्रसिद्ध रहा है। भितिचित्र की उत्कृष्टता को शुंग काल का अजंता गुफा की संख्या 9 है जहां पर 10 भित चित्र , तमिलनाडु के बेल्लोर की अर्मामलाई, गुफाओं का 8 वीं सदी में जैन धर्म के सबंध शैल चित्र, ओडिसा का क्योझर जिले का चट्टानी आश्रय में रावण छाया गुफा,, बाघ, एलोरा की 16 गुफाओं में 5 गुफा का शैल चित्र, कैलाश मंदिरों,, जोगिमारा गुफा,, तथा बिहार राज्य का जहानाबाद जिले के बराबर पर्वत समूह के शैल चित्र, गया जिले के बेलागंज प्रखंड का कौवडोल पर्वत पर बने शैल चित्र अर्थात भितीचित्र और नवादा जिले के शुंग पर्वत समूह में बने कोहवरवा गुफा में प्राचीन शैल चित्र है। बराबर की गुफा में लोमष ऋषि गुफा के मुख्य द्वार पर हाथी, स्तूप, फूलों की लरिया से युक्त शैल चित्र है वहीं ब्राह्मण धर्म के कई भितिचित्र देवी देवताओं जिसमे दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, सप्तऋषियों पुरातन काल से निर्मित है। यह मागधीय भितिचित्र संस्कृति का द्योतक हैं है।231 ई. पू. में बराबर पर्वत समूह में निर्मित गुफाएं और भितिचित्र समुन्नत दिशा में थी। यह स्थल बिहार की शैल चित्र कला, वास्तु कला तथा मूर्ति कला की सांस्कृतिक विरासत है।750 से 1150 ई. तक पाल शैली चित्र कला के लिए प्रसिद्ध है। बौद्ध धर्म के बज्र यान संप्रदाय के धिम्मन और वितपाल, तथा 15 वीं सदी के कल्पसुत्र तथा कलाकाचार्य शैल चित्र एवं चित्र कला का रूप दिया है। चित्र कला को 14 वीं सदी में वक्कन शैली , लोदी खुलादर शैली, राजस्थानी शैली, पहाड़ी शैली,15 वीं सदी में मेवाड़ शैली, 18 वीं सदी में जयपुर शैली, 17 वीं सदी में किशनगढ़ शैली,, राजपूत शैली, वशौली शैली,18 वीं सदी में कांगड़ा शैली, मैसूर चित्रकला,, बंगाल की चित्र कला शैली तथा बिहार का मधुबनी चित्रकला शैली, पतुआ कला,, पिथोरा, सौरा चित्र कला प्रसिद्ध है।
प्राचीन शैल चित्र का रूप 2020 वर्ष पूर्व मगध शैल चित्र एवं कोहबर संस्कृति का उदय स्थली था। मगध के चित्र परंपरा का रूप दैत्य राज बाणासुर के मंत्री विभांड की पुत्री दिव्य ज्ञानवती चित्रलेखा थी। मगध की शैल चित्र भितिचित्र और कॊहवर संस्कृति की परंपरा आज भी प्रचलित है। कॊहवर की परंपरा नवादा जिले का शुंग पर्वत की एक श्रृंखला को कोहवरवा पहाड़ी पर योगिया मादन गुफा में शैल चित्र है। यह परंपरा बिहार में वर वधू की प्रथम मिलन स्थली को कोहवर का रूप दे कर कोहवर गृह के दीवारों पर चित्र बना कर सजया जाता है। यह विवाहिता की कमरे महिलाओं द्वारा सजाई जाती है। राजा निमी के पुत्र मीथी ने मिथिला देश की स्थापना और मिथि के पुत्र जनक ने जनकपुर ( नेपाल ) में मिथिला की रजधानी बनाने के बाद तथा मिथिला के राजा सीरध्वज जनक ने अपनी पुत्री माता सीता और भगवान् राम के विवाह में जनकपुर की नारियों द्वारा कोहवर की परंपरा कायम की गई थी। मधुबनी पेंटिंग की परंपरा 17 वीं सदी में प्रारंभ हुई। यह मधुबनी चित्र कला का प्रदर्शन मधुबनी रेलवे स्टेशन और पटना में दिखाई देती है। प्राचीन काल में मगध चित्र शैली समुन्नत दिशा में थी। चित्र कला की परंपरा विभिन्न राजाओं ने प्रश्रय देकर विकास किया। शैल चित्र, दीवार चित्र या अन्य चित्र संस्कृति की अमिट छाप है।
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