पुरणों और शास्त्रों में शंख की महत्ता का उल्लेख किया गया है । सनातन संस्कृति , जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव आदि परंपराओं में अत्यंत शुभ माना गया है । शंख जीवन से जुड़ी पवित्र वस्तु है जो उपासना से लेकर उपचार तक में काम आती है । शंख की उत्पत्ति भगवान विष्णु के भक्त दंभ के बेटे दानव शंखचूड़ की अस्थियों में विभिन्न प्रकार के शंखों का निर्माण हुआ था। प्राचीन काल से हमारे ऋषि-मुनि अपनी पूजा-साधना में शंख ध्वनि का प्रयोग करते रहे हैं । शंख से निकलने वाली ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर सकारात्मक ऊर्जा देती है । शंख ध्वनि से क्क ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। वैज्ञानिक के अनुसार शंख की ध्वनि से होने वाले वायु-वेग से वायुमंडल में फैले नाकारात्मक ऊर्जा का अति सूक्ष्म किटाणु नष्ट हो जाते हैं । भगवान कृष्ण ने पांचजन्य निनाद किया था।शुभ कार्य करते समय शंख ध्वनि से शुभता का अत्यधिक संचार होता है। शंख की आवाज को सुन कर लोगों को ईश्वर का स्मरण आता है।शंख वादन से सांस की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से शंख बजाना विशेष लाभदायक है। शंख बजाने से पूरक, कुंभक और प्राणायाम एक साथ हो जाते हैं। पूरक सांस लेने, कुंभक सांस रोकने और रेचक सांस छोड़ने की प्रक्रिया है। घातक बीमारी हृदयाघात, उच्च रक्त चाप, सांस से संबंधित रोग, मंदाग्नि आदि शंख बजाने से ठीक हो जाते हैं।घर में शंख वादन से घर के बाहर की आसुरी शक्तियां भीतर नहीं आ सकतीं। यही नहीं, घर में शंख रखने और बजाने से वास्तु दोष दूर हो जाते हैं।दक्षिणावर्ती शंख सुख-समृद्धि का प्रतीक है ।गर आपको खांसी, दमा, पीलिया, ब्लड प्रेशर या दिल से संबंधित मामूली से लेकर गंभीर बीमारी है तो इससे निजात पाने का एक सरल और आसान सा उपाय है- प्रतिदिन शंख बजाइए।करते हैं कि शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक बीमारियों के संक्रमण के कीटाणुओं का नाश होता है।शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सृजन में वृद्धि होती है।शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं हो सकते हसि ।शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है।शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का भी व्यायाम हो जाता है।शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है। भारतीय संस्कृति में शंख को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला यंत्र है । शास्त्रों और पुराण वेताओ ने शंख को पवित्र तथा सकारात्मक ऊर्जा का द्योतक कहा है । शुभ या उपासना में शंखनाद से नाकारात्मक ऊर्जा की समाप्ति कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर वातावरण को सुदृढ़ करता है । समुद्र मंथन से उत्पन्न 14 रत्नों में शंख को महत्वपुर्ण तथा संक्रमण मुक्त है ।भगवान श्री नारायण की उपासना में शंखनाद आवश्यक है । समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में शंख सनातन वैष्णव सम्प्रदाय में होने वाली उपासना में अत्यधिक महत्व है । सनातन धर्म में देवी-देवताओं ने अपने हाथों में शंख धारण किया है । शंख को जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव आदि परंपराओं में अत्यंत शुभ माना गया है । शंख जीवन से जुड़ी पवित्र वस्तु उपासना से लेकर उपचार तक में काम आती है । शंख की उत्पत्ति भगवान विष्णु के भक्त दंभ के बेटे दानव से हुई थी । शंखचूड़ की अस्थियों में विभिन्न प्रकार के शंखों का निर्माण हुआ था। ऋषि-मुनि पूजा-साधना में शंख ध्वनि का प्रयोग करते रहे हैं । श्रीहरि का प्रिय वाद्य यंत्र शंख साधक की मनोकामना को पूर्ण करके जीवन को सुखमय बनाता है । शंख बजाने से जहां तक उसकी ध्वनि जाती है, वहां तक की सभी बाधाएं, दोष आदि दूर हो जाते हैं । शंख से निकलने वाली ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देती है ।घर में नया शंख लाने के बाद सबसे पहले उसे किसी साफ बर्तन में रख कर अच्छी तरह से जल से साफ कर गाय के कच्चे दूध से स्नान कराने के बाद गंगाजल से स्नान कराएं. फिर शंख को साफ कपड़े से पोंछकर चंदन, पुष्प, धूप आदि से पूजन करना चाहिये । भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से निवेदन करें कि शंख में निवास करें । शुभ फलों की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन पूजा करने से पहले शंख की पूजा करके ही बजाएं जाते है ।शंख समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी के साथ ही उत्पन्न हुआ था । शंख को माता लक्ष्मी का भाई है । घर में शंख है, वहां पर माता लक्ष्मी का सदैव वास होती है । दक्षिणावर्ती शंख को देवता माना गया है ।इसे पूजा घर में रखना और बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है । शंख को हमेशा पूजा स्थान पर जल भरकर रखना चाहिए । शंख में जल भरकर घर में छिड़कने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है । घर में सुबह-शाम शंख बजाने से भूत-प्रेत की बाधा भी दूर होती है ।शंख से मजबूत हो सकती है तमाम ग्रहों की स्थिति ठीक हो जाती है और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं प्रवेश करता वल्कि सकारात्म ऊर्जा का प्रभाव से सुख और समृद्धि बढ़ता है । 18 हजार साल पुराने शंख का उल्लेख है । शंख लिपि और संगीत की उत्पत्ति का रूप शंख है । समुद्री जीव का ढांचा है।सशंख का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्वहिंदु धर्म में शंख का काफी ज्यादा महत्व होता है ।विज्ञान के अनुसार शंख की आवाज जरूरी होती है। वैज्ञानिक के अनुसार शंख-ध्वानि से वातावरण का परिष्कार होता है। शंख की ध्वानि से कीटाणुओं का नाश होता है। शंख के अंदर चूने का पानी भरकर पीने से कैल्शियम की कमी दूर हो जाती है। शंख बजाने से ह्दय रोग की परेशानियों का खत्म हो जाता है। शंख बजाने से वाणी दोष से मुक्ति मिल जाती है। शंख की ध्वनि से संक्रमण से मुक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है । शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकार के शंखों की विशेषता और पूजन-पद्घति अलग है। शंख की आकृति के आधार पर तीन प्रकार का होता हैं। दक्षिणावृत्ति शंख,मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख है । .सफेद रंग का शंख को गंगाजल और दूध से धो कर गुलाबी कपड़े में लपेट कर इसकी पूजा वाली जगह पर रख कर .सुबह के समय पूजा करते समय इसे तीन बार बजा कर बजाने के रख देंना चाहिए ।.शंख का इस्तेमाल करके भी उसे किसी वस्त्र या आसन पर रखें। केवल सुबह के समय तथा संध्या काल में ही शंख बजाएं और हर समय शंख नही बजाया जाता है ।
हिंदू मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक शंख की उत्पत्ति छठे स्थान पर हुई। शंख में अद्भुत गुण मौजूद हैं, अन्य तेरह रत्नों में हैं। दक्षिणावर्ती शंख के अद्भुत गुणों के कारण ही भगवान विष्णु ने उसे अपने हस्तकमल में धारण किया हुआ है।शंख मुख्यतः वामावर्ती और दक्षिणावर्ती है । दैनिक पूजा-पाठ एवं कर्मकांड अनुष्ठानों के आरंभ में तथा अंत में वामावर्ती शंख का नाद किया जाता है। इसका मुख ऊपर से खुला होता है। इसका नाद प्रभु के आवाहन के लिए किया जाता है। इसकी ध्वनि से क्क शब्द निकलता है। यह ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। वैज्ञानिक इस बात पर एकमत हैं कि शंख की ध्वनि से होने वाले वायु-वेग से वायुमंडल में फैले अति सूक्ष्म किटाणु नष्ट हो जाते हैं, जो मानव जीवन के लिए घातक होते हैं। मांगलिक उत्सवों के अवसर पर भी शंख वादन किया जाता है। महाभारत के युद्ध के अवसर पर भगवान कृष्ण ने पांचजन्य निनाद किया था। शुभ कार्य करते समय शंख ध्वनि से शुभता का अत्यधिक संचार होता है। शंख की आवाज को सुन कर लोगों को ईश्वरस्मरण हो आता है।शंख वादन से सांस की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से शंख बजाना विशेष लाभदायक है। शंख बजाने से पूरक, कुंभक और प्राणायाम एक ही साथ हो जाते हैं। पूरक सांस लेने, कुंभक सांस रोकने और रेचक सांस छोड़ने की प्रक्रिया है। घातक बीमारी हृदयाघात, उच्च रक्त चाप, सांस से संबंधित रोग, मंदाग्नि आदि शंख बजाने से ठीक हो जाते हैं।घर में शंख वादन से घर के बाहर की आसुरी शक्तियां भीतर नहीं आ सकतीं। घर में शंख रखने और बजाने से वास्तु दोष दूर हो जाते हैं।दक्षिणावर्ती शंख सुख-समृद्धि का प्रतीक है ।खांसी, दमा, पीलिया, ब्लड प्रेशर या दिल से संबंधित मामूली से लेकर गंभीर बीमारी से निजात पाने का एक सरल और आसान सा उपाय है- प्रतिदिन शंख बजाइए। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है।शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है।शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं हो सकते।शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है।शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का भी व्यायाम हो जाता है।शंख वादन से स्मरण शक्ति भी बढ़ती है।
स्कन्दपुराण के अनुसार प्राचीनकाल मे शंख नामक एक असुर था, जो समुद्र से उत्पन्न हुआ था। उसने इन्द्र आदि समस्त लोकपालो के अधिकार छीन लीये। देवता मेरुगिरि की दुर्गम कंदराओ मे छिपर रहने लगे। उस समय दैत्यो ने विचार किया की यद्यपि मैने देवताओ को जीत लिया तथापि वे बलवान दिखायी देते है। अब इस विषय मे मुझे क्या करना चाहिए। यह बात तो मुझे अच्छी तरह मालूम है कि देवता वेदमंत्रो के बल से ही प्रबल प्रतीत होते हैं, अतः मैं वेदो का ही अपहरण करुगा। इससे सब देवता निर्बल हो जायेगे। ऐसा निश्चय करके वह दैत्य ब्रम्हाजी के सत्यलोक से शीघ्र ही वेदो को हर लाया, उसके द्वारा ले जाये जाते हुए वेद भय से उसके चंगुल से निकल भागे और यज्ञ, मंत्र एवं बीजो के साथ जल मे समा गये। शंखासुर उन्हे खोजता हुआ समुद्र के भीतर घुमने लगा, किन्तु उसने कही भी एक जगह वेदमंत्रो को नही देखा। इधर देवताओ ने भगवान विष्णु के पास जाकर उनकी स्तुति की तब भगवान जागे और इस प्रकार बोले- देवताओ मै तुम्हारे गीत, वाद्य आदि मंगल साधनो से प्रसन्न होकर तुम्हे वर देने के लिये उद्यत हूँ। कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी को तुमने मुझे जगाया है, इसलिए यह तिथि मेरे लीये अत्यन्त प्रीतिदायिनी और माननीय है।शंखासुर द्वारा हरे गये सम्पुर्ण वेद जल मे स्थित है। मैं सागर पुत्र शंख का वध करके उन वेदों को अभी लाये देता हूँ। इस कार्तिक मास मे जो श्रेष्ट मनुष्य प्रातःकाल स्नान करते है, वे सब यज्ञ के अवभृत स्नान द्वारा भलीभाँति नहा लेते है। आज से मै भी कार्तिक मे जल के भीतर निवास करुगा। सब देवता मुनीश्वरो सहित मेरे साथ जल मे आओ।
मत्स्य धारण करके भगवान विष्णु आकाश से जल मे प्रवेश कर शंखासुर को बढ़ करने के बाद भगवान विष्णु बदरीवन मे आ गये थे । बदरी वन में भगवान विष्णु ने सम्पुर्ण ऋषियों को बुलाकर आदेश दिया- मुनीश्वरो तुम जल के भीतर बिखरे हुए वेदमंत्रो की खोज करो और जितनी जल्दी हो सके उन्हे सागर के जल से बाहर निकाल लाओ तब तक मैं देवताओ के साथ प्रयाग मे ठहरता हूँ। ऋषियों ने यज्ञ और बीजोसहित सम्पुर्ण वेदमंत्रो का उद्धार किया। उनमे से जितने मंत्र जिस ऋषी ने उपलब्ध किये, वही उन मंत्रो का उस दिन से ऋषी माना जाने लगा। ऋषियों द्वारा वेद की पुनः उत्पन्न की गई थी । तदनन्तर सब ऋषी एकत्र होकर प्रयाग में गये। वहा उन्होंने ब्रम्हासहित भगवान विष्णु को उपलब्ध हुए सभी वेदमंत्र समर्पित कर दिये। सब वेदो को पाकर ब्रम्हाजी बड़े प्रसन्न हुए। भगवान विष्णु ने शंखासुर को मारकर वेदो का उद्धार किया। प्रभव संबत्सर में चैत्र कृष्ण पंचमी , बुधवार, मूल नक्षत्र , सिद्धि योग ,सायं काल सतयुग ( कृतयुग ) में भगवान विष्णु का प्रथम मत्स्यावतार धारण कर दैत्यराज शंखासुर को बध कर वेदों का उद्धार किया है ।
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