सोमवार, जून 28, 2021

शिखा : ज्ञान एवं शांति का प्रतीक...


          


              सनातन धर्म शास्त्र के अनुसार सनातन धर्म में इंसान को  चोटी रखने से मानसिक शांति, स्वास्थ्य और ज्ञान संस्कार होते है । सिख, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के अनुसार  धर्म में नियम परंपराओं व मान्यताओं के आधार पर   वैज्ञानिक महत्व के कारण  हैं। सनातन धर्म के  विभिन्न संप्रदायों में परंपरा के अनुसार उपासना , पूजा, कर्मकांड, और यज्ञ आदि से कार्य कराने वालों को चोटी रखना  है । सुश्रुत संहिता में चोटी रखने का कारण, महत्व और  नियम और  चोटी के महत्व और वैज्ञानिक तथ्य है। सुश्रुत संहिता में उल्लेख किया गया है कि  चोटी सिर पर कहां और कितनी रखनी चाहिए।बच्चे का जब पहले साल के अंत, तीसरे साल या पांचवें साल में जब मुंडन किया जाता है तो सिर में थोड़ी बाल रख दिए जाने के लिए चोटी को  मुंडन संस्कार कहते हैं। सिर पर शिखा या चोटी रखने का संस्कार यज्ञोपवित या उपनयन संस्कार में  किया जाता है। सिर के जिस स्थान पर चोटी को सहस्त्रार चक्र कहते हैं। चोटी के नीचे  मनुष्य की आत्मा निवास करती है। विज्ञान के अनुसार चोटी स्थल मंस्तिस्क केंद्र से बुद्धि, मन, और शरीर के अंगों को नियंत्रित किया जाता है। चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान रहने के कारण चोटी  गाय के खुर के बराबर  रखी जाती है।सुश्रुत संहिता में उल्लेख है कि मस्तक ऊपर सिर पर जहां बालों का आवृत (भंवर) होने से  सम्पूर्ण नाडिय़ों व संधियों का मेल होता है। भवर स्थान को 'अधिपतिमर्म' कहा गया  है। अधिपतिमर्म के  स्‍थान पर चोंट लगने पर मनुष्य की तत्काल मौत हो जाती है।सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों-कान, नाक, जीभ, आंख  और कर्मेन्द्रियों-हाथ, पैर, गुदा, इंद्रिय  का संबंध मस्तुलिंगंग  है। मस्तिष्क मस्तुलिंगंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं, उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है। माना जाता है कि मस्तिस्क को ठंडक की जरूरत होती है। जिसके लिए क्षौर कर्म और गोखुर के बराबर शिखा रखनी जरूरी होती है । व्यक्ति में अज्ञानता में या फैशन में आकर चोटी रखने पर फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। शिखा (चोटी) स्थान शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान मनुष्य के मस्तिष्क को संतुलित रखने का काम करती है।वैज्ञानिक के अनुसार  सिर पर शिखा वाले भाग के नीचे सुषुम्ना नाड़ी कपाल तन्त्र की सबसे अधिक संवेदनशील तथा उस भाग के खुला होने के कारण वातावरण से उष्मा व विद्युत-चुम्बकी य तरंगों का मस्तिष्क से आदान प्रदान करता है।शिखा ( चोटी) नही रहने से  वातावरण के साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है । शिखा ताप को आसानी से संतुलित और , ऊष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से ऊष्मा के स्वतः आदान - प्रदान को रोक से  शिखा रखने वाले मनुष्य का मस्तिष्क.का  बाह्य प्रभाव से अपेक्षाकृत कम प्रभावित और मस्तिष्क संतुलित रहता है ।वैज्ञानिकों के अनुसार  शरीर में पांच चक्र तथा, सिर के बीचों बीच मौजूद सहस्राह चक्र को प्रथम एवं, 'मूलाधार चक्र'  रीढ़ के निचले हिस्से से शरीर का आखिरी चक्र माना गया है । महर्षियो , ऋषियों , मुनियों और वैज्ञानिकों द्वारा शिखा का महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । शिखा रखने से ज्ञान , बुद्धि ,शांति तथा शारीरिक क्षमता का विकास होते है । वैदिक और संहिताओं में चोटी रखने का महत्व दिया गया है ।


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