विश्व और भारतीय संस्कृति का वेदों ,पुरणों उपनिषदों , विभिन्न धर्मग्रंथों में योग को भिन्न भिन्न रूप से उल्लेख किया गया है ।योग की उत्पत्ति मानव सभ्यता के प्रारंभ से हुई है । योग विद्या का उद्भव आदि योगी" तथा "आदि गुरूभगवान शिव है।भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषियों द्वारा योग का विभिन्न रूप प्रारम्भ किया गया है । भगवान ब्रह्मा , विष्णु , कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने योग का विभिन्न रूपों में ध्यान , मनन , मैडिटेशन दिया है । सिद्ध सम्प्रदाय , शैवसम्प्रदाय ,, नाथसम्प्रदाय , ब्रह्मसम्प्रदाय , वैष्णव सम्प्रदाय तथा शाक्त और सौर सम्प्रदाय संस्कृति में योग का महत्व है । पूर्व वैदिक काल (ईसा पूर्व 3000 से पहले) से योग प्रारम्भ है ।पश्चिमी विद्वान द्वारा योग को 500 ई. पू. बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव कहा गया है । हड़प्पा और मोहनजोदड़ तथा सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त योग मुद्राओं से ज्ञात है कि योग का 5000 वर्ष पूर्व से था। वैदिक काल (3000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) वैदिक काल में एकाग्रता का विकास करने के लिए और सांसारिक कठिनाइयों को पार करने के लिए योगाभ्यास किया जाता था। ब्रह्मचर्य आश्रम में वेदों की शिक्षा के साथ शस्त्र , अस्त्र और योग की शिक्षा दी जाती थी।यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति॥' ( ऋक्संहिता, मंडल-1, सूक्त-18, मंत्र-7) अर्थात- योग के बिना विद्वान का यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता है । स घा नो योग आभुवत् स राये स पुरं ध्याम। गमद् वाजेभिरा स न:॥' ( ऋग्वेद 1-5-3 अर्थात वही परमात्मा हमारी समाधि के निमित्त अभिमुख हो, उसकी दया से समाधि, विवेक, ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा का हमें लाभ हो, अपितु वही परमात्मा अणिमा आदि सिद्धियों के सहित हमारी ओर आगमन करे। उपनिषदों, महाभारत और भगवद्गीता में योग में ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राज योग का उल्लेख है। इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्। विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥ श्रीमद्भगवद्गीता ४.१ ।अर्थात् हे अर्जुन मैने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था , सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। इस अवधि में योग, श्वसन एवं मुद्रा सम्बंधी अभ्यास न होकर एक जीवनशैली बन गया था। उपनिषद् में इसके पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। कठोपनिषद में योग लक्षण है- तां योगमित्तिमन्यन्ते स्थिरोमिन्द्रिय धारणम् । जैन और बौद्ध उत्थान काल के दौर में यम और नियम के अंगों पर जोर दिया जाने लगा। यम और नियम अर्थात अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप और स्वाध्याय का प्रचलन और योग को सुव्यवस्थित रूप दिया गया था। 563 से 200 ई.पू. में तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान - का क्रिया योग प्रचलन था । बृहदारण्यक उपनिषद में योगयज्ञवल्क्य और गार्गी संहिता के गार्गी द्वारा साँस लेने सम्बन्धी व्यायाम, शरीर की सफाई के लिए आसन और ध्यान का उल्लेख छांदोग्य उपनिषद में योगासन के संबंध है। शास्त्रीय काल (200 ईसा पूर्व से 500 ई) में पतञ्जलि ने वेद की योग विद्या को 200 ई.पू. योग के 195 योगसूत्र में सूत्र का योग, राजयोग का उल्लेख किया है। योग के यम (सामाजिक आचरण), नियम (व्यक्तिगत आचरण), आसन (शारीरिक आसन), प्राणायाम (श्वास विनियमन), प्रत्याहार (इंद्रियों की वापसी), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि है । पतंजलि योग में शारीरिक मुद्राओं एवं श्वसन को स्थान से ज्यादा ध्यान और समाधि को अधिक महत्त्व दिया गया है। पतंजलि का योगसूत्र, योगयाज्ञवल्क्य, योगाचारभूमिशास्त्र, और विसुद्धिमग्ग प्रमुख हैं। मध्ययुग (500 ई से 1500 ई) में पतंजलि योग के अनुयायियों ने आसन, शरीर और मन की सफाई, क्रियाएँ और प्राणायाम करने को योग का रूप हठयोग है। मध्य युग में योग की पद्धतियाँ प्रारम्भ हुईं थी ।
स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो के धर्म संसद में विश्व को योग से परिचित कराया। महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानन्द, रमण महर्षि योगियों ने पश्चिमी दुनिया को प्रभावित किया था । टी. कृष्णमाचार्य , बी.के.एस आयंगर, पट्टाभि जोइस और टी.वी.के देशिकाचार विश्व में योग को लोकप्रिय बनाया है। ११ दिसम्बर सन २०१४ को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में २१ जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था जिसे 193 देशों में से 175 देशों ने बिना किसी मतदान के स्वीकार कर लिया। यूएन ने योग की महत्ता को स्वीकारते हुए कहा कि ‘योग मानव स्वास्थ्य व कल्याण की दिशा में एक सम्पूर्ण नजरिया है।’ योग का योगसूत्र , हठयोग , जैन ध्यान , जैन धर्म में योग , अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस , अष्टांग योग , घेरण्ड संहिता योगयाज्ञवल्क्य द्वारा योग सिद्धांत का रूप दिया गया है । स्वस्थ तन एवं मन की साधना पद्धति योग है । योगः कर्मशु कौशलम् ।योग आध्यात्मिक प्रक्रिया है । शरीर, मन और आत्मा को साथ लाने के लिए योग है। योग भारत से बौद्ध पन्थ के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में फैल है । 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है। परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो, योग शब्द के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये उपयुक्त हो और योग के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो। भगवद्गीता प्रतिष्ठित ग्रन्थ माना जाता है। उसमें योग शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है, कभी अकेले और कभी सविशेषण, जैसे बुद्धियोग, सन्यासयोग, कर्मयोग। वेदोत्तर काल में भक्तियोग और हठयोग नाम भी प्रचलित हो गए हैं। पतंजलि योगदर्शन में पाशुपत योग और माहेश्वर योग है।‘योग’ शब्द ‘युज समाधौ’ आत्मनेपदी दिवादिगणीय धातु में ‘घं’ प्रत्यय लगाने से निष्पन्न होता है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है 'योगः कर्मसु कौशलम्' ( कर्मों में कुशलता योग है।पातञ्जल योग दर्शन के अनुसार - योगश्चित्तवृतिनिरोधः (1/2) अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। सांख्य दर्शन के अनुसार - पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते। अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है। विष्णुपुराण के अनुसार - योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है। भगवद्गीता के अनुसार - सिद्धासिद्धयो समोभूत्वा समत्वं योग उच्चते (2/48) अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।भगवद्गीता के अनुसार - तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् अर्थात् कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है। आचार्य हरिभद्र के अनुसार - मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग है। बौद्ध धर्म के अनुसार - कुशल चितैकग्गता योगः अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है। वैदिक संहिताओं के अंतर्गत तपस्वियों तपस के बारे में ((कल | ब्राह्मण)) प्राचीन काल से वेदों में (९०० से ५०० बी सी ई) उल्लेख है । योग या समाधि मुद्रा को प्रदर्शित करती है, सिंधु घाटी सभ्यता (सी.3300-1700 बी.सी. इ.) के स्थान पर प्राप्त हुईं है। पुरातत्त्वज्ञ ग्रेगरी पोस्सेह्ल के अनुसार," ये मूर्तियाँ योग के धार्मिक संस्कार" के योग से सम्बन्ध है। सिंधु घाटी सभ्यता और योग-ध्यान में सम्बन्ध है।
मधुसूदन सरस्वती (जन्म 1490) ने अठारह योग का वर्णन किया है। हठयोग योग 15वीं सदी के भारत में हठ योग प्रदीपिका के संकलक, योगी स्वत्मरमा द्वारा वर्णित किया गया था।हठयोग पतांजलि के राज योग सत्कर्म पर केन्द्रित है । भौतिक शरीर की शुद्धि ही मन की, प्राण की और विशिष्ट ऊर्जा की शुद्धि लाती है।जैन शास्त्र, जैन तीर्थंकरों को ध्यान मे पद्मासना या कायोत्सर्ग योग मुद्रा में दर्शाया है।पतांजलि योगसूत्र के पांच यामा या बाधाओं और जैन धर्म के पाँच प्रमुख प्रतिज्ञाओं में अलौकिक सादृश्य है, जिससे जैन धर्म का एक मजबूत प्रभाव का संकेत करता है। लेखक विवियन वोर्थिंगटन ने कहा है कि :"योग पूरी तरह से जैन धर्म को अपना ऋण मानता है और विनिमय मे जैन धर्म ने योग के साधनाओं को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया" । योग के संबंध में पुज्यपदा (5 वीं शताब्दी सी इ) , इष्टोपदेश , आचार्य हरिभद्र सूरी (8 वीं शताब्दी सी इ) , योगबिंदु , योगद्रिस्तिसमुच्काया , योगसताका ,योगविमिसिका , आचार्य जोंदु (8 वीं शताब्दी सी इ) , योगसारा , आचार्य हेमाकान्द्र (11 वीं सदी सी इ) , योगसस्त्र , आचार्य अमितागति (11 वीं सदी सी इ) , योगसराप्रभ्र्ता में उल्लेख है। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का प्रभाव रहने के कारण शारीरिक मुद्राओं आसन और श्वास नियंत्रण प्राणायाम को अनुकूलित किया है। 11 वीं शताब्दी के भारतीय योग पाठ, अमृतकुंड, का अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया था।योग तंत्र के अनुसरण करनेवालों का संबंध साधारण, धार्मिक, सामाजिक और तार्किक वास्तविकता में परिवर्तन ले आते है। तांत्रिक अभ्यास में माया, भ्रम के रूप में अनुभव प्राप्त और मुक्ति प्राप्त होता है।[70]हिन्दू धर्म द्वारा प्रस्तुत किया गया निर्वाण के कई मार्गों में से यह विशेष मार्ग तंत्र को भारतीय धर्मों के प्रथाओं जैसे योग, ध्यान, और सामाजिक संन्यास से जोड़ता है, जो सामाजिक संबंधों और विधियों से अस्थायी या स्थायी वापसी पर आधारित हैं।[70]तांत्रिक प्रथाओं और अध्ययन के दौरान, छात्र को ध्यान तकनीक में, विशेष रूप से चक्र ध्यान, का निर्देश दिया जाता है। जिस तरह यह ध्यान जाना जाता है और तांत्रिक अनुयायियों एवं योगियों के तरीको के साथ तुलना में यह तांत्रिक प्रथाओं एक सीमित रूप में है, लेकिन सूत्रपात के पिछले ध्यान से ज्यादा कुंडलिनी योग माना जाता है जिसके माध्यम से ध्यान और पूजा के लिए "हृदय" में स्थित चक्र में देवी को स्थापित करते है। विश्व प्रसिद्ध योगगुरुओं में अयंगार योग के संस्थापक बी के एस अयंगर स्वामी शिवानंद और योगगुरु रामदेव है।
अयंगर को विश्व के अग्रणी योग गुरुओं में से एक माना जाता है और उन्होंने योग के दर्शन पर कई किताबें भी लिखी थीं, जिनमें 'लाइट ऑन योगा', 'लाइट ऑन प्राणायाम' और 'लाइट ऑन द योग सूत्राज ऑफ पतंजलि' शामिल हैं। [73] अयंगर का जन्म 14 दिसम्बर 1918 को बेल्लूर के एक गरीब परिवार में हुआ था।अयंगर बचपन में काफी बीमार रहा करते थे। ठीक नहीं होने पर उन्हें योग करने की सलाह दी गयी और तभी से वह योग करने लगे। अयंगर को 'अयंगर योग' का जन्मदाता कहा जाता है। उन्होंने इस योग को देश-दुनिया में फैलाया। सांस की तकलीफ के चलते 20 अगस्त 2014 को उनका निधन हो गया।भारतीय योग-गुरु रामदेव ने योगासन व प्राणायामयोग के क्षेत्र में योगदान दिया है। रामदेव स्वयं जगह-जगह जाकर योग शिविरों का आयोजन करते हैं ।21 जून 2015 को प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर 192 देशों और 47 मुस्लिम देशों में योग दिवस का आयोजन किया गया। दिल्ली में एक साथ ३५९८५ लोगों ने योगाभ्यास किया।इसमें 84 देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे। योग दिवस पर भारत ने विश्व रिकॉर्ड बनाकर 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में अपना नाम दर्ज करा लिया है।योग का उद्देश्य योग के अभ्यास के कई लाभों के बारे में दुनिया भर में जागरूकता बढ़ाना है।लोगों के स्वास्थ्य पर योग के महत्व और प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 21 जून को योग का अभ्यास किया जाता है। शब्द ‘योग‘ संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है जुड़ना या एकजुट होना। योग से न केवल व्यक्ति का तनाव दूर होता है बल्कि मन और मस्तिष्क को भी शांति दिमाग, मस्तिष्क को ताकत पहुंचा कर आत्मा को शुद्ध करता है।योग का स्वास्थ्य में सुधार , मोक्ष प्राप्त करने का माध्यम है। जैन धर्म, अद्वैत वेदांत के मोनिस्ट संप्रदाय और शैव सम्रदाय में योग का लक्ष्य मोक्ष का रूप लेकर सभी सांसारिक कष्ट एवं जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है । महाभारत में, योग का लक्ष्य ब्रह्मा के दुनिया में प्रवेश के रूप में वर्णित किया गया है ।मीर्चा एलीयाडे ने कहा है कि शारीरिक व्यायाम और आध्यात्मिक योग तकनीक है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन लिखते हैं कि समाधि में वितर्क, विचार, आनंद और अस्मिता है । ग्रंथो के अनुसार योग करने वालों में पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है । योग करने वाले मानसिक , शारीरिक , आत्मिक , आध्यात्मिक ज्ञान और समृद्धि युक्त रहते है । भारतीय ऋषि , महर्षि योग और पश्चिमी सभ्यता के लोग मेडिटेशन करते है । योग शारीरिक , आध्यात्मिक , मानसिक चेतनाजागृत करने का द्योतक है।योग की उत्पत्ति भगवान शिव द्वारा की गई है ।योग को ऋषियों, महर्षियों और शैव , वैष्णव , ब्रह्म , बौद्ध , जैन सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा अपनायी गईं है ।विभिन्न ग्रंथो में मानव संस्कृति और सभ्यता का प्रारंभिक शिक्षा योग का उल्लेख मिलता है ।26 हजार वर्ष पूर्व तथा 5000 वर्ष पूर्व ऋषि पतञ्जलि द्वारा योग की विभिन्न रूप दिया गया था ।1920 ई. में सिंधु , सरस्वती सभ्यता 3000 - 1700 ई. पू. की भूगर्भ में समाहित का उत्खनन के बाद योग की खोज हुई है । ऋषि पतंजलि का जन्म गोंदरमउ में 200 ई.पू. में हुआ था । योग शास्त्र के अनुसार गोरखपुर के गोरखनाथ , गोंदर मउ के पतंजलि , , 1700 ई. पू. से 1900 ई.पू. तक महर्षि रमन और 500 ई. पू. से 800 ई. तक योग का विकास हुआ था । योग का उल्लेख ऋग्वेद में है । योग जीवात्मा और परमात्मा का एकीकरण तथा शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास का केंद्र विंदु है । योग का पिता भगवान शिव ,आदिगुरु , आदि योगी और आदि योग गुरु है ।
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