पुरणों तथा शास्त्रों में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का उल्लेख महत्वपूर्ण है । आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले का कृष्णा नदी के किनारे स्थित दक्षिण भारत का कैलाश श्री शैल , श्री पर्वत या क्रोंच पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग विराजमान है । आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से दर्शको के सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है । भगवान शिव तथा माता पार्वती के पुत्र स्वामी कार्तिकेय और गणेश जी विवाह के लिए आपस में कलह करने लगे। गणेश जी का कहना था कि कार्तिक जी बड़े हैं, इसलिए उनका विवाह पहले होना चाहिए, किन्तु श्री गणेश अपना विवाह पहले करना चाहते थे। इस झगड़े पर फैसला देने के लिए दोनों अपने माता-पिता भवानी और शंकर के पास पहुँचे। उनके माता-पिता ने कहा कि तुम दोनों में कोई इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहाँ आ जाएगा, उसी का विवाह पहले होगा। शर्त सुनते ही कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े। इधर स्थूलकाय श्री गणेश जी और उनका वाहन चूहा, भला इतनी शीघ्रता से वे परिक्रमा कैसे कर सकते थे। गणेश जी के सामने भारी समस्या उपस्थित थी। श्रीगणेश जी शरीर से ज़रूर स्थूल और बुद्धि के सागर हैं। गणेश जी ने माता पार्वती तथा पिता देवाधिदेव महेश्वर से एक आसन पर बैठने का आग्रह किया। भगवान शिव और माता पार्वती के आसन पर बैठ जाने के बाद श्रीगणेश ने माता पिता की सात परिक्रमा , पूजन किया- पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रकान्तिं च करोति यः।तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम्।। श्रीगणेश माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गये। उनकी चतुर बुद्धि को देख कर शिव और पार्वती दोनों बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह भी करा दिया। जिस समय स्वामी कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आये, उस समय श्रीगणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि के साथ हो चुका था। श्री गणेशजी को उनकी ‘सिद्धि’ नामक पत्नी से ‘क्षेम’ तथा बुद्धि नामक पत्नी से ‘लाभ’, ये दो पुत्ररत्न मिल गये थे। देवर्षि नारद ने स्वामी कार्तिकेय से गणेश जी का विवाह के संबंध में सारा वृत्तांत सुनाया था । श्रीगणेश का विवाह और उन्हें पुत्र लाभ का समाचार सुनकर स्वामी कार्तिकेय जल उठे। इस प्रकरण से नाराज़ कार्तिक ने शिष्टाचार का पालन करते हुए अपने माता-पिता के चरण छुए और वहाँ से चल दिये।माता-पिता से अलग होकर कार्तिक स्वामी क्रौंच पर्वत पर रहने लगे। शिव और पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को समझा-बुझाकर बुलाने हेतु देवर्षि नारद को क्रौंचपर्वत पर भेजा। देवर्षि नारद ने बहुत प्रकार से स्वामी कार्तिकेयको मनाने का प्रयास किया, किन्तु वे वापस नहीं आये। उसके बाद कोमल हृदय माता पार्वती पुत्र स्नेह में व्याकुल हो उठीं। वे भगवान शिव जी को लेकर क्रौंच पर्वत पर पहुँच गईं। स्वामी कार्तिकेय को क्रौंच पर्वत अपने माता-पिता के आगमन की सूचना मिल गई और वे वहाँ से तीन योजन अर्थात् छत्तीस किलोमीटर दूर चले गये। कार्तिकेय के चले जाने पर भगवान शिव क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये थे । भगवान शिव और माता पार्वती के रूप में ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध हुए। ‘ माता पार्वती के रूप में मल्लिका एवं भगवान शिव के रूप में ‘अर्जुन’ का संयुक्त रूप प में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग हुए है । भगवान शंकर को कहा जाता है।
कौंच पर्वत के राजा चन्द्रगुप्त की राजधानी क्रोंच थी। राजा चंद्रगुप्त की पुत्री राजकन्या संकट से मुक्ति के लिये पर्वतराज की शरण में पहुँच कर ग्वालों के साथ कन्दमूल खाती और दूध पीती थी। राज कन्या के पास श्यामा (काली) गौ की सेवा करती थी। उस गौ के साथ विचित्र घटना घटित होने लगी। कोई व्यक्ति छिपकर प्रतिदिन उस श्यामा का दूध निकाल लेता था। एक दिन उस कन्या ने किसी चोर को श्यामा का दूध दुहते हुए देख लिया ।उन्हें शिवलिंग के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दिया।राजकुमारी ने शिवलिंग के ऊपर एक सुन्दर सा मन्दिर बनवा दिया। प्राचीन शिवलिंग ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध है। मंदिर के बाहर पीपल पाकर का सम्मिलित वृक्ष है। उसके आस-पास चबूतरा है। मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे मल्लिका देवी मंदिर हैं। सभा मंडप में नन्दी की विशाल मूर्ति है।पातालगंगा- मंदिर से लगभग दो मील पर पातालगंगा है। इसका मार्ग कठिन है। एक मील उतर और 852 सीढ़ियाँ हैं। क्रोंच पर्वत के नीचे कृष्णा नदी में यात्री स्नान करके वहाँ से चढ़ाने के लिए जल लाते हैं। वहाँ कृष्णा नदी में दो नाले मिलते हैं। वह स्थान त्रिवेणी कहा गया है। उसके समीप पूर्व में गुफा में भैरवादि मूर्तियाँ हैं। 500 वर्ष पूर्व श्री विजयनगर के राजा कृष्णराय पहुँचे थे। उन्होंने मण्डप का निर्माण कराया तेहस शिखर सोने का बनाया था। उनके डेढ़ सौ वर्षों बाद महाराज शिवाजी भी मल्लिकार्जुन ज्यो को सुलझाने के बारे में विचार किया। उन्होंने दोनों के सामने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि दोनों में मान बताकर उनकी प्रकृति लिंग के दर्शन हेतु क्रौंच पर्वत पर पहुँचे थे। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उपासना से जीवन में रिद्धि सिद्धि के साथ सर्वांगीण विकास होते है । मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का उप लिंग भृगु क्षेत्र का रुद्रेश्वर की उपासना से सुख की प्राप्ति होती है । भगवान शिव और माता पार्वती की ज्योतिर्मय स्वरूप मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित है । श्री शैल पर भगवान शिव प्रत्येक अमावस्या और माता पार्वती पूर्णिमा को पदार्पण करती है ।
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