बुधवार, मई 19, 2021

हनुमान जी : शक्ति और भक्ति के द्योतक ...


             भारतीय वाङ्गमय साहित्य में हनुमान जी के कृतित्व और व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है । साधना और भक्ति में हनुमानजी , शक्ति , बल , संकट में  में बजरंगबली साथ है ।  झारखंड के गुमला के अंजना के अंजनेरी पर्वत  गुफा में आंजन प्रदेश का राजा केशरी की भार्या माता  अंजनी के गर्भ से केशरी नंदन हनुमानजी का अवतरण चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा त्रेतायुग में  हुआ है । अंजना गुफा के इर्द गिर्द  360 शिव लिंग स्थापित है । भगवान शिव ने हनुमान का अवतार लिया था। हनुमान जी की पूजा  मंगलवार और शनिवार को किया जाता है।  हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करने पर  भक्त के जीवन में सभी कष्टों का निवारण हनुमान जी करते है । हनुमान जी का जन्म झारखंड के गुमला जिला मुख्यालय से करीब 21 किलोमीटर दूर आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। इसी वजह से इस जगह का नाम आंजन धाम है। माता अंजनी का निवास स्थान होने के कारण स्थान को आंजनेय उल्लेख किया गया है। पवित्र पहाड़ों में एक ऐसी भी गुफा है जिसका संबंध सीधा-सीधा त्रेतायुग से जुड़ा है। माता अंजनी द्वारा अंजना के 360 शिवलिंग को  प्रति दिन  भगवान शिव की आराधना , उपसना  की जाती  थीं ।  झारखण्ड के बाद हरियाणा के कैथल को  हनुमान जी का जन्म स्थान बताया जाता है। कैथल का प्राचीन नाम कपिस्थल था।  पुराणों के अनुसार कैथल या  कपिस्थल  में वानर राज हनुमान का जन्म स्थान है। हनुमान जी के पिता केसरी को कपिराज के नाम से  जाना जाता है। हंपी, कर्नाटक - कर्णाटक के हम्पी में भी हनुमान जी के एक प्राचीन मंदिर स्थापित है। शास्त्रों , वाल्मीकि रामायण तथा रामचरितमानस में हम्पी क्षेत्र प्राचीन की किष्किंधा नगरी है । अंजनेरी ,  नासिक जिला, महाराष्ट्र -  हनुमान जी का जन्म   अंजनेरी पर्वत पर हुआ था। अंजनेरी पर्वत पर माता अंजनी का मंदिर है और हनुमान जी का मंदिर उससे और अधिक ऊंचाई पर स्थित है। झारखंड का गुमला जिले के आंजन को आंजन , अंजनेरी , आंजन धाम आञ्जनेय कहा गया है ।
मता अंजनी -  समुद्र मंथन से पूँजीकथला अप्सरा इंद्र के दरबार में थी ।  पूँजीकथला ने  महा ऋषि दुर्वासा नदी के  ध्यान मुद्रा में थे ।  ध्यान मुद्रा में दुर्वासा ऋषि पर  पुंजत्थल अप्सरा द्वारा पर बार-बार पानी फेंकने के कारण ऋषि दुर्वासा की  तपस्या भंग हो गयी थी । ध्यानस्त ऋषि दुर्वासा की तपस्या भंग होने के पश्चात ऋषि दुर्वासा ने पुंजिक थला को श्राप दे दिया कि तुम इसी समय वानरी हो जाओ और पुंजिक थला उसी समय वानरी बन गई और पेड़ों पर इधर उधर घूमने लगी ।  देवताओं के बहुत विनती करने के बाद ऋषि ने उन्हें बताया की इनका दूसरा जन्म होगा और तुम वानरी  रहोगी लेकिन अपनी इच्छा के अनुसार तुम अपना रूप बदल सकोगी।  केसरी  राजा वहां पर एक मृग का शिकार करते हुए आए वह मृग घायल था और वह ऋषि के आश्रम में छुप गया था । ऋषि ने राजा केसरी से कहा कि तुम मेरे आश्रम से इसी समय अतिशीघ्र चले जाओ नहीं तो मैं तुम्हें श्राप दे दूंगा यह सुनकर केशरी हसने लगे और बोले मैं किसी श्राप को नहीं मानता हूं क्रोध में आकर ऋषि ने केसरी श्राप दे दिया और कहा कि तुम भी बांदर हो जाओ । केसरी और पुंजिक थला और ऋषि से शापमुक्ति के लिए  भगवान शिव की तपस्या करने लगे थे । भगवान शिव ने केसरी और पूँजीकथला की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने वरदान दिया कि तुम अगले जन्म में वानर के रूप में  जन्म लोगे लेकिन तुम लोग इच्छा के अनुसार अपना रूप बदल सकोगे । भगवान शिव ने  कहा कि तुम दोनों को एक पुत्र होगा । बहुत तेजस्वी और बहुत पराक्रमी होगा जिनका नाम युगों युगों तक लिया जाएगा फिर उन दोनों वानरों का शरीर वही पर त्याग कर वह दोनों अलग-अलग रूप में अलग अलग राज्य में जन्म लिए । जिसमें केसरी वासुकी राजा के यहां केशरी जन्म लिए वह वानरों के राजा थे और पुंज थला पुरू देश के राजा पुंजर के पुंज थला पुत्री अंजना जन्मी थी । महाराज पुंजर ने पुत्री अंजना का विवाह महाराज वासुकी के पुत्र केसरी से किया था । कुछ दिनों के उपरांत उन्हें एक पुत्र हुआ जिसका नाम बजरंगबली हनुमान केसरी नंदन आदि नामों से जाना जाता है उन्हें पवन पुत्र भी कहा जाता है क्योंकि हनुमान जी के पालनहार वायु देवता ही हैं उन्होंने हनुमान जी को जन्म से लेकर हमेशा उनका साथ दिया है और हर वक्त पर मिले हैं और उनका पालन पोषण भी वायु देवता के निकट ही हुआ है इसलिए उनको पवन पुत्र भी कहा जाता है और यह थी माता अंजना की विस्तृत कहानी।ज्योतिषीयों की गणना के अनुसार बजरंगबली जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग त्रेतायुग  में हुआ था। हनुमानजी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे और माता अंजनी थी। हनुमान जी को पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है और उनके पिता वायु देव भी माने जाते है। राजस्थान के सालासर व मेहंदीपुर धाम में इनके विशाल एवं भव्य मन्दिर है।पुंजिकस्थली देवराज इन्द्र की सभा में एक अप्सरा थीं। एक बार जब दुर्वासा ऋषि इन्द्र की सभा में उपस्थित थे, तब अप्सरा पुंजिकस्थली बार-बार अंदर-बाहर आ-जा रही थीं। इससे गुस्सा होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें वानरी होने का शाप दे दिया। पुंजिकस्थली ने क्षमा मांगी, तो ऋर्षि ने इच्छानुसार रूप धारण करने का वर भी दिया। वर्षों बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी रूप में जन्म लिया। उनका नाम अंजनी रखा गया। विवाह योग्य होने पर पिता ने अपनी सुंदर पुत्री का विवाह महान पराक्रमी कपि शिरोमणी वानरराज केसरी से कर दिया। इस रूप में पुंजिकस्थली माता अंजनी कहलाईं है ।एक बार घूमते हुए वानरराज केसरी प्रभास तीर्थ के निकट पहुंचे। उन्होंने देखा कि बहुत-से ऋषि वहां आए हुए हैं। कुछ साधु किनारे पर आसन लगाकर पूजा अर्चना कर रहे थे। उसी समय वहां एक विशाल हाथी आ गया और उसने ऋषियों को मारना प्रारंभ कर दिया।ऋषि भारद्वाज आसन पर शांत होकर बैठे थे, वह दुष्ट हाथी उनकी ओर झपटा। पास के पर्वत शिखर से केसरी ने हाथी को यूं उत्पात मचाते देखा तब उन्होंने बलपूर्वक हाथी के बड़े-बड़े दांत उखाड़ दिए और मार डाला।हाथी के मारे जाने पर प्रसन्न होकर ऋर्षियों ने कहा, 'वर मांगो वानरराज।' केसरी ने वरदान मांगा, ' प्रभु , इच्छानुसार रूप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी तथा रुद्र के समान पुत्र आप मुझे प्रदान करें।' ऋषियों ने 'तथास्तु' कहा और वो चले गए ।माता अंजनी, मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर पर जा रही थी। वे डूबते हुए सूरज की खूबसूरती को निहार रही थीं। अचानक तेज हवाएं चलने लगीं।  उनका वस्त्र कुछ उड़-सा गया। उन्होंने चारों तरफ देखा लेकिन आस-पास के वृक्षों के पत्ते तक नहीं हिल रहे थे। माता अंजनी ने विचार किया कि राक्षस अदृश्य होकर धृष्टता कर रहा है । माता अंजलि जोर से बोलीं, 'कौन दुष्ट मुझ पतिपरायण स्त्री का अपमान करने की चेष्टा करता है । अंजनी के समक्ष  पवन देव प्रकट हो कर कहा कि 'देवी, क्रोध नही करें और मुझे क्षमा करें।आपके पति को ऋषियों ने मेरे समान पराक्रमी पुत्र होने का वरदान दिया है। उन्हीं महात्माओं के वचनों से विवश होकर मैंने आपके शरीर का स्पर्श किया है। मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्राप्त होगा।पवन ने कहा कि  'भगवान रुद्र मेरे स्पर्श द्वारा आप में प्रविस्ट हुए हैं। वही आपके पुत्र रूप में प्रकट होंगे।' वानरराज केसरी के क्षेत्र में भगवान रुद्र ने स्वयं अवतार धारण किया। वानरराज केसरी कई भार्या माता अंजनी के गर्भ से चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि मंगलवार त्रेतायुग में भगवान शिव का 11 वाँ  अवतरण हनुमानजी अवतरित हुए है । हनुमानजी को रामदूत , केशरीनंदन , मारुतिनंदन , संकटमोचन , अंजनिपुत्र , अंजनिनन्दन , महावीर और बजरंगबली कहा गया है । भगवान सूर्य द्वारा हनुमान की शिक्षा दीक्षा , वेदों , शास्त्रों , उपनिषदों , वेदांगों की मिली वही सभी देवों ने अपनी अपनी शक्ति , भक्ति, ज्ञान , बुद्धि, विवेक  , माता सीता ने  अष्टसिद्धि , नवनिधियाँ , भगवान राम द्वारा  रामदूत , भक्ति का वरदान दिया गया  है । वाल्मीकीय रामायण में सुंदरकांड और रामचरित मानस में सुंदर कांड  में हनुमानजी की यश , कृति , वीरता , बुद्धि और ज्ञान का उल्लेख किया वही रामचरित मानस के रचयिता तुलसी दास द्वारा हनुमान चालीसा , हनुमानाष्टक , बजरंगबाण हनुमान जी को समर्पित किया गया है ।
                     

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