रविवार, मई 30, 2021

मानवीय चेतना का स्वरूप सोमनाथ ज्योतिर्लिङ्ग...


वेदों , पुरणों और शास्त्रों में मानवीय चेतन शक्ति को जागृति के लिए महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है । भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में १२ ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग  गुजरात के प्रभास  क्षेत्र के सौराष्ट्र  वेरावल बंदरगाह में स्थित सोमनाथ शिवलिङ्ग की स्थापना   राजा दक्ष प्रजापति के जामाता तथा औषधि के स्वामी चंद्रदेव द्वारा की गई थी । सोमनाथ तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में  श्राद्ध करने का विशेष महत्त्व है। सोमनाथ में   हिरण, कपिला और सरस्वती नदियों का महासंगम  है। शिव पुराण तथा लिंगपुराण  के अनुसार चन्द्र ने, दक्षप्रजापति राजा की २७ कन्याओं से विवाह किया था। परंतु उनमें से रोहिणी पत्नी को चंद्रमा द्वारा अधिक प्यार व सम्मान और अन्याय करने के कारण  क्रोध में आकर दक्ष ने चंद्रदेव को शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारा तेज , काँति, चमक , क्षीण होता रहेगा। शाप के कारण  हर दूसरे दिन से  चंद्र का तेज घटने लगा। शाप से विचलित और दु:खी चंद्रमा  ने  शिव लिङ्ग की स्थापना कर  भगवान शिव की उपासना प्रारंभ  कर दी। चंद्रमा की उपासना से  शिव प्रसन्न हुए और सोम-चंद्र के शाप का निवारण किया। सोम के कष्ट को दूर करने वाले भगवान शिव ने चंद्रमा द्वारा स्थापित शिवलिंग में अपनी ज्योति प्रकट कर चंद्रमा का क्षय रोग से मुक्त कर  "सोमनाथ ज्योतिर्लिङ्ग स्थापित हुए है । द्वापर युग में  श्रीकृष्ण के भालुका तीर्थ पर विश्राम करने के दौरान शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आँख जानकर अनजाने में तीर मारा था। तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर सोमनाथ क्षेत्र में स्थित भालुका भूमि से वैकुंठ गमन किया है । भगवान कृष्ण के शरीर गमन स्थल पर  स्थान पर कृष्ण मंदिर निर्मित  है । सोमनाथ मंदिर ईसा  पूर्व में अस्तित्व को सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया था । आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने सोमनाथ मंदिर को  नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर का  तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन १०२४ में कुछ ५,००० साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। ५०,००० लोग मंदिर के अंदर हाथ जोडकर पूजा अर्चना कर रहे थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिये गये। इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा करने के बाद सोमनाथ मंदिर पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने सोमनाथ मंदिर को 1706 में गिरा दिया था । यह जूनागढ़ रियासत का मुख्य नगर था। लेकिन १९४८ के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन १०२६ में महमूद गजनी ने  शिवलिंग खंडित किया  था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को १३०० में अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने खंडित किया।  महमूद गजनी सन १०२६ में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था। राजा कुमार पाल द्वारा सोमनाथ स्थान पर अन्तिम मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने १९ अप्रैल १९४० को प्रभास क्षेत्र का उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है।
सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने ८ मई १९५० को मंदिर की आधारशिला रखी तथा ११ मई १९५१ को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर १९६२ में पूर्ण निर्मित हो गया। १९७० में जामनगर की राजमाता ने अपने पति की स्मृति में उनके नाम से 'दिग्विजय द्वार' बनवाया था । इस द्वार के पास राजमार्ग है और पूर्व गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। सोमनाथ मंदिर निर्माण में पटेल का बड़ा योगदान रहा।मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे  स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है । आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधितs ज्योतिर्मार्ग। स्तम्भ को 'बाणस्तम्भ' कहते हैं ।मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के समीप  पार्वती जी का मंदिर हआई ।   ‘पिलग्रिमेज टू फ्रीडम’ केके अनुसार भारत  के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल ने  दिसम्बर 1922 में मैं उस भग्न मंदिर की तीर्थ यात्रा पर निकला। वहां पहुंचकर मैंने मंदिर में भयंकर दुरवस्था देखी—अपवित्र, जला हुआ और ध्वस्त! पर फिर भी वह दृढ़ खड़ा था, मानो हमारे साथ की गई कृतघ्नता और अपमान को न भूलने का संदेश दे रहा हो। उस दिन सुबह जब मैंने पवित्र सभामण्डप की ओर कदम बढ़ाए तो मंदिर के खंभों के भग्नावशेषों और बिखरे पत्थरों को देखकर मेरे अन्दर अपमान की कैसी अग्निशिखा प्रज्जवलित हो उठी थी । नवंबर 1947 के मध्य में सरदार बल्लभ भाई पटेल  प्रभास पाटन के दौरे केके तहत सोमनाथ मंदिर का दर्शन किया। एक सार्वजनिक सभा में सरदार ने घोषणा की: ‘नए साल के इस शुभ अवसर पर हमने फैसला किया है कि सोमनाथ का पुनर्निर्माण करना चाहिए। सौराष्ट्र के लोगों को अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देना होगा। यह एक पवित्र कार्य है जिसमें सभी को भाग लेना चाहिए।’ ...कुछ लोगों ने प्राचीन मंदिर के भग्नावशेषों को प्राचीन स्मारक के रूप में संजोकर रखने का सुझाव दिया जिन्हें मृत पत्थर जीवन्त स्वरूप की तुलना में अधिक प्राणवान लगते थे। लेकिन मेरा स्पष्ट मानना था कि सोमनाथ का मंदिर कोई प्राचीन स्मारक नहीं, बल्कि प्रत्येक भारतीय के हृदय में स्थित पूजा स्थल था जिसका पुनर्निर्माण करने के लिए राष्ट्र प्रतिबद्ध था । मन्दिर  प्रांगण में हनुमानजी का मंदिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मंदिर हैं। अघोरेश्वर मंदिर  के समीप भैरवेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है। पंचमुखी महादेव मंदिर कुमार वाडा में, विलेश्वर मंदिर के नजदीक और राममंदिर स्थित है।  हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर, कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मंदिर, नागनाथ मंदिर समेत  ४२ मंदिर नगर के  दस वर्ग कि. मी . क्षेत्र में स्थापित है ।वेरावल प्रभास क्षेत्र के मध्य में समुद्र के किनारे मंदिर बने हुए हैं ।शशिभूषण मंदिर, भीड़भंजन गणपति, बाणेश्वर, चंद्रेश्वर-रत्नेश्वर, कपिलेश्वर, रोटलेश्वर, भालुका तीर्थ है। भालकेश्वर, प्रागटेश्वर, पद्म कुंड, पांडव कूप, द्वारिकानाथ मंदिर, बालाजी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, रूदे्रश्वर मंदिर, सूर्य मंदिर, हिंगलाज गुफा, गीता मंदिर, बल्लभाचार्य महाप्रभु की ६५वीं बैठक  मंदिर है। प्रभास खंड में  सोमनाथ मंदिर के समयकाल में देव मंदिर  थे। शिवजी के १३५, विष्णु भगवान के ५, देवी के २५, सूर्यदेव के १६, गणेशजी के ५, नाग मंदिर १, क्षेत्रपाल मंदिर १, कुंड १९ और नदियां ९  हैं।  शिलालेख के अनुसार  महमूद गजनवी के हमले के बाद सोमनाथ मंदिर को इक्कीस  बार  निर्माण किया गया।   गोमती नदी में स्नान का विशेष महत्त्व बताया गया है। गोमती  नदी का जल सूर्योदय में  बढ़ता  है और सूर्यास्त पर घटता  है ।गोमती का जल  सुबह सूरज निकलने से पूर्व डेढ फीट  रह जाता है। 
भगवान शिव  कृपा से   औषधि के स्वामी चंद्रमा  क्षय मुक्त हो कर  यश का विस्तार करने के लिये प्रेरणा देने कारण
भगवान शिव सोमेश्वर कहलाए थे । सोमनाथ ज्योतिर्लिङ्ग की उपासना से क्षय , कोढ़ आदि रोगों का नाश होता है ।प्रभास क्षेत्र में देवों द्वारा सोमकुण्ड , चंद्रकुण्ड स्थापित किया गया था ।औषधि के स्वामी चंद्रमा निरोग हो कर कार्य प्रारंभ किया । सोमनाथ ज्योतिर्लिङ्ग को सोमेश्वर लिङ्ग कहा गया है ।सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का उपज्योतिर्लिंग अंतकेश्वर मही नदी और समुद्र के संगम के किनारे स्थापित है । अंतकेश्वर उप ज्योतिर्लिङ्ग का जलाभिषेक समुद्र और मही नदी  द्वारा किया जाता है ।

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