गुरुवार, जून 10, 2021

सुगंधा तथा दक्षिणेश्वर काली शक्तिपीठ : शक्ति स्थल...

       
   सनातन धर्म का शाक सम्प्रदाय के विभिन्न धर्म ग्रंथो में  शक्तिपीठ का उल्लेख देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52  है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है।  भगवान शिवज की भार्या माता  सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान सहन नहीं करने के कारण दक्ष प्रजापति द्वारा आहूत यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई थी ।भगवान  शिवजी को माता सती की यज्ञ कुंड में स्वयं आहुति करने के संबंध में जानकारी मिलने के बाद भगवान शिव ने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट जाने के बाद भगवान  शिवजी अपनी भार्या सती की जली हुई शरीर लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां सती माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए है । पुरणों के  आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से शक्तिपीठ की  उत्पत्ति हुई । भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर माता सती के विभिन्न अंग और वस्त्र 108 स्थलों पर गिरेने से शक्तिपीठ हुए है ।

   108 शक्तिपीठ माता आदि शक्ति की उपासना स्थल है। 
उग्रतारा व सुगंधा शक्तिपीठ ,शिकारपुर बांग्लादेश   - बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल  का शिकारपुर के  सुनंदा नदी (सोंध) के किनारे  मां सुगंध, सती माता की नासिका गिरने के कारण उग्रतारा शक्ति जिसे सुनंदा शक्तिपीठ  और त्र्यंबक भैरव हैं। उग्रतारा शती पीठ   मंदिर की पत्थर से निर्मित  दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र उत्कीर्ण हैं। भरतचंद्र की बांग्ला कविता ‘अन्नादामंगल’ में माता उग्रतारा का उल्लेख मिलता है। उग्रतारा सुगंदा देवी के पास तलवार, खेकड़ा, नीलपाद, और नरमुंड की माला है। कार्तिक, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश उनके ऊपर स्थापित हैं । बांग्ला देश का शिकारपुर के सुनंदा नदी के किनारे माता सुगंधा व उग्रतारा शक्ति पीठ तंत्र मंत्र साधना का महान स्थल है ।
दक्षिणेश्वर काली शक्ति पीठ , बंगाल , भारत -  सनातन धर्म की शाक्त सम्प्रदाय में शक्ति की उपासना का का महत्वपूर्ण स्थान है । देवी भागवत और  पुराण में शक्ति पीठों का उल्लेख किया गया है। बंगाल का  कोलकाता में स्थित कोलकाता कालीघाट मंदिर माता काली को समर्पित है। माता काली, देवी दुर्गा के सातवें रूप कालरात्रि के रूप में पूजी जाती है। माता कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुल जाते हैं और  ब्रह्मांड में  असुर नकारात्मक ऊर्जा शक्तियां से  माता कालरात्रि के  नाम उच्चारण से दूर भागने लगती हैं तथा भक्तों के लिए सुरक्षा कवच है । माता के नौ रूप है - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यानी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।देवी दुर्गा के सातवें रूप कालरात्रि मां काली के भी 4 रूप होते हैं।  मां काली के 4 रूपों में  दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली है । कोलकाता में स्थित काली मंदिर को काली मां के भक्तों के लिए सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है ।माता सती की दाए पैर की 4 उंगलियां यहां पर गिरी थी । काली मंदिर के गर्भगृह में  मां काली की मूर्ति की जीभ को सोने का बनाया गया है। मां काली की जीभ में दानव और असुरों के रक्त लगे होते हैं। माता काली  की मूर्ति में माता काली का रौद्र रूप झलकता है उनके बाल, उनके गले में नर मुंडो की माला तथा उनके हाथ में भी नर मुंडो की माला और कुल्हाड़ी माता की रौद्र रूप को निहारती हुई नजर आती है। माता काली को दक्षिणेश्वर काली कहा जाता है । कामदेव ब्रह्मचारी जिनका नाम गंगोपाध्याय द्वारा कालीघाट शक्तिपीठ की स्थापना किया गया था ।  सन 1836 में जमीदार काशीनाथ राय ने दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण कराया था। माता काली के मंदिर घाट को अघोर साधना और तांत्रिक साधना के लिए काफी प्रसिद्धि प्राप्त है।  केवाड़तला श्मशान घाट को साधना का केंद्र माना जाता है । मदर टेरेसा की निर्मल हृदय की संस्था स्थापित है। माता काली के रौद्र रूप में माता को गुस्से में, माता के हाथ में अस्त्र, माता के गले में और कमर में नर मुंड माला और माता के पैरों के नीचे भगवान शिव को देखा जाता है ।हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर कालीघाट के काली  शक्तिपीठ  है। बंगाल  की राजधानी कोलकता में देवी-देवता काली देवी, शिव प्रतिमा स्वरूप देवी काली भगवान शिव के छाती पर पैर रखी हुई हैं। उनके गले में नरमुण्‍डों की माला है।  माता काली मंदिर तथा नकुलेश भैरव मंदिर है । मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं। पास ही में नकुलेश मंदिर है।

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