रविवार, मई 16, 2021

मगध साहित्यवाद का पोषक साहित्यकार ...


    मागधीय साहित्यकार मागधी के पोषक है । मागधी के शब्दों की भाषा प्राकृत अक्षरों का समन्वय बोधक है । प्राकृत का रूप मागधी भाषा का उद्भव से लेकर अद्यतन रचनाओं के प्रक्रिया के आधार पर मगही साहित्य का कालखंडों में विभाजित किया गया है और संस्कृत , हिंदी , तथा अनेक भाषाओं के लक्षणों के परख कर मगही साहित्य के स्वरूप और प्रयोजन एवं उद्देश्य का निरूपण हुआ है। मगही साहित्य में सभी साहित्यिक तत्वों का समावेशित है जिसपर भाषा के साहित्य होने का सुगर्व है। पाली मागधी, प्राकृत मागधी, अपभ्रंश मागधी ,  आधुनिक मगही भाषा में लिखी गयी है। ‘सा मागधी मूलभाषा’ से यह बोध होता है कि आजीवक तीर्थंकर मक्खलि गोसाल, जिन महावीर और गौतम बुद्ध के समय मागधी ही मूल भाषा थी जिसका प्रचलन जन सामान्य अपने दैनंदिन जीवन में करते थे। मौर्यकाल में यह राज-काज की भाषा बनी क्योंकि अशोक के शिलालेखों पर उत्कीर्ण भाषा यही है। जैन, बौद्ध और सिद्धों के  प्राचीन ग्रंथ, साहित्य एवं उपदेश मगही में ही लिपिबद्ध हुए हैं। मागधी  से  आर्य भाषाओं का विकास हुआ है। तीर्थंकर, पालि भाषा का साहित्य, प्राकृत, बुद्धघोष, भरत मुनि, महावीर, मागधी, मगही, मक्खलि गोशाल, मौद्गल्यायन, मौर्य राजवंश, राहुल सांकृत्यायन, सिद्ध साहित्य, संस्कृत भाषा, हिन्द-आर्य भाषाएँ, जैन ग्रंथ, जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन, गौतम बुद्ध, आजीविक, अपभ्रंश, अर्धमागधी, अशोक के अभिलेख। जैन धर्म में तीर्थंकर , अरिहंत, जिनेन्द्२४ व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है ।  स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान (केवल्य ज्ञान) प्राप्त करते है। जो संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते है, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर वह व्यक्ति हैं जिन्होनें पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर विजय प्राप्त की हो)। तीर्थंकर  "तीर्थ" (पायाब),  जैन समुदाय के संस्थापक हैं, "पायाब" के रूप में "मानव कष्ट की नदी" को पार कराता है। पालि साहित्य में बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान् बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है।
सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र । इसकी रचना मूलतः तीसरी-चौथी शताब्दी ईसापूर्व में की गयी थी। भारतीय आर्यभाषा के मध्ययुग में जो अनेक प्रादेशिक भाषाएँ विकसित हुई उनका सामान्य नाम प्राकृत है और उन भाषाओं में जो ग्रंथ रचे गए उन सबको समुच्चय रूप से प्राकृत साहित्य कहा जाता है। विकास की दृष्टि से भाषावैज्ञानिकों ने भारत में आर्यभाषा के तीन स्तर नियत किए हैं - प्राचीन, मध्यकालीन और अर्वाचीन। प्राचीन स्तर की भाषाएँ वैदिक संस्कृत और संस्कृत हैं, जिनके विकास का काल अनुमानत: ई. पू. है ।बुद्धघोष, पालि साहित्य के एक महान भारतीय बौद्धाचार्य और विद्वान थे। भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र लिखा। इनका समय विवादास्पद हैं। इन्हें 400 ई॰पू॰ 100 ई॰ सन् के बीच किसी समय का माना जाता है। भरत बड़े प्रतिभाशाली थे। इतना स्पष्ट है कि भरतमुनि रचित नाट्यशास्त्र से परिचय था। इनका 'नाट्यशास्त्र' भारतीय नाट्य और काव्यशास्त्र का आदिग्रन्थ है।इसमें सर्वप्रथम रस सिद्धांत की चर्चा तथा इसके प्रसिद्द सूत्र -'विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:" की स्थापना की गयी है| इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छंदशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है। 'भारतीय नाट्यशास्त्र' अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। आचार्य भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियो को काव्य शास्त्र का उपदेश दिया। विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफ़ी क्षेपक बताते हैं श्रेणी:संस्कृत आचार्य है।भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर है। भगवान महावीर स्वामी ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है। .
मागधी उस प्राकृत का नाम है जो प्राचीन काल में मगध (दक्षिण बिहार) प्रदेश में प्रचलित थी। इस भाषा के उल्लेख महावीर और बुद्ध के काल से मिलते हैं। जैन आगमों के अनुसार तीर्थकर महावीर का उपदेश इसी भाषा अथवा उसी के रूपांतर अर्धमागधी प्राकृत में होता था। पालि त्रिपिटक में भी भगवान्‌ बुद्ध के उपदेशों की भाषा को मागधी कहा गया है । मागधी भाषा भारत के मध्य पूर्व में बोली जाने वाली एक प्रमुख  है । मगही बोलनेवालों की संख्या (2002) लगभग १ करोड़ ३० लाख है। मुख्य रूप से यह बिहार के गया,पटना,राजगीर,नालंदा,जहानाबाद,अरवल,नवादा,शेखपुरा,लखीसराय,जमुई और औरंगाबाद के इलाकों में बोली जाती है। मगही का धार्मिक भाषा के रूप में भी पहचान है। कई जैन धर्मग्रंथ मगही भाषा में लिखे गए हैं। मुख्य रूप से वाचिक परंपरा के रूप में यह आज भी जीवित है। मगही का पहला महाकाव्य गौतम महाकवि योगेश द्वारा 1960-62 के बीच लिखा गया। दर्जनो पुरस्कारो से सम्मानित योगेश्वर प्रसाद सिन्ह योगेश आधुनिक मगही के सबसे लोकप्रिय कवि माने जाते है। 23 अक्तुबर को उनकी जयन्ति मगही दिवस के रूप मे मनाई जा रही है। मगही भाषा में विशेष योगदान हेतु सन् 2002 में डॉ॰रामप्रसाद सिंह को दिया गया। ऐसा कुछ विद्वानों का मानना है कि मगही संस्कृत भाषा से जन्मी हिन्द आर्य भाषा है, परंतु महावीर और बुद्ध दोनों के उपदेश की भाषा मागधी ही थी। बुद्ध ने भाषा की प्राचीनता के सवाल पर स्पष्ट कहा है- ‘सा मागधी मूल भाषा’। अतः मगही ‘मागधी’ से ही निकली भाषा है। 
मक्खलि गोसाल या मक्खलि गोशाल (560-484 ईसा पूर्व) 6ठी सदी के एक प्रमुख आजीवक दार्शनिक हैं। इन्हें नास्तिक परंपरा के सबसे लोकप्रिय ‘आजीवक संप्रदाय’ का संस्थापक, 24वां तीर्थंकर और ‘नियतिवाद’ का प्रवर्तक दार्शनिक माना जाता है। जैन और बौद्ध ग्रंथों में इनका वर्णन ‘मक्खलिपुत्त गोशाल’, ‘गोशालक मंखलिपुत्त’ के रूप में आया है जबकि ‘महाभारत’ के शांति पर्व में इनको ‘मंकि’ ऋषि कहा गया है। ये महावीर (547-467 ईसा पूर्व) और बुद्ध (550-483 ईसा पूर्व) के समकालीन थे। इतिहासकारों का मानना है कि जैन, बौद्ध और चार्वाक-लोकायत की भौतिकवादी व नास्तिक दार्शनिक परंपराएं मक्खलि गोसाल के आजीवक दर्शन की ही छायाएं हहै । मौद्गल्यायन नाम के कम से कम दो व्यक्ति हुए हैं, एक महात्मा बुद्ध के शिष्य तथा दूसरे वैयाकरण हैं। मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश था। इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। ३१६ ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद् हुआ। 
 सिद्धों का संबंध बौद्ध धर्म की ब्रजयानी शाखा भारत के पूर्वी भाग में सक्रिय थे। सिद्धों की संख्या 84  है ,  जिनमें सरहप्पा, शवरप्पा, लुइप्पा, डोम्भिप्पा, कुक्कुरिप्पा आदि मुख्य हैं। सरहप्पा प्रथम सिद्ध कवि थे। इन्होंने ब्राह्मणवाद, जातिवाद और वाह्याचारों पर प्रहार किया। देहवाद का महिमा मंडन किया और सहज साधना पर बल दिया। ये महासुखवाद द्वारा ईश्वरत्व की प्राप्ति पर बल देते हैं।संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती  कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक था ।भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। हिन्द-आर्य भाषाएँ हिन्द-यूरोपीय भाषाओं की हिन्द-ईरानी शाखा की एक उपशाखा हैं, जिसे 'भारतीय उपशाखा' भी कहा जाता है। इनमें से अधिकतर भाषाएँ संस्कृत से जन्मी हैं। हिन्द-आर्य भाषाओं में आदि-हिन्द-यूरोपीय भाषा के 'घ', 'ध' और 'फ' जैसे व्यंजन परिरक्षित हैं, जो अन्य शाखाओं में लुप्त हो गये हैं। इस समूह में यह भाषाएँ आती हैं: संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, बांग्ला, कश्मीरी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, रोमानी, असमिया, गुजराती, मराठी, इत्यादि है। जैन साहित्य बहुत विशाल है। अधिकांश में वह धार्मिक साहित्य ही है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में यह साहित्य लिखा गया है। महावीर की प्रवृत्तियों का केंद्र मगध रहा है, इसलिये उन्होंने यहाँ की लोकभाषा अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया जो उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित है। ये आगम ४५ हैं और इन्हें श्वेतांबर जैन प्रमाण मानते हैं, दिगंबर जैन नहीं। दिंगबरों के अनुसार आगम साहित्य कालदोष से विच्छिन्न हो गया है। दिगंबर षट्खंडागम को स्वीकार करते हैं जो १२वें अंगदृष्टिवाद का अंश माना गया है। दिगंबरों के प्राचीन साहित्य की भाषा शौरसेनी है। आगे चलकर अपभ्रंश तथा अपभ्रंश की उत्तरकालीन लोक-भाषाओं में जैन पंडितों ने अपनी रचनाएँ लिखकर भाषा साहित्य को समृद्ध बनाया। आदिकालीन साहित्य में जैन साहित्य के ग्रन्थ सर्वाधिक संख्या में और सबसे प्रमाणिक रूप में मिलते हैं। जैन रचनाकारों ने पुराण काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य, रास काव्य आदि विविध प्रकार के ग्रंथ रचे। स्वयंभू, पुष्प दंत, हेमचंद्र, सोमप्रभ सूरी आदि मुख्य जैन कवि हैं। इन्होंने हिंदुओं में प्रचलित लोक कथाओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया और परंपरा से अलग उसकी परिणति अपने मतानुकूल दिखाई। .जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1851-1941) अंग्रेजों के जमाने में "इंडियन सिविल सर्विस" के कर्मचारी थे। भारतीय विद्याविशारदों में, विशेषत: भाषाविज्ञान के क्षेत्र में, उनका स्थान अमर है। सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन "लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया" के प्रणेता के रूप में अमर हैं। ग्रियर्सन को भारतीय संस्कृति और यहाँ के निवासियों के प्रति अगाध प्रेम था। भारतीय भाषाविज्ञान के वे महान उन्नायक थे। नव्य भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से उन्हें बीम्स, भांडारकर और हार्नली के समकक्ष रखा जा सकता है। एक सहृदय व्यक्ति के रूप में भी वे भारतवासियों की श्रद्धा के पात्र बने। गौतम बुद्ध  जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण की शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। उनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थी जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए।  मगही साहित्य और गौतम बुद्ध -  महाकाश्यप एक आजिविक से मिल रहे हैं और परिनिर्वाण के बारे में ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। आजीविक या ‘आजीवक’, दुनिया की प्राचीन दर्शन परंपरा में भारतीय जमीन पर विकसित हुआ पहला नास्तिकवादी और भौतिकवादी सम्प्रदाय था। भारतीय दर्शन और इतिहास के अध्येताओं के अनुसार आजीवक संप्रदाय की स्थापना मक्खलि गोसाल (गोशालक) ने की थी। ईसापूर्व 5वीं सदी में 24वें जैन तीर्थंकर महावीर और महात्मा बुद्ध के उभार के पहले यह भारतीय भू-भाग पर प्रचलित सबसे प्रभावशाली दर्शन था। विद्वानों ने आजीवक संप्रदाय के दर्शन को ‘नियतिवाद’ के रूप में चिन्हित किया है। ऐसा माना जाता है कि आजीविक श्रमण नग्न रहते और परिव्राजकों की तरह घूमते थे। ईश्वर, पुनर्जन्म और कर्म यानी कर्मकांड में उनका विश्वास नहीं था। आजीवक संप्रदाय का तत्कालीन जनमानस और राज्यसत्ता पर कितना प्रभाव था, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि अशोक और उसके पोते दशरथ ने बिहार के जहानाबाद (पुराना गया जिला) दशरथ ने स्थित बराबर की पहाड़ियों में सात गुफाओं का निर्माण कर उन्हें आजीवकों को समर्पित किया था। तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में किसी भारतीय राजा द्वारा धर्मविशेष के लिए निर्मित किए गए ऐसे किसी दृष्टांत का विवरण इतिहास में नहीं मिलता। अपभ्रंश, आधुनिक भाषाओं के उदय से पहले उत्तर भारत में बोलचाल और साहित्य रचना की सबसे जीवंत और प्रमुख भाषा (समय लगभग छठी से १२वीं शताब्दी)। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से अपभ्रंश भारतीय आर्यभाषा के मध्यकाल की अंतिम अवस्था है जो प्राकृत और आधुनिक भाषाओं के बीच की स्थिति है। अपभ्रंश के कवियों ने अपनी भाषा को केवल 'भासा', 'देसी भासा' अथवा 'गामेल्ल भासा' (ग्रामीण भाषा) कहा है, परंतु संस्कृत के व्याकरणों और अलंकारग्रंथों में उस भाषा के लिए प्रायः 'अपभ्रंश' तथा कहीं-कहीं 'अपभ्रष्ट' संज्ञा का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार अपभ्रंश नाम संस्कृत के आचार्यों का दिया हुआ है, जो आपाततः तिरस्कारसूचक प्रतीत होता है। महाभाष्यकार पतंजलि ने जिस प्रकार 'अपभ्रंश' शब्द का प्रयोग किया है उससे पता चलता है कि संस्कृत या साधु शब्द के लोकप्रचलित विविध रूप अपभ्रंश या अपशब्द कहलाते थे। इस प्रकार प्रतिमान से च्युत, स्खलित, भ्रष्ट अथवा विकृत शब्दों को अपभ्रंश की संज्ञा दी गई और आगे चलकर यह संज्ञा पूरी भाषा के लिए स्वीकृत हो गई। दंडी (सातवीं शती) के कथन से इस तथ्य की पुष्टि होती है। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि शास्त्र अर्थात् व्याकरण शास्त्र में संस्कृत से इतर शब्दों को अपभ्रंश कहा जाता है; इस प्रकार पालि-प्राकृत-अपभ्रंश सभी के शब्द 'अपभ्रंश' संज्ञा के अंतर्गत आ जाते हैं, फिर भी पालि प्राकृत को 'अपभ्रंश' नाम नहीं दिया गया। 
मध्य भारतीय आर्य परिवार की भाषा अर्धमागधी संस्कृत और आधुनिक भारतीय भाषाओं के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह प्राचीन काल में मगध की साहित्यिक एवं बोलचाल की भाषा थी। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इसी भाषा में अपने धर्मोपदेश किए थे। आगे चलकर महावीर के शिष्यों ने भी महावीर के उपदेशों का संग्रह अर्धमागधी में किया जो आगम नाम से प्रसिद्ध हुए। अशोक के शिलालेख पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और अफ़्ग़ानिस्तान में मिलें हैं ब्रिटिश संग्राहलय में छठे शिलालेख का एक हिस्सा अरामाई का द्विभाषीय शिलालेख सारनाथ के स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में शिलालेख मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफ़ाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं। इन शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर ज़ोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मगधी भाषा में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को "प्रियदर्शी" (प्राकृत में "पियदस्सी") और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में "देवानम्पिय") की उपाधि से बुलाते हैं । मगध के मगही , हिंदी , संस्कृत के साहित्य सेवी  का संक्षिप्त विवरण 
 01 : सत्येंद्र कुमार पाठक - बिहार राज्य के अरवल जिले का करपी प्रखंड मुख्यालय करपी में सत्येन्द्र कुमार पाठक का जन्म 15 जून 1957 ई. को शाकद्वीपीय ब्राह्मण में हुआ है । इनके पिता सच्चिदानंद पाठक ज्योतिष एवं कर्मकांड के  विद्वान , माता ललिता देवी तथा पत्नी सत्यभामा देवी धर्मपरायण थी । सत्येंद्र कुमार पाठक के नवीन कुमार पाठक , प्रवीण कुमार पाठक पुत्र तथा इंदु , कुमुद , मेनका , उर्वशी तथा प्रियंका पुत्री और दिव्यांशु पौत्र , तीन भाई है । इन्होंने शास्त्री प्रतिष्ठा , आई ए , विशारद , बी टी योग्यता हासील करने के बाद सरकारी विद्यालयों में 1 नवंबर 1977 ई. से 30 जून 2017 तक शिक्षक के पद पर कार्य कर सेवानिवृत हो कर पेंसन्धारी है । 1975 से विभिन्न साप्ताहिक , दैनिक समाचार पत्रों में संबाद प्रेषण का कार्य किया है । पत्रकारिता के क्षेत्र में सत्येन्द्र कुमार पाठक ने गया से प्रकाशित गया समाचार , मगध धरती , मगधाग्नि हिंदी साप्ताहिक , पटना से प्रकाशित हिंदी दैनिक आर्यावर्त , आत्मकथा , पाटलिपुत्र टाइम्स , हिंदुस्तान , आज , जयपुर राजस्थान  से प्रकाशित यंगलीडर में संबाद , टिकरी गया का समस्या दूत का सह संपादक , शिप्रा का उपसंपादक , 1981में हिंदी  मासिक पत्रिका मगध ज्योति तथा 1983 में हिंदी साप्ताहिक  मगध ज्योति का संपादक के रूप में कार्य किया है । पटना से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र आर्यावर्त , प्रदीप , पाटलिपुत्र टाइम्स , आज , जनशक्ति , आत्मकथा , हिंदुस्तान , प्रभात खबर में सबद प्रेषण किया । 2019 ई . से बुलंद समाचार , दिब्य रश्मि पोर्टल में संलेख प्रकाशित तथा मगध ज्योति ब्लॉग पॉट में संलेख प्रकाशित कर रहे है ।सार्वभौम शाकद्वीपीय ब्राह्मण महासंघ झारखण्ड से संबद्ध  रांची से प्रकाशित मगबन्धु (अखिल) जुलाई दिसम्बर 2020 का स्वतंत्रता सेनानी विशेषांक में संलेख प्रकाशित किया गया है। समाज सेवा - सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में समाजसेवा का कार्य किया है । 1976 ई. में करपी अरवल प्रखंड में आई भीषण बाढ़ में करपी प्रखंड दुग्ध  दलिया समिति गया का सदस्य बन कर बढ़  पीड़ितों की सहायता की वहीं करपी प्रखंड परिवार कल्याण समिति गया का सदस्य , जीवन ज्योति मंसूरी का सदस्य , शास्त्र धर्म प्रचार सभा कलकत्ता का सदस्य , जहानाबाद अनुमंडल किसान सुरक्षा समिति का अध्यक्ष , अखिल भारतीय सामाजिक स्वास्थ्य संघ का सदस्य , मगही मंच करपी प्रखंड के अध्यक्ष , भारतीय समाज सुधारक संघ जहानाबाद का अध्यक्ष ,पंडित नेहरू क्लब करपी का अध्यक्ष , करपी प्रखंड विद्युत उपभोक्ता समिति का अध्यक्ष , मगध बुद्धि मंच , बिहार राज्य मगही विकास मंच के महासचिव 1978 ई. में इमममगंज प्रखंड शिक्षा समिति गया का सदस्य , 1980 में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का सदस्य , 2007 बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना के स्थायी समिति के सदस्य  1992 ई . में सच्चिदानंद शिक्षा एवं समाज कल्याण संस्थान का सचिव , जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन जहानाबाद के उपाध्यक्ष , जहानाबाद जिला विरासत विकास समिति का अध्यक्ष , बिहार अराजपत्रित प्रारंभिक शिक्षक संघ जिला जहानाबाद का उप संजोजक , बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ ( गोप गुट ) जहानाबाद का संयुक्त  सचिव , 2008 ई. में बिहार राज्य क्रांतिकारी शिक्षक संघ का राज्य प्रवक्ता , 1996 ई. में ज्ञान गुहार अरवल का मुख्य साधन सेवी , 2003 ई. में भारतीय पुनर्वास परिषद द्वारा आयोजित अखिल भारतीय विकलांगता  कन्वेंशन दिल्ली में विकलांगो के विकाश में शामिल हुए । 1989 ई. में इंडियन प्रेस काउंसिल भोपाल का सदस्य हुए हैं । सम्मान - सत्येन्द्र कुमार पाठक को 14 सितंबर 1998 ई . हिंदी दिवस पर जैमिनि अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा हिंदी पत्रकारिता के उत्कृष्ट कार्य के लिए आचार्य उपाधि से अलंकृत किये गए , 23 अक्तूवर 2013 को मगही अकादमी पटना द्वारा मगही साहित्य में विशेष योगदान के लिये महाकवि योगेश मगही अकादमी शिखर सम्मान 2013  से सम्मानित , स्नातकोत्तर हिंदी विभाग मगध विश्वविद्यालय बोधगया द्वारा आयोजित  16 - 17 अप्रैल 2012 दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्टी में हिंदी साहित्य को मगध प्रक्षेत्र का योगदान विषय डॉ सुनील कुमार की संपादन कला पर सम्मान , 2 मार्च 2019 को बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना द्वारा आयोजित 40 वें तथा 2 - 3 अप्रैल 2016 को  37 वें  महाधिवेशन के परिसंबाद  पर सम्मानित हुए है। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना की ओर से हिंदी भाषा एवं साहित्य की उन्नति में मूल्यवान सेवाओं के लिए सम्मेलन के 101 वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में पंडित जनार्दन प्रसाद झा द्विज सम्मान से विभूषित कर उपाधि पत्र 19 अक्तूवर 2020 को प्रदान किया गया है । समाजवादी लोक परिषद की ओर से  गया में विश्व हिंदी दिवस के पूर्व संध्या पर 09 जनवरी 2021 को सतीस कुमार मिश्र सम्मान समारोह 2021के अवसर पर साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में समर्पित सेवा के लिये सम्मानित  किये गए है । प्रकाशित रचनाएँ - मगधाँचाल ,  राज्य सरकार राजभाषा विभाग द्वारा अनुदानित से प्रकाशित वाणावर्त , बराबर है वही अप्रकाशित रचनाए  उषा , यात्रा  है।आत्मा से पंजिकृत जिला किसान संगठन जहानाबाद का सचिव के रूप में कार्य कर रहे हैं । 1999 से जहानाबाद में रह कर सामाजिक  , साहित्यिक साधना में लगे हुए हैं ।
 02 : रामकृष्ण मिश्र - उत्साह और जीवन धर्मी के साथ साहित्यिक संवेदनशीलता के रूप में जीने वाले डाँ. रामकृष्ण मिश्र का जन्म  दिनांक 23 नवंबर1943 ( कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी 2000) को गया जिले के कनौसी में शाकद्वीपीय ब्राह्मण सिद्धेश्वर मिश्र के पुत्र हुए तथा इनकी माता शिवदुलारी देवी थी । इन्होंने बी.ए. आँनर्स , एम . ए. , बी.एड. , साहित्याचार्य , पी. एचडी . शिक्षा प्राप्त करने के बाद केंद्रीय विद्यालय के स्नातकोत्तर अध्यापक से अवकाश लेने के बाद संस्कृत , हिंदी और मगही साहित्यिक साधना में सलग्न है। डाँ. राधाकृष्ण मिश्र द्वारा हिंदी में परिवादिनी ( काव्य संकलन ) , सपने खंडित नहीं होगें , वे अनुबंधित विश्वास नहीं है , वेणु , रेखांकित लहरों के बीच , जनपथ के कोलाहल में, चीख रही बाँसुरी  और मगही में बेलपत्तर , गीत के जुडछाँह ,साझा वाती ,दक्षिणी चलिसा , शोध ग्रंथ  : मगही काव्यशास्त्र : स्वरुप और विनियोग रचनाएँ प्रकाशित किया गया है । इन्होंने अंत:सलिला, संग्या दर्पण का संपादन किया है । डाँ . रामकृष्ण मिश्र द्वारा बिहार का गया के करसिल्ली के समीप विष्णु पद मार्ग में स्थित संग्याय्यन निवास का निर्माण कर साहित्यिक साधना किया जा रहा है।
03 :  नरेन्द्र प्रसाद सिंह - मगही संगीत के पुरोधा नवादा जिले का चरौल निवासी श्री जाटो सिंह
(शिक्षक एवं स्वतंत्रता सेनानी) की भार्या बेदमिया देवी के घर में दिनांक 21 मार्च 1950 को नरेन्द्र प्रसाद सिंह का जन्म हुआ है । नरेंद्र प्रसाद सिंह ने आई एस सी प्रशिक्षित,संगीत प्रभाकर (भाव संगीत), योग्यता प्राप्त कर शिक्षक के रुप में कार्य किया है । इनकी रचनाओं में गीत माला (मगही गीत संग्रह),जनवादी फूल (मगही गीत संग्रह).तितइया(मगही कविता संग्रह),कविता के बोल (मगही कविता संग्रह),कौआकोल के केशर केशरी नंदन (जीवन वृत),.नेहिया के छाॅऺव (मगही गीत संग्रह) ,ठूॅऺठ पेड़ पर घोंसला है ।साहित्यिक क्षेत्रों में   हिन्दी-मगही की  रचनाएं यथा कविता, गीत,नाटक,लेख-संलेख, संस्मरण,यात्रा वृतांत, नृत्य नाटिका, हास्य-व्यंग्य इत्यादि कथादेश, वागर्थ,सतत, सारथी, अलका मागधी,टोला -टाटी, बिहान, मगही संवाद,मगही पत्रिका (नई दिल्ली), हिन्दुस्तान, दस्तक प्रभात, दैनिक भास्कर,मगध की आवाज,मगध की पुकार,मगध के आवाज (कोलकाता),नागरी,बिंडोवा, मैत्री शांति (पटना),मेरी अभिव्यक्ति, अस्मिता, ई-पत्रिका,मगह के मांजर, बदहाली में बुजुर्ग इत्यादि में प्रकाशित हुई है ।गायन-वादन,नृत्य-नाटक, साहित्य सर्जन, समाजसेवा, प्रर्यावरण जागरूकता के लिए अभिरुचि,
साथ साथ विभिन्न संगठनों अध्यक्ष , प्रगतिशील लेखक संघ, नवादा ,अध्यक्ष , इप्टा, नवादा ,अध्यक्ष , केशरी नंदन मगही मंडप, नवादा ,भू०पू०प्रदेश उपाध्यक्ष, इप्टा, पटना,सचिव,अ०भा०प्रचारिणी सभा, नवादा ,सदस्य, विश्व मगही परिषद, नई दिल्ली , सदस्य वरीय संघ, नवादा ,संयुक्त संपादक, अलका मागधी, पटना ,सह-संपादक , मगही पत्रिका, नई दिल्ली , संरक्षक, टोला-टाटी, गया , सचिव,रुपौ प्रखंड निर्माण संघर्ष समिति, रोह, नवाद ,सचिव, जनवादी पुस्तकालय,चरौल, नवादा ,आकाशवाणी पटना (मागधी एवं चौपाल विभाग) ,सामुदायिक रेडियो,बाढ़, पटना ,कई दूरदर्शन चैनल से कार्यक्रम प्रसारित ,सदस्य, संपादक मंडल,सारथी, में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है ।
04 : सच्चिदानंद प्रेमी - साहित्य सेवी सच्चिदानंद प्रेमी का जन्म जहनाबाद जिले के हाजीसराय निवासी सियाशरण शर्म की भार्या सावित्री देवी के घर में कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत 2010  ( 12 नवंबर1950ई.) को हुआ है। सच्चिदानंद प्रेमी एम . एससी. , एम .एड. योग्यता हासिल करने के बाद शिक्षण संस्थानों में कार्य किया है । इनकी रचनाओं में उदया ( काव्य ), निरमुंडी के फूल, पाँच के पहिया,  गीत विगह के पंख  खुले ( काव्य ) , मंगल मोद बधाई ,जग उठी तरूणाई ,नयी कविताओं में जन जागरण एवं राष्ट्रीय चेतना का परिवेश ( शोध ) ,कौमुदी का परिहास, कैसे गाऊँ गीत ,भारतीय शिक्षा की समस्याएँ एवं निदान , भारत में बुनियादी शिक्षा का स्वरूप ( शोध) , पाठशाला प्रबंधन , पाठ्यक्रम में अ पच की भूमिका, करबला से किला तक ,  शिक्षा में गुणवत्ता का वितंडावाद , तथा रस- गगरी ( मगही ) है । आचार्य कुल ( मासिक ) ,अखरा (त्रैमासिक) के संपादक तथा तर्पण संपादक मंडल के सदस्य हैं। सच्चिदानंद प्रेमी  शिक्षा में विशिष्ट योगदान एवं नए अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय शिक्षा सम्मान , शिक्षा में नवाचार के लिए राधाकृष्णन शिक्षा पुरुस्कार, हिंदी साहित्य की विशिष्ट सेवा के लिए साहित्य सम्मान तथा शताब्दी साहित्यकार सम्मान से सम्मानित हुए और आचार्य विनोबा भावे द्वारा संस्थापित आचार्य कुल के उपाध्यक्ष ,वियोगी साहित्य परिषद के अध्यक्ष , अखिल भारतीय मगही प्रचारिणी सभा के सभापति, आचार्य कुल की राष्ट्रीय शिक्षा समिति के संयोजक के पद पर कार्य कर रहे हैं ।  गया का माडनपुर के आनंद बिहार कुंज में प्रेमी  साहित्य साधना कर रहे हैं।
05 : जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन - जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1851-1941) ब्रिटिश काल में  "इंडियन सिविल सर्विस" के अधिकारी , बहुभाषाविद् और  भारत में भाषाओं का सर्वेक्षण करने वाले पहले भाषावैज्ञानिक थे । ग्रियर्सन 1870 में आई.सी.एस. होकर बंगाल और बिहार के कई उच्च पदों पर 1899 तक कार्यरत रहने के बाद आयरलैंड चले गये। ग्रियर्सन ने कई क्षेत्रों में काम किया। तुलसीदास और विद्यापति के साहित्य का महत्त्व प्रतिपादित करनेवाले  अंग्रेज विद्वान थे। हिन्दी क्षेत्र की बोलियों के लोक साहित्य (गीत-कथा) का संकलन और विश्लेषण करनेवाले थे। भारतीय विद्याविशारदों में, विशेषतः भाषाविज्ञान के क्षेत्र तथा  "लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया" के प्रणेता के रूप मे ग्रियर्सन को भारतीय संस्कृति और यहाँ के निवासियों के प्रति अगाध प्रेम था। भारतीय भाषावैज्ञानिक  थे। आर्यभाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से ग्रियर्सन बीम्स, भांडारकर और हार्नली के समकक्ष है।ग्रियर्सन का जन्म डब्लिन के निकट 7 जनवरी 1851 को हुआ था। उनके पिता आयरलैंड में क्वींस प्रिंटर थे। 1868 से डब्लिन में  उन्होंने संस्कृत और हिंदुस्तानी का अध्ययन प्रारंभ कर दिया था। बीज़ स्कूल श्यूजबरी, ट्रिनटी कालेज, डब्लिन और केंब्रिज तथा हले  (जर्मनी) में शिक्षा ग्रहण कर 1873 में वे इंडियन सिविल सर्विस के आँफिसर बनकर बंगाल आए और बिहार में  आर्य तथा अन्य भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया है । 1880 में इंस्पेक्टर ऑव स्कूल्स, बिहार और 1869 तक पटना के ऐडिशनल कमिश्नर और औपियम एज़ेंट, बिहार के रूप में  कार्य किया। सरकारी कामों से छुट्टी पाने के बाद वे अपना अतिरिक्त समय संस्कृत, प्राकृत, पुरानी हिंदी, बिहारी भाषा मगही , भोजपुरी , मैथिली , वज्जिका , अंगिका और बंगला भाषाओं और साहित्यों के अध्ययन किए  थे। ग्रियर्सन जिस स्थान पर जाते  वहीं की भाषा, बोली, साहित्य और लोकजीवन की ओर उनका ध्यान  रहती थी।1873 और 1869 के कार्यकाल में ग्रियर्सन ने अपने महत्वपूर्ण खोज कार्य किए। जर्नल ऑव दि एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल, 1877, जि. 1 सं. 3, पृ. 186-226 ,राजा गोपीचंद की कथा;  1878, जि. 1 सं. 3 पृ. 135-238 , मैथिली ग्रामर (1880) , सेवेन ग्रामर्स आव दि डायलेक्ट्स ऑव दि बिहारी लैंग्वेज (1883-1887) , इंट्रोडक्शन टु दि मैथिली लैंग्वेज;ए हैंड बुक टु दि कैथी कैरेक्टर,बिहार पेजेंट लाइफ,बीइग डेस्क्रिप्टिव कैटेलाग ऑव दि सराउंडिंग्ज ऑव दि वर्नाक्युलर्स, जर्नल ऑव दि जर्मन ,ओरिएंटल सोसाइटी (1895-96),कश्मीरी व्याकरण और कोश,कश्मीरी मैनुएल,पद्मावती का संपादन (1902) महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी की सहकारिता में,,नोट्स ऑन तुलसीदास, , दि माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑव हिंदुस्तान (1889) , उनकी ख्याति का प्रधान स्तंभ लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया  है। 1885 में प्राच्य विद्याविशारदों की अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस ने विएना अधिवेशन में भारतवर्ष के भाषा सर्वेक्षण की आवश्यकता का अनुभव करते हुए भारतीय सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया। फलत: भारतीय सरकार ने 1888 में ग्रियर्सन की अध्यक्षता में सर्वेक्षण कार्य प्रारंभ किया। 1888 से 1903 तक उन्होंने इस कार्य के लिये सामग्री संकलित की। 1902 में नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् 1903 में जब उन्होंने भारत छोड़ा सर्वे के विभिन्न खंड क्रमश: प्रकाशित होने लगे। वह 21 जिल्दों में है और उसमें भारत की 179 भाषाओं और 544 बोलियों का सविस्तार सर्वेक्षण है।  बुद्ध और अशोक की धर्मलिपि के बाद ग्रियर्सन कृत सर्वे  एक ऐसा पहला ग्रंथ है जिसमें दैनिक जीवन में बोली जानेवाली भाषाओं और बोलियों का दिग्दर्शन प्राप्त होता है। इन्हें सरकार की ओर से 1894 में सी.आई.ई. और 1912 में "सर" की उपाधि दी गई। अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् ये कैंबले में रहते थे। 1876 से ही वे बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के सदस्य थे। उनकी रचनाएँ प्रधानत: सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित हुईं। 1893 में वे मंत्री के रूप में सोसाइटी की कौंसिल के सदस्य और 1904 में आनरेरी फेलो मनोनीत हुए। 1894 में उन्होंने हले से पी.एच.डी. और 1902 में ट्रिनिटी कालेज डब्लिन से डी.लिट्. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। वे रॉयल एशियाटिक सोसायटी के भी सदस्य थे। वे नागरी प्रचारिणी सभा के  मानद सदस्य थे। उनकी मृत्यु 1941 में हुई। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार स्थापित किया है। ग्रियर्सन का लिंगूएस्टि सर्वे आँफ इंडिया के अनुसार मागधी का रूप मगही को बिहारी हिंदी के नाम से जाना जाता है । गया, जहनाबाद, अरवल , नवादा, औरंगाबाद, पटना , नालंदा , हजारीबाग , चतरा , रामगढ , कोडरमा , गिरिडीह ,  गढवा , पलामू, मुंगेर, भागलपुर के क्षेत्रों में 2067877 लोग मगही भाषायी थे । ओल्ड डिस्ट्रिक्ट गजेटियर , बिहार डिस्ट्रिक्ट गजेटियर गया 1957 में ग्रियर्सन की भाषाई सर्वे का उल्लेखनीय योगदान में मगही भाषा की प्रमुख है । मगही , भोजपुरी , मैथिली , वज्जिका और अंगिका की चर्चित है । 
रामरतन प्रसाद सिंह - मगही और हिंदी साहित्य के रचनाकार रामरतन प्रसाद सिंह का जन्म नवादा जिले के मकरपुर ग्राम में 03 जून 1946 ई. हुआ है । ये स्नातक, साहित्य मार्तण्ड योग्यता धारी है । रत्नाकर द्वारा हिंदी में संस्कृति संगम , अस्था का दर्शन , बलिदान , ब्रह्मर्षि कुल भूषण , लोककथाओं का सांस्कृतिक मूल्यांकन , बजरंगी, रू ब रू तथा मगही में गाँव के लक्ष्मी, राजगीर दर्शन, पगडंडीके नायक ,मरघट के फूल , मगध के संस्कृति, फगुनी के बाद और विविधा पुस्तकें प्रकाशित किया गया है । रत्नाकर द्वारा मगही पत्रिका, मगही संवाद के संपादकत्व में प्रकाशित किया गया है । इन्हे संयुक्त राष्ट्र संघ के शैक्षणिक एवं शाशी परिषद द्वारा राष्ट्रीय हिंदी सहस्त्रब्दी सम्मान से सम्मानित किया गया है।
07 :  सत्येंद्र कुमार मिश्र - जहनाबाद जिले के नोवाँआ निवासी स्वर्गीय  नारायण मिश्र के पुत्र सत्येन्द्र कुमार मिश्र का जन्म 20 जुलाई 1959 ई. को हुआ है वर्तमान में मुहल्ला-श्यामनगर जानवर अस्पताल के ठीक सामने जहानाबाद  जिला--जहानाबाद बिहार में साहित्य साधना में है। इन्होंनो एम एस सी,-(भौतिकी) एल एल बी, सी ए आई आई बी भाग-1योग्यता प्राप्त कर ब्याख्यता-भौतिकी-जहानाबाद कलेज जहानाबाद,अधिकारी-पंजाब नैशनल बैंक  से अवकाश प्राप्त कर मनोहर रामायण,द्वैपायन उद्गार,दुर्गा सप्त्शती(काव्यानुवाद),आलोक विविधा,काव्य कुसुम,सुमनांजली,भक्ति काव्य सौरभ की रचनाएं  की साथ ही सदस्य---जिला हिन्दी सहित्य सम्मेलन जहानावाद , जिला विरासत विकास समिति जहानाबाद ,सच्चिदानंद शिक्षा एवं समाज कल्याण संस्थान जहानाबाद से जुड़े रह कर  साहित्य , भाषा , सामाजिक कार्य कर रहे हैं।
08 :  अशोक कुमार सिंह - "अजय" नाम से लेखन करनेवाले अशोक कुमार सिंह का जन्म घोसरावां,पावापुरी, नालंदा, बिहार में 03 अक्टूबर 1963 ई. को हुआ है । वर्तमान में उर्जा नगर,  महागामा , जिला -गोड्डा, झारखंड के निवासी हैं ।इनके पिता- स्वर्गीय रामचंद्र प्रसाद सिंह तथा माता - सुमित्रा देवी है। इन्होंने शिक्षा - स्नातक, डिप्लोमा इन विजनेस एंड मार्केटिंग प्राप्त करने के बाद कविता, कहानी एवं आलेख के लिए ईस्टर्न कोल फील्ड साहित्यिक प्रतियोगिता में - कविता, कहानी, आलेख एवं कविता पाठ, में प्रथम पुरस्कार.  सुबह होने तक" हिदीं कविता संग्रह , "सकरी के करगी" मगही कविता संकलन ,"प्रतिनिधि कथा घौद" में संकलित मगही कहानी  . डा. लक्ष्मण प्रसाद "चन्द्र " , "माटी के महक" में संकलित मगही कहानी. डा. भरत सिंह. , यात्रा संकलन डा. भरत सिंह - यात्रा विवरण. सृजन और प्रत्यंचा हिंदी पत्रिका का संपादन.  अंगचंपा,किस्सा, प्रगति वार्ता, दृष्टि, समय सुरभि अनंत, प्राची,ज्योत्स्ना ,कविता, कहानियां प्रकाशित हुई हैं और संप्रति - सरकारी नौकरी, ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड में कार्यरत है ।
09 : गौतम कुमार 'सरगम' - सरगम का जन्म आंती नवादा में 16मार्च 1981 को हुआ है ।इनके पिता: - बिजेन्द्र प्रसाद सिंह , माता:- गीता देवी है। सरगम ने योग्यता स्नातक प्राप्त कर हिन्दी और मगही में कविता, गीत, नाटक और कहानियाँ , बिहार की गलियों में'(काव्य संग्रह) है। इनकी  प्रकाशित हुई रचनाएँ: -- 'हिन्द माता' दैनिक अखबार( मुम्बई),दस्तक प्रभात दैनिक अखबार (पटना) में आलेख और मगही गीत प्रकाशित हुए है । सारथी' त्रिमासिक पत्रिका में मगही गीत और कहानी नियमित प्रकाशन।'सत्य की मशाल' मासिक पत्रिका में हिन्दी कविताएँ और कहानी नियमित प्रकाशन हुई हैं। अध्यक्ष: साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कला मंच है ।
10 : शम्भूनाथ मिश्र - समस्तीपुर जिले के पुनास बेदौलिया में 14 मई 1934 ई. को शम्भनाथ मिश्र का जन्म शाकद्वीपीय ब्राह्मण में हुआ है । इनके पिता कामेश्वर मिश्र ,माता भुवनेश्वरी देवी थी । इनकी रचना मगोपख्यान है और भारत सरकार के संचार विभाग के पदाधिकारी पद से सेवा निवृत्त होने के बाद अखिल भारतीय आदित्य परिषद के अध्यक्षके पद पर कार्य कर रहे हैं।
11 : राजकुमार प्रसाद - अंगिका और मगही साहित्य के साहित्यकार राजकुमार प्रसाद का जन्म पटना जिले के बाढ का शहरी में 01जनवरी 1954ई. को हुआ है । इनके पिता रामचंद्र प्रसाद तथा माता शकुंतला देवी थी तथा पत्नी निरूपा देवी है । इन्होंने आई . ए. , साहित्य प्रभाकर, साहित्य शास्त्री योग्यता प्राप्त करने के बाद  लोक स्वास्थ्य प्रमंडल भागलपुर से प्रधान लिपिक पद कार्य करने के पश्चात  2013 में सेवानिवृत्त होकर साहित्य सेवा में लगे है। इनकी रचनाओं में लुत्ती (मगही काव्य ) तथा टेसू के टीस ( अंगिका काव्य संग्रह ) तथा अंगिका भाषा में प्रकाशित अंगप्रिया , चानन , ढिबरी का संपादन कला है । राजकुमार को विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ से काव्य रत्न, विद्यावाचसपति उपाधि , हंसकुमार तिवारी सम्मान, जानकीबल्लभ शास्त्री कलाधर सम्मान ,अंग कोकिल सम्मान , अंग रत्न से सम्मानित किया गया है । राजकुमार की साहित्य साधना भागलपुर का बालकृष्ण नगर में स्थित है ।
12 : माधवानंद मिश्र - मगही और हिंदी के रचनाकार माधवानंद मिश्र का जन्म जहनाबाद जिले के रतनीफरीदपुर प्रखंड के नोआवाँ में 05अक्टूबर ई. 1941 को शाकद्वीपीय ब्राह्मण कुल में हुआ तथा निधन 02 मार्च 2014 ई . को हुआ । इनके पिता हरिद्वार मिश्र तथा  भार्या पार्वती देवी थी । माधवानंद मिश्र ने आचार्य तथा बी. टी. योग्यता प्राप्ति के बाद सरकारी स्कूलों में शिक्षक के पद पर सेवानिवृत्त हुए थे। इनकी रचनाओं में घोघस गेल बदरा ( मगही गीत ) और माधव गीतांजलि ( हिंदी गीत ) प्रसिद्ध है।
13 : चितरंजन कुमार - आशुकवि चितरंजन कुमार का जन्म 02 नवंबर 1966 ई. को जहनाबाद जिले के रतनीफरीदपुर प्रखंड का चैनपुरा में हुआ है ।इनके पिता रामचंन्द्र शर्मा , माता शिवदुलारी देवी थी और  पत्नी रेणु देवी शिक्षिका के पद पर कार्य कर रही हैं । चितरंजन कुमार ने बी. ए . आँनर्स , बी. पीएड. , एम. पीएड. योग्यता प्राप्त करने के बाद डीएवीपी स्कूल जहनाबाद में शारिरीक शिक्षा शिक्षण के पद पर कार्यरत है। इनकी रचनाओं में वाह बिहारी , माँ की ममता , योग निरझर ( हिंदी ) तथा दर्शन दे द दीनानाथ ( मगही गीत) प्रसिद्ध है साथ ही चैनपुरा के नाम पर यूट्यूब पर गीत है ।
14 : कन्हैया लाल मेहरवार - देव चौरा  विष्णु पद रोड ,गया निवासी कन्हैयालाल मेहरवार का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी विक्रम संवत 2003 को   हुआ है। इनके पिता स्व ०विहारीलाल मेहरवार थे। इन्होंने शिक्षा**घर पर प्रारंभिक शिक्षा केउपरांत भारतीय वांग्मय का गहन अध्ययन।पेशा**पौरोहित्य।लेखन की विधाएं**मगही एवम हिन्दी में मुख्यत: गीत,गजल।प्रकाशित कृतियां**अश्वथ खड़ा है आज भी,साधना शिखर(दोनो काव्य संकलन)एवम विभिन्न पत्र पत्रिकाओं के सहयोगी रचनाकार।अप्रकाशित कृतियां**भींजल पिपनी(मगही काव्य संग्रह)सुमित्रा के राम(मगही उपन्यास)विशेष**गायन,पर्यटन एवम भारत में विभिन्न संस्कृतियों योगदान पर चिंतन।सम्मान,पुरस्कार**आकाश वाणी पटना से मगही केस्वतंत्र प्रसारण के लिए सम्मानित,जिला प्रशासन गया की ओर से साहित्य सेवा के लिए सम्मानित,साथ साथ अन्य और भी विभिन्नसंस्थाओं द्वारा सम्मानित।संप्रति**"मगही साहित्य संगम" गया के अध्यक्ष।
15 : वीणा कुमारी मिश्रा - मगही और हिंदी के साहित्य की साधिका वीणा कुमारी मिश्र का जन्म 05 जनवरी1953 को हुआ है । इनकी माता का नाम:स्व० तारा देवी स्वतंत्रता सेनानी तथा  पिता .स्व०गिरीश नारायण चतुर्वेदी कवि और पति स्व०युगल किशोर मिश्रा  थे । बुधौल,  नवादा जिले के बुधौल नवादा की निवासी श्री मिश्र ने शिक्षा:एम ए द्वय (हिन्दी-अंग्रेजी) प्राप्त कर शिक्षक से  सेवा निवृत्त होने के बाद रचनाएं: हमने जीना सीखा (नेशनल बूक ट्रस्ट,आज इंडिया),अर्णव, चंदन है हिसुआ भी माटी,पुरहर पल्लव,अलका मागधी,मगही संवाद, बिहान,मगध की आवाज़ सहित कई मानक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित की है । अध्यक्ष, आचार्य कुल, नवादा,ट्रस्टी नवादा गायत्री पीठ, महिला संघर्ष मोर्चा, नवादा है । इनकी प्रकाशित पुस्तकें: काया कल्प (हिन्दी कहानी संग्रह) , प्रीति के रीति (मगही कहानी संग्रह)
अधूरी मंजिल (उपन्यास) , अनकही रागिनी (कविता संग्रह) आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से गीत-कविता प्रसारित हुई हैं ।
वीणा कुमारी मिश्र को  केशरी नंदन स्मृति सम्मान, रंगकर्मी सुरेन्द्र प्रसाद सिंह लोक संस्कृति सम्मान,अपराजिता, प्रभात खबर, दैनिक जागरण,मगध की आवाज़ सहित कई अन्य सम्मान एवं पुरस्कार।इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल एवार्ड से नवाजी गयीं हैं। 
16 : जानकीवल्लभ शास्त्री- आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री  हिंदी व संस्कृत के कवि, लेखक एवं आलोचक थे। उन्होने २०१० में पद्मश्री सम्मान लेने से मना कर दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया था। आचार्य का काव्य-संसार बहुत ही विविध और व्यापक है । प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आए। शास्त्रीजी का जन्म 5 फरवरी 1916 ई . को बिहार के गया जिले के डुमरिया प्रखंड के  मैगरा गाँव में हुआ था। कविता के क्षेत्र में उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और सन् ४० के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो 'गाथा` नामक उनके संग्रह में संकलित हैं। इसके अलावा उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और 'राधा` जैसा सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य रचा। परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है।  छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं। २६ जनवरी २०१० को भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया किन्तु इसे शास्त्रीजी ने अस्वीकार कर दिया। सात अप्रैल २०११ को मुजफ्फरपुर के निराला निकेतन में छायावाद के अंतिम स्तम्भ माने जाने वाले आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का गुरुवार रात मुजफ्फरपुर में निधन हो गया। वह 98 वर्ष के थे।  शास्त्री जी की रचनाओं में काव्य संग्रह - बाललता, अंकुर, उन्मेष, रूप-अरूप, तीर-तरंग, शिप्रा, अवन्तिका, मेघगीत, गाथा, प्यासी-पृथ्वी, संगम, उत्पलदल, चन्दन वन, शिशिर किरण, हंस किंकिणी, सुरसरी, गीत, वितान, धूपतरी, बंदी मंदिरम्‌ , महाकाव्य - राधा , संगीतिका - पाषाणी, तमसा, इरावती , नाटक - देवी, ज़िन्दगी, आदमी, नील-झील , उपन्यास - एक किरण : सौ झांइयां, दो तिनकों का घोंसला, अश्वबुद्ध, कालिदास, चाणक्य शिखा (अधूरा) ,कहानी संग्रह - कानन, अपर्णा, लीला कमल, सत्यकाम, बांसों का झुरमुट ,ललित निबंध - मन की बात, जो न बिक सकीं ,संस्मरण -अजन्ता की ओर, निराला के पत्र, स्मृति के वातायन, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूर, हंस-बलाका, कर्म क्षेत्रे मरु क्षेत्र, अनकहा निराला ,समीक्षा - साहित्य दर्शन, त्रयी, प्राच्य साहित्य, स्थायी भाव और सामयिक साहित्य, चिन्ताधारा ,संस्कृत काव्य - काकली ,ग़ज़ल संग्रह - सुने कौन नग़मा  है। 
17 :  सतीश कुमार मिश्र - हिंदी और मगही साहित्य के साधक सतीश कुमार मिश्र का जन्म 10 जनवरी 1945 को पटना जिले के सबजपुरा विक्रम में हुआ था। इनके पिता हरिवंश दत्त मिश्र थे। इनकी रचनाओं में 1972 में हिलकोरा , 1976 में टूसा ,  नाटक त हम कुवांरे रहे , बुद्धं शरणम गच्छामि , हिंदी के हजार साल, पटना से मगही का प्रथम मगही साप्ताहिक पत्र , गया से हिंदी साप्ताहिक मगधाग्नि का प्रकाशन कर मगही भाषा का विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान की । 10 जून 1979 में पटना के गांधी मैदान में मगही सम्मेलन कर मगही भाषियों में एकजुटता का रूप तथा मगही अकादमी का गठन , आकाशवाणी पटना में मागधी का प्रसारण के लिए सक्रिय थे। दीपायतन पटना में कार्य करने और वहाँ मगही का स्थान दिलाने में सक्रिय रहे थे। मगही-हिंदी के साहित्य सेवियों द्वारा प्रत्येक वर्ष मिश्र की जयंती के अवसर पर 10 जनवरी को हिंदी , मगही , पत्रकारिता, समाज सेवा में योगदान करनेवालों को  सतीश कुमार मिश्र पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। 
 18 : मनोज कुमार कमल - कमल का जन्म अरवल जिले का कुर्था प्रखंड के मुसाढी में 11 दिसंबर 1955 ई. को हुआहै । इनके पिता बालमुकुंद शर्मा और माता झलक रानी देवी थी। मगही साहित्यिक कृतियों में कमल सक्रिय हो कर व्याकरणाचार्य,साहित्याचार्य, कर्मकांडी की योग्यता हासिल करने के बाद सर्वौदय उच्च विद्यालय लारी के प्रभारी प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हैं। कमल की प्रकाशित रचना में  मगहिया फूल (कविता)  ,मगही बिरंज (कहानी) , अमृत कलश( भक्ति कविता), मईया जिंदाबाद(कहानी), मगही गुलदस्ता,(कविता) ,  हनुमान चरित (प्रबंध काव्य) , कलि गाथा,(कविता) , पंईचा माय (कहानी) और मगही ललित निबंध है ।
19 : जयप्रकाश - नवादा जिले के केंदुआ निवासी जयप्रकाश का जन्म 23 जुलाई 1943 ई. को हुए। इन्होंने बी. ए. , संगीत भूषण , संगीत विशारद योग्यता प्राप्त करने के बाद प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी के पद पर कार्य करते हुए हिंदी , मगही भाषाओं पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । जयप्रकाश द्वारा माटी के दीया ,महुआ के कोंची , कट गेल रात  अंधरिया , काटन दुख कैसे किसान , परवतिया तथा काका काटी रचना मगही भाषा में है ।
20 : रामसिंहासन सिंह - औरंगाबाद जिले के मौलवीगंज पौथु निवासी का जन्म 15 फरवरी 1947 को हुआ है । इनके पिता प्रति सिंह और माता देवरानी देवी थी । रामसिंहासन सिंह ने एम . ए. , पी.एचडी. योग्यता प्राप्त करने के बाद रामलखन सिंह यादव काँलेज गया में प्राचार्य के पद पर कार्यरत रहते हुए गीतों के दिन पुन: फिरेंगे( हिंदी कविता संग्रह ) की रचना , सहचरी त्रैमासिक के संपादक है गया नागरी प्रचारिणी सभा के कोषाध्यक्ष है।
21 : मुंद्रिका सिंह - मगही साहित्य सेवी मुंद्रिका सिंह का जन्म जहनाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड का चिलोरी में 17 मार्च1953 ई. को हुआ है ।इनके पिता परमेश्वर सिंह और माता रामसखी देवी थी। मुंद्रिका सिंह ने स्नातक, स्नातकोत्तर योग्यता के बाद रामेश्वर प्रसाद। +2 उच्च विद्यालय बेलागंज गया में शिक्षक पद पर कार्य करते हुए जोरन , ( मगही कहानी संग्रह ) , आव हे मलाल रचना प्रकाशित की हो ।
  22 : मिथिलेश - मगही तथा हिंदी साहित्य के साधक मिथिलेश का जन्म नवादा जिले का खखरी में 05 जनवरी 1937 ई. में हुआ है। इनके पिता सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह थे। पेशे से शिक्षक से सेवानिवृत्त होने के बाद मिथिलेश द्वारा रधिया, शेरावाली , खंडहर के भोर काव्य, कनकन , सोरा कहानी संकलन , महमह फूल, नवगीत संकलन ,छिटकाई जिनने चिनगारी , बावन वयार , सकरी रंग हजार ,पहाड बोलता है, मासी माँ , सारो फुआ ,तीन महिना गाम के ,अब मैं वहाँ नहीं जाऊँगा, गुदरी के लाल मेवालाल , सेवक राम ,जस के तस घरदीनी चदरिया महुआ घटवारिन जीतेगा जग सारा पाखी के अनोर रचना कर रचनात्मक मगही साहित्य के लिए कार्य करने में किया गया है। 
23 :  संजय कुमार मिश्र अणु - अणु का जन्म अरवल जिले के कलेर प्रखंड का वलिदाद में 25 जनवरी 1988 को शाकद्वीपीय ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता राजबल्लभ मिश्र तथा माता इंदुप्रभा देवी करपी प्रखंड के बंभई के निवासी थी । अणु ने स्नातकोत्तर योग्यता हासिल कर औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड का परनपुरा मध्य विद्यालय में शिक्षक पद पर कार्य करते हुए साहित्य साधना में जुड. कर अनंगावतरण , रसधार ,स्वनामधन्य ,दुनिया की बात , मैं अरवल हूँ ,उप दर्शन , उषा दर्शन ,मेरे चिंतन मेरे बोल , हम कहते करब ( भोजपुरी ) कविता के फेर ( मगही ) आ कर मिलो तो ,फसले हैं बहुत तथा तुम ऐसी तो नही थी ( हिंदी गजल संग्रह ) रचनाएं प्रकाशित की ।इन्हें जिला शिक्षक सम्मान , राम दहिन मिश्र स्मृति सम्मान , आचार्य रंजनसूरीदेव साहित्य सम्मान ,साहित्य श्री सम्मान हजारीबाग सारा सच कवि सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया है।
24 : मृदुला मिश्रा - औरंगाबाद जिले के केताकी की  मृदुला मिश्रा का जन्म 21 जून 1960 ई. को हुई है। इनके पिता रामनरेश पाठक एवं माता शांति पाठक थी । मिश्रा ने स्नातकोत्तर योग्यता प्राप्त कर मगही और हिंदी सेवा में लगी है । इनकी रचना स्मृति संचय है।
25 :  सुरेंद्र प्रसाद मिश्र - औरंगाबाद जिले के बेम्मई निवासी सुरेंद्र प्रसाद मिश्र का जन्म 12 सितंबर 1953 ई . है । इन्होंने एम. ए. , पी. एचडी . योग्यता हासिल करने के बाद कन्या उच्च विद्यालय अंबा औरंगाबाद से प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत्त होकर साहित्य साधना से जुडाव किया है। मिश्र की रचनाओं में स्मृतियों के इलाके में , दुनिया मेरे रंग अनेक तथा संपादन शब्द के चितेरे , अंबे , पुण्या, उडान , मात्टका ,समकालीन जबावदेही पत्रिका में की है। मिश्र ने नागा विगहा औरंगाबाद के अंबे आश्रम में रह कर साहित्य साधना में लगे है ।
26 :  रामनरेश मिश्र हंस - हिंदी साहित्य के विद्वान रामनरेश मिश्र हंस का जन्म जहनाबाद जिले का कचनामा में जेष्ठ शुक्ल नवमी विक्रमादिब्द 1910 में हुआ था इनके पिता पंडित चन्द्रशेखर मिश्र उस्ताद और माता जगतारिणी देवी थी । हंस ने बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर , जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा में हिंदी , संस्कृत के रीडर के पद पर कार्यरत रहकर सेवानिवृत्ति के बाद जहनाबाद जिले के मखदुमपुर का नबाबगंज रोड के वाणी नितान में साहित्य साधना लगे थे।
27 : कृष्णदेव मिश्र - गया जिले का परैया के  उपरहुली निवासी कृष्णदेव मिश्र का जन्म 15 मई 1956 ई. में हुआ है। इनके पिता तारा चरण मिश्र और माता भगवती देवी थी। इन्होंने एम .ए. , पी.एचडी. योग्यता हासिल करने के बाद स्वामी धरणीधर महाविद्यालय खुसडीहरा में हिंदी विभाग का अध्यक्ष के पद पर कार्य किया है। इनकी रचनाओं में रामचरितमानस के कथा - विकास में पोराणिक कथाओं का औचित्य , टूटते रिश्ते तथा न्याय के कठघरे में परमेश्वर में प्रकाशित है । कृष्णदेव मिश्र खरखुरा , डेल्हा में रह कर साहित्य साधना में लगे है । 
28 :  शेष आनंद मधुकर - गया जिले का दरियापुर संडा निवासी दिगंबर नाथ पाठक के पुत्र शेष आनंद मधुकर का जन्म 08अगस्त 1939 ई . को हुआ था । मधुकर ने एम . ए. हिंदी और संस्कृत में योग्यता हासिल करने के बाद संत कोलंबस महाविद्यालय हजारीबाग में प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त होकर साहित्य साधना कार्य किया है। मधुकर ने एकलव्य, भगवान विरसा और हथेली पर सूरज , मगही साहित्य में मगहे भुलायल हे , एकलव्य मगही प्रबंध कव्य  प्रकाशित की साथ ही निबंध श्री ,एकाकी बहुरंगी ,निबंध सौरभ का संपादन किया है।
29 : रामनरेश पाठक - हिंदी साहित्य साधक रामनरेश पाठक का जन्म औरंगाबाद जिले के देव के समीप केतकी में 12नवंबर 1929 ई. को हुआ था। इन्होंने स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद श्रम विभाग का श्रम अधीक्षक गया के पद से सेवानिवृत्ति के। पश्चात हिंदी साहित्य सेवा की । मिश्र ने अपनी रचनाओं में श्रमिक पत्रिका का संपादन करते हुए क्वाँर की शाम , एक गीत लिखने का मन , मैं अथर्व हूँ , अपूर्णा और अवरणा पुस्तकों का प्रकाशन किया है ।
 30 : मोहनलाल महतो वियोगी - हिंदी साहित्य के सशक्त मोहनलाल महतो वियोगी का जन्म  06 नवंबर 1902 ई. को गया में  हुआ था।  वियोगी जी दशकों तक अपनी प्रखर प्रतिभा से हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं को निष्ठापूर्वक समृद्ध करते रहे । आपने अनेक मौलिक एवं अविस्मरणीय उल्लेखनीय पुस्तकें लिखी हैं । वियोगी जी का काव्य राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत , गद्य-लेखन अत्यन्त विशाल और समृद्ध , कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार और संस्मरणकार  विचारक थे । आपकी गद्य-रचनाओं में सूक्तियों के असंख्य मोती हैं । वियोगी जी के संपूर्ण साहित्य का मूल स्वर है-एक दुनिया एक सपना । 07 फरवरी 1990 में वियोगी का निधन हो गया । वियोगी जी रचनाओं में आर्यावर्त  में राष्ट्रीय और राष्ट्र धर्म की झलक है ।
31 :  जयनाथ पति - जयनाथ पति (1880-1939) मगही भाषा के पहले उपन्यासकार, भारतीय इतिहास व संस्कृति  के प्रमुख विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी हैं। आपका जन्म जिला नवादा (बिहार) के गांव शादीपुर, पो. कादरीगंज के कायस्थ परिवार में 1880 में हुआ था। अनेक भाषाओं के मर्मज्ञ जयनाथ पति ने मगही के साथ-साथ अंग्रेजी में अनेक विचारोत्तेजक लेख लिखे हैं जो 1920 से 1935 के दौरान प्रकाशित हुए। पेशे से प्रथम श्रेणी के मोख्तार जयनाथ पति संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, लैटिन, फारसी, उर्दू, हिन्दी और मगही के प्रकांड विद्वान थे। उनकी प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि वह एक ही समय में अपनी दोनों हाथों से अलग-अलग भाषाओं में लिखने का काम बड़ी ही कुशलता के साथ किया करते थे। आपने फारसी लोकगीतों और ऋग्वेद का भी अनुवाद किया है। इनकी मृत्यु टायफाइड बीमारी से 21 सितंबर 1939 को पीएमसीएच, पटना के पेईंगवार्ड में हुई ।जयनाथ पति बहुमुखी प्रतिभा संपन्न विद्वान, लेखक, संपादक-प्रकाशक, वेदशास्त्र और भाषा, संस्कृति एवं इतिहास के गंभीर अध्येता थे। एक साथ ही वे कई मोर्चे पर सक्रिय और सृजनरत थे। एक लेखक के नाते विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में वेद, इतिहास, भाषा-संस्कृति पर लेख लिख रहे थे, मातृभाषा मगही में साहित्य रच रहे थे, स्वतंत्रता आंदोलन को स्थानीय स्तर पर नेतृत्व प्रदान कर रहे थे, तो मगही में किताबें छापने के साथ-साथ आजादी की लड़ाई के लिए हस्तलिखित अखबार निकाल रहे थे।यही नहीं, मोख्तार होने के कारण ब्रिटिश हुकुमत से मोख्तारों के अधिकारों के लिए वह कानूनी लड़ाइयां भी लड़ रहे थे। मात्र 12वीं तक की पढ़ाई कर मोख्तार बने जयनाथ पति का योगदान शिक्षा के क्षेत्र में भी रहा है। इसका उदाहरण नवादा में उनके द्वारा स्थापित एंग्लो संस्कृत स्कूल है जो आज भी चल रहा है।। वे एक निर्भिक राष्ट्रवादी थे। होमरूल आंदोलन के स्थानीय स्तर पर एकमात्र सदस्य थे। 1920 में गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन के समय नवादा कांग्रेस कमेटि के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने सुराजियों का नेतृत्व किया था। स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने के लिए उन्होंने एक हस्तलिखित अखबर भी शुरू किया जिसे वे अपने घर के तहखाने में लिखते और फिर अपनी पत्नी श्यामा देवी के साथ गांव-गांव जाकर पाठकों के बीच पहुंचा दिया करते। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रिय भूमिका के कारण 1930 में उन्हें नौ माह केन्द्रीय कारागार हजारीबाग में गुजारना पड़ा था।मगही के प्रथम उपन्यासकार जयनाथ पति ने 1927 के अंत में मगही भाषा के पहले उपन्यास ‘सुनीता’ की रचना की जो 1928 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास की समीक्षा सुप्रसिद्ध भाषाविद् सुनीति कुमार चटर्जी ने ‘द मॉडर्न रिव्यू’ के अप्रेल 1928 के अंक में की है। मगही का यह पहला उपन्यास अब उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1928 की पहली अप्रैल को प्रकाशित उनका दूसरा मगही उपन्यास ‘फूल बहादुर’ की प्रति सुरक्षित है। इसके बाद उनका तीसरा उपन्यास ‘गदहनीत’ छपा। अपने इन तीनों उपन्यासों में उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों और भ्रष्टाचार पर करारी चोट की है। इसके अतिरिक्त जयनाथ पति ने 1937 में गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट 1935 का मगही अनुवाद कर ‘स्वराज’ शीर्षक से प्रकाशित किया है। आधुनिक मगही साहित्य के विकास के लिए उन्होंने एक संगठन भी बनाया था तथा कई पुस्तकें लिखीं जिनमें से अधिकांश अप्रकाशित रह गई। उनके द्वारा संकलित मगही लोकसाहित्य की एक पुस्तक भी प्रकाशित है।
32 : योगेश्वर सिंह ‘योगेश - योगेश्वर सिंह ‘योगेश’ (23 अक्टूबर 1933-12 अगस्त 2009) नीरपुर गांव, पटना के रहने वाले थे। मगही के महाकवि कहे जाने वाले योगेश के लेखन की शुरुआत हिंदी से हुई थी और 1952 में आचार्य शिवपूजन सहाय की प्रेरणा से उनके रहस्यवादी हिंदी कविताओं का पहला संग्रह ‘विभा’ सामने आई थी। 1954-55 में उनका लगाव मगही से हुआ जो जीवनपर्यंत बना रहा। मगही समाज के लोकप्रिय कवि योगेश हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत के उद्भट विद्वान थे। यही अपने आप में लोक के प्रति उनकी सेवा भावना को दर्शाता है। शिक्षा अधिकारी के पद से सेवा निवृत्त पाने वाले योगेश ने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना और कई पत्रिकाओं का संपादन किया है। मगही में जहां उन्होंने महाकाव्य ‘गौतम’ की रचना की, वहीं ‘मगही रामायण’ और ‘मगही गीता’ भी लिखी है।
33 : रामप्रसाद सिंह - रामप्रसाद सिंह (10 जुलाई 1933-25 दिसंबर 2014) मगही साहित्य के भारतेंदु कहे जाते हैं। इनका जन्म 10 जुलाई 1933 को  अरवल जिला के बेलखरा में हुआ था। लम्बे समय तक मगही अकादमी, पटना के अध्यक्ष रहे रामप्रसाद जगजीवन महाविद्यालय, गया में हिन्दी के व्याख्याता थे। मगही भाषा और साहित्य के विकास के लिए इन्होंने आजीवन कार्य किया। मगही भाषा में इनकी अलग-अलग विधाओं में लगभग दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित है ।
34 :  डॉ. भरत सिंह  - हिंदी और मागही के साधक डॉ. भारत सिंह का जन्म नवादा जिले का  हिसुआ के पचाडा में 13 अगस्त 1958 ई. को हुआ है । इनके पिता बच्चू प्रसाद  और माता गुलाब देवी थी ।डॉ . भरत सिंह द्वारा मागही , मगही और प्राकृत भाषा से एम. ए ., पी.एचडी . योग्यता हासिल करने के बाद मगध विश्वविद्यालय बोधगया ,  गया ( बिहार  ) में हिंदी विभागाध्यक्ष स्नातकोत्तर के प्रोफेसर पद पर कार्य किया जा रहा है । इन्होंने आधुनिक मगही गीत : विश्लेषण , टह टह  इन्जोरिया , फुलवाड़ी के फूल , मगही कवियों के भक्ति काव्य , पंचौली ,झार पछोर के बहाने , आखिर कहिया ,दरस पर्स ,कनेर ,प्रचिन्मगहि काव्य सरिता ,मगही कवियों की भक्ति साधना , सूचना पत्रकारिता : सूचना तकनीक , मागही काव्य शास्त्र  मगही काव्य धारा है । डॉ . सिंह को अम्बेडकर फ़ॉलोशिप दिल्ली , नंदन शास्त्री पुरस्कार ,शेखपुरा , भारतीय हिंदी परिषद से गुलाब पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है ।  ये मागध विश्वविद्यालय में 27 जुलाई 2010 से 22 सितंबर 2020 तक मागही विभागाध्यक्ष के पर के किया है । विश्व मगही परिषद के अध्यक्ष , बिहार मागही मंडल के माह सचिव , अखिल भारतीय मागही मंडल के सचिव बिहार मागही अकादमी के सदस्य पद पर मगही भाषा के लिए कार्यशील है ।
मगही के रचनाकारों में महाबलीपुर पटना के जयनाथ कवि की रचना पनघट , कमंडल , और भौरा  , कचनावां जहानाबाद का सिद्धनाथ मिश्र की मगही वाद विज्ञान , मगध विश्वविद्यालय के पाली विभागाध्यक्ष ब्रजमोहन पांडेय नाली की मागही अर्थ विज्ञान का विशेलात्मक विश्लेषण , गया निवासी डॉ. लक्ष्मण प्रसाद सिंह का मगही तथा भोजपुरी रूप विज्ञान के दृष्टि से अवलंबन ,जहानाबाद तथा पटना कॉलेज की पूर्व  प्राध्यापिका संपत्ति आर्याणि की मागही भाषा और साहित्य , गया के निवासी तथा मगध विश्वविद्यालय के स्नाकोत्तर हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ . भरत सिंह का प्रगतिशील मागही धारा ,  अरवल जिले के करपी प्रखंड के केयाल निवासी तथा संस्कृत महाविद्यालय पटना के पूर्व प्राध्यापक डॉ. राम गोपाल पांडेय की रचनाओं में घनघोट ,काव्य क्लश  , केंद्रीय हिंदी निदेशालय दिल्ली में कार्यरत  सरोज कुमार त्रिपाठी की मगही के गौतम त्रैमासिक पत्रिका का संपादन में मगही का विकास में योगदान है । प्रबन्ध काव्य एवं महाकाव्य में हरिनाथ मिश्र - ललित रामायण , हरिनाथ मिश्र - ललित भागवत।रामप्रसाद सिंह - लोहा मरद। योगेश्वर प्रसाद सिंह "योगेश' - गौतम। योगेश पाठक - जरासंध। तथा खण्ड काव्य में  मिथिलेश प्रसाद मिथिलेश - रधिया। रामप्रसाद सिंह - सरहपाद है ।मुक्तक काव्य में  रामनरेश प्रसाद वर्मा - च्यवन।स्वर्णकिरण - जीवक, सुजाता। सुरेश दूवे ""सरस'' - निहोरा। प्रसाद सिंह - परसपल्लव।रामविलास रजकण - वासंती।रामविलास रजकण - दूज के चाँद। रामविलास रजकण - पनसोखा रजनीगंधा।रामपुकार सिंह राठौर - औजन।रामसिंहासन सिंह - जगरना और योगेश्वर प्रसाद ""योगेश'' - लोटचुट्टी है ।गीतिकाव्य और कविता में रामकृष्ण मिश्र - गीत के जुड़छाँट ,  बेलपत्तर , रामदास आर्य - गीत आदमी के। स्वर्णकिरण - धरती फट गेलई। , श्रीनन्दन शास्री - अप्पनगीत , महेन्द्र प्रसाद देहाती - पपिहरा , जय प्रकाश - माटी के दीया , रामाधार सिंह ""आधार'' - मगही कवितावली , सतीश कुमार मिश्र - टूसा , स्वर्णकिरण - धरती के पाती , जयनाथ कवि - पनघट , रामनगीना सिंह ""मगहिया'' - हलफा , राजेनेद्र सिंह - लुआठी , योगेश्वर प्रसाद सिंह "योगेश' - तुलसीदास , रंजन कुमार मिश्र - ढ़रकित लोर , मथुरा प्रसाद नवीन - बड़हिया गोली कांड।राजकुमार प्रसाद - लुत्ती।मृत्युञ्जय मिश्र ""करुणेश'' - गजल हे नाम।दीनबन्धु - तीत-मीठ-गजलगीत।सुरेश दत्त मिश्र - उगेन।रामगोपाल शर्मा ""रुद्र'' - उपदेस - गाथा।श्यामप्यारी कुँअर - वंदना।रामनगीना सिंह ""मगहिया'' - भोर।स्वर्णकिरण - मुआर।ब्रजमोहन पाण्डेय ""नलिन'' (सं) - अतीत - गाथा।रामप्रसाद सिंह (सं.) - झरोखा।रामप्रसाद सिंह (सं.) - मुस्कान।बाबूलाल मधुकर - लहरा।रामनगीना सिंह ""महरिया'' - विक्रमपुकार।रामनगीना सिंह ""महरिया'' - धरड़या गीत।रामनगीना सिंह ""महरिया'' - विक्रम प्रतिज्ञा।रामनगीना सिंह ""महरिया'' -  गवई गीत।रामनगीना सिंह ""महरिया'' - जय मगही। योगेश्वर प्रसाद सिंह ""योगेश'' - इँजोर। , बाबूलाल मधुकर - अंगुरी के दाग।महेन्द्र प्रसाद शुभांसु - तरस उठल जियरा।, गोविन्द प्यासा - बधवा में भेलड़ बिहान। ,गोविन्द प्यासा - सँझउती ,राजेन्द्र पाण्डेय - ढिबरी है ।कहानी संग्रह में  जितेन्द्र वत्स - किरिया करम , श्रीकान्त शास्री - मगही कहानी सेंगरन , राजेश्वर पाठक ""राजेश'' - नगरबहू , लक्ष्मण प्रसाद - कथा थउद , रामनरेश प्रसाद वर्मा - सेजियादान , अभिमन्यु प्रसाद मौर्य - कथा सरोवर।, अलखदेव प्रसाद अचल - कथाकली ,  सुरेश प्रदास निर्द्वेन्द्ध - मुरगा बोल देलक। , तारकेश्वर भारती - नैना काजर , राधाकृष्ण - ए नेउर तू गंगा जा , रामनन्दन - लुट गेलिया , ब्रजमोहन पाण्डेय ""नलिन'' - एक पर एक , रामचन्द्र अदीप - गमला में गाछ , रामचन्द्र अदीप - बिखरइत गुलपासा है । नाटक - बाबूलाल मधुकर - नयका भोर ,  हरिनन्दन किसलय - अप्पन गाँव , बाबूराम सिंह ""लमगोड़ा'' - गन्धारी के सराप ,  बुज्झल दीया क मट्टी , अलखदेव प्रसाद अचल - बदलाव, अभिमन्यु प्रसाद मौर्य - प्रेम अइसन होवड हे , सत्येन्द्र प्रसाद सिंह - अँचरवा के लाज ,  केशव प्रसाद वर्मा - कनहइया क दरद , रानन्दन - कौमुदी महोत्सव , रामनरेश मिस्त्र ""हंस'' - सुजाता , रघुवीर प्रसाद समदर्शी - भस्मासुर , गोपाल रावत पिपासा - आधी रात के बाद है ।एकांकी संग्रह -  छोटू नारायण शर्मा - मगही के दू फूल। , केशव प्रसाद वर्मा - सोना के सीता है । उपन्यास -  जयनाथ पति - सुनीता , फूलबहादुर , गदहनीत , राजेन्द्र प्रसाद चौधेय - बिसेसरा ,  राम नन्दन - आदमी आउ देवता , श्रीकान्त शास्री - गोदना , चक्रधर शर्मा - हाय रे उ दिन , चक्रधर शर्मा - साकल्य , बाबूलाल मधुकर - रमरतिया , द्वारिका प्रसाद - मोनाभिन्या , उपमा दत्त - पियक्कड़ , रामप्रसाद सिंह - नरक-सरग-धरती ,  रामविलास रजकण - धूमैल धोती है । मगही पत्र-पत्रिकाएँ -  तरुण तपस्वी 1946 , मागधी 1952 , मागही 1955 से 1958 , तक  , 1958 से 1978 तक , संपादक  श्रीकान्त शास्री , महामगध 1956 , संपादक  , गोपाल मिश्र केसरी , मगही सनेस 1965 संपादक रामलखन शर्मा , मगही हुंकार 1966 योगेन्द्र , सुजाता 1967 संपादक बाबूलाल मधुकर , माँ 1980 संपादक बांके बिहारी ""वियोगी'' ,सारथी संपादक मथुरा प्रसाद नवीन , मगही लोक 1977 से 1979 , मागही समाज 1979 से 1981 तक संपादक रामप्रसाद सिंह , भोर संपादक पुण्डरीक, कोपल 1971 से 1980 तक जयधारी मिश्र , मागधी 1980  संपादक योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश , गौतम संपादक श्यामनन्दन शास्री हंसराज , पाटलि 1990 के  केशव प्रसाद वर्मा , अखरा के ब्रजमोहन पाण्डेय ""नलिन'' , मगही समाचार के संपादक सतीश कुमार मिश्र है ।युगेश्वर - मगही भाषा , क्रिश्चियन मिशन प्रेस कोलकता - मगही व्याकरण , राजेन्द्र कुमार चौधेय - मगही व्याकरण , राजेश्वरी प्रसाद अंशुल - मगही व्याकरण , सम्पत्ति अर्याणी - मगही व्याकरम कोश , सम्पत्ति अर्याणी - मगही व्याकरण। , सरयू प्रसाद - मगही वर्तनी तथा ध्वनि,  बाबूराम सिंह लमगोड़ा - बनत-बनत बनजाय , रामदास आर्या - शब्द चित्र।राम प्रसाद सिंह - मगही संस्कृति आउ दोसर निबन्ध , मगही के मानकरुप , इन्द्रदेव सिंह - मगही रामायण। , जनकनन्दन प्रसाद सिन्हा "रत्नाकर' - मगही तिनसइया , जानकनन्दन प्रसाद सिन्हा "रत्नाकर'  - मगही सतसई , स्वर्णकिरण - इन्दिरोयाख्यान , रामनरेश प्रसाद वर्मा - मगही मेघदूत,तथा   रामप्रसाद पुण्डरीक - गीता है । शोधकार्य  - मगही भाषा में शोधकार्य  प्रगति के पथ पर है। सम्पति अर्याणी ने मगही भाषा और साहित्य पर डी. लिट् की उपाधि १९६४ में प्राप्त की है। मगही भाषा और साहित्य का प्रकाशन  बिहार राष्ट्र भाषा परिषद, पटना द्वारा किया गया है। . युगेश्वर पाण्डेय हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में मगही भाषा और साहित्य पर अपना लघु शोध प्रबन्ध उपस्थापित किया। भाषा सम्बध अंश का प्रकाशन मगही भाषा में १९६९ में हुआ। सरयु प्रसाद ने पटना विश्वविद्यालय से मगही ध्वनि विज्ञान से सम्बद्ध शोधकार्य  - ए डिस्क्रप्टिव स्टडी आँफ फोनोलॉजी १९६७ में अपना शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया है। मगही ध्वनि विज्ञान तथा व्याकरण निर्माण की दृष्टि से यह शोध प्रबन्ध अतिशय महत्वपूर्ण है। रमा कान्त शास्री, श्रीकान्त शास्री ने मगही भाषा के वयकरण के ऐतिहासिक एवं वर्णनात्मक भाषा विज्ञान विषय पर अपना शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया है। १९६४ में श्रीकान्त शास्री ने पटना विश्वविद्यालय में ए हिस्टोरिकल एण्ड एनालिटिकल स्टडी आॅफ मगही स्पोकन इन पटना एण्ड गया नामक शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया है। रुप विज्ञान की दृष्टि से मगही और भोजपुरी का तुलनात्मक अध्ययन नामक शोध प्रबन्ध पर पी.एच.डी. उपाधि केलिए इन्होंने १९६८ में पटना विश्वविद्यालय में उपस्थापित किया। इस महत्वपूर्ण शोध पत्र का प्रकाशन १९८४ में हुआ। मगही अर्थ विज्ञान का विश्लेषनात्मक निर्वचन नाम शोध प्रबन्ध का उपस्थापन ब्रजमोहन पाण्डेय ""नलिन'' ने पटना विश्वविद्यालय से १९६९ में किया। इसका प्रकाशन १९८२ में अभिनव भारती प्रकाशन इलाहाबाद से हुआ। यह शोध प्रबन्ध भाषा विज्ञान की दृष्टि से हुआ। यह सोध प्रबन्ध भाषा विज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपादेय है। त्रिभुवन ओझा का प्रमुख बिहारी बोलियों का तुलनात्मक अध्ययन नामक शोध प्रबन्ध का प्रकाशन विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी से १९८७ में हुआ है। यह शोध प्रबन्ध बिहारी बोलियां (मगली, मैथिली तथा भोजपुरी) की आन्तरिक एकरुपता को विवेचनात्मक ढ़ंग से प्रस्तुत करता है। सरोज कुमार त्रिपाठी ने हिन्दी और मगही की व्याकरणिक संरचना नामक विषय पर पी.एच.डी. का शोध प्रबन्ध मगह विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया है। इसका प्रकाशन १९९३ में चन्द्र प्रकाशन, बौरी, पटना से १९९३ में हुआ। मागही के विकास में नोवाँआ जहानाबाद के अरविंद कुमार मिश्र  का अटल चालीसा हसि । साहित्यिक गतिविधियों में दत्तमई पटना में जन्म लेने वाले जहानाबाद निवासी राजेन्द्र प्रसाद उर्फ राजेन्द्र सुधाकर ,  जहानाबाद निवासी सागर आनंद , करपी निवासी अरविंद कुमार पाठक का रामायण रचना है । सुबोध कुमार सिंह ( सुबोध ) की रचना वाणावर पौराणिक आख्यान पुस्तक प्रकाशित है । साहित्यवाद में मानववाद की भाषावाद में समाजवाद , बादलाववाद तथा सांस्कृतिक विरासतों की प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है । भाषा एकता और परिवार के साथ समन्वय स्थापित करने का सशक्त माध्यम है और विकासशील गतिविधियों का मार्ग है । मागधी और मगही भाषा से मगध की संस्कृति तथा हिंदी भाषा में भारतीय संस्कृति एकता का प्रतीक है । अंग्रेजी साहित्य  समन्वय की भाषा है । 
                      

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