शुक्रवार, जून 04, 2021

ससर्वार्थसिद्धि का स्थल रामेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग...

                            
    भारतीय और विश्व संस्कृति चेतना जागृति का स्थल तथा पुरणों , उपनिषदों , स्मृतियों में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रधानरूप में उल्लेख किया गया है ।  तमिलनाडु के रामनाथ पुरम जिले का रामेश्वर में  रामेश्वर ज्योतिर्लिंग  स्थित है।रामेश्वरम हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। रामेश्वर द्वीप भारत की मुख्य भूमि के साथ जुड़ा हुआ था, परन्तु बाद में सागर की लहरों ने इस मिलाने वाली कड़ी को काट डाला, जिससे वह चारों ओर पानी से घिरकर टापू बन गया। भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिसपर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंच कर लंका पाई।भगवान  राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। ३० मील (४८ कि.मी) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं।  मंदिर  का गलियारा विश्व का  लंबा गलियारा है। ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी  को नावों से पार किया जाता था।  धनुष्कोटि से मन्नार द्वीप तक पैदल चलकर  जाते थे।  १४८० ई में चक्रवाती तूफान ने सेतु को  तोड़ दिया। चार सौ वर्ष पूर्व  कृष्णप्पनायकन राजा ने उस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया।  जर्मन इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल का रेल का एक सुंदर पुल बनवाया गया। पुल पर दक्षिण से उत्तर की और हिंद महासागर का पानी बहता  है। रामेश्वरम् से दक्षिण में कन्याकुमारी नामक प्रसिद्ध तीर्थ है। रत्नाकर बंगाल की खाडी यहीं पर हिंद महासागर से मिलती है।  रामनाथ का मंदिर  है। दक्षिण के  मंदिर डेढ़-दो हजार साल पहले के बने है  । रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा  उत्तर-दक्षिणमें १९७ मी. एवं पूर्व-पश्चिम १३३ मी. है। मंदिर के परकोटे की चौड़ाई ६ मी. तथा ऊंचाई ९ मी. है। मंदिर के प्रवेशद्वार का गोपुरम ३८.४ मी. ऊंचा तथा ६ हेक्टेयर में निर्मित  है ।मंदिर में विशालाक्षी जी के गर्भ-गृह के निकट  नौ ज्योतिर्लिंग लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित  हैं। रामनाथ के मंदिर के  ताम्रपट के अनुसार ११७३ ईस्वी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने रामेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग लिंग के गर्भगृह का निर्माण करवाया था। पंद्रहवीं शताब्दी में राजा उडैयान सेतुपति और निकटस्थ नागूर निवासी वैश्य ने १४५० में इसका ७८ फीट ऊंचा गोपुरम निर्माण करवाया साथ ही मदुरई के देवी-भक्त ने गोपुरम का जीर्णोद्धार करवाया था। सोलहवीं शताब्दी में दक्षिणी भाग के द्वितीय परकोटे की दीवार का निर्माण तिरुमलय सेतुपति ने करवाया था। मदुरई के राजा विश्वनाथ नायक के अधीनस्थ राजा उडैयन सेतुपति कट्टत्तेश्वर ने नंदी मण्डप आदि निर्माण करवाए। नंदी मण्डप २२ फीट लंबा, १२ फीट चौड़ा व १७ फीट ऊंचा है। रामनाथ के मंदिर के साथ सेतुमाधव का मंदिर  पांच सौ वर्ष पूर्व  रामनाथपुरम् के राजा उडैयान सेतुपति  था। सत्रहवीं शताब्दी में दलवाय सेतुपति ने पूर्वी गोपुरम आरंभ किया। १८वीं शताब्दी में रविविजय सेतुपति ने देवी-देवताओं के शयन-गृह व एक मंडप बनवाया।  मुत्तु रामलिंग सेतुपति ने बाहरी परकोटे का निर्माण करवाया। १८९७ – १९०४ के  देवकोट्टई के  परिवार ने १२६ फीट ऊंचा नौ द्वार सहित पूर्वीगोपुरम निर्माण करवाया। इसी परिवार ने १९०७-१९२५ में गर्भ-गृह की मरम्मत करवाई। बाद में इन्होंने १९४७ में महाकुम्भाभिषेक करवाया।
भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का रामेश्वर मंदिर भारतीय संस्कृति का विरासत है। रामेश्वर  मंदिर के प्रवेश-द्वार चालीस फीट ऊंचा और मंदिर के अंदर सैकड़ौ विशाल खंभे पर बेल-बूटे की  कारीगरी है। रामनाथ की मूर्ति के चारों और परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए है। इनमें तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ। इस प्राकार की लंबाई चार सौ फुट से अधिक है। दोनों और पांच फुट ऊंचा और करीब आठ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है। चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़े-बड़े खंभो की लम्बी कतारे खड़ी है । खंभों की अद्भुत कारीगरी देखकर विदेशी भी दंग रह जाते है। यहां का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है।  रामनाथ जी के मंदिर के भीतरी भाग में एक तरह का चिकना काला पत्थर लगा है।  के विशाल मंदिर को बनवाने और उसकी रक्षा करने में रामनाथपुरम् नामक छोटी रियासत के राजाओं का बड़ा हाथ रहा। अब तो यह रियासत तमिल नाडु राज्य में मिल गई हैं। रामनाथपुरम् के राजभवन में एक पुराना काला पत्थर रखा हुआ है। 
रामेश्वरम् के विख्यात मंदिर की स्थापना के बारें में यह रोचक कथाऐ कही जाती है। सीताजी को छुड़ाने के लिए राम ने लंका पर चढ़ाई की थी। श्री राम ने, युद्ध कार्य में सफलता ओर विजय के पश्र्चात कृतज्ञता हेतु भगवान राम के आराध्य भगवान शिव की आराधना के लिए समुद्र किनारे की रेत से शिवलिंग का अपने हाथों से निर्माण करने के पश्चात भगवान शिव सव्यम् ज्योति स्वरुप प्रकट हुए ओर उन्होंने इस लिंग को श्री रामेश्वरम की उपमा दी। इस युद्ध में रावण के साथ, उसका पुरा राक्षस वंश समाप्त हो गया और अन्ततः सीताजी को मुक्त कराकर श्रीराम वापस लौटे। रावण साधारण राक्षस नहीं था। वह महर्षि पुलस्त्य का वंशज ओर वेदों का ज्ञानी ओर शिवजी का बड़ा भक्त भी । श्रीराम को उसे मारने के बाद बड़ा खेद हुआ। ब्रह्मा-हत्या के पाप प्रायस्चित के लिए श्री राम ने युुद्ध विजय पश्र्चात भी यहां रामेश्वरम् जाकर पुुुजन किया।शिवलिंग की स्थापना करने के पश्र्चात, इस लिंंग को काशी विश्वनाथ के समान मान्यता देनेे हेतु, उन्होंनेे हनुमानजी को काशी से एक शिवलिंग लाने कहा।हनुमान पवन-सुत थे। बड़े वेग से आकाश मार्ग से चल पड़े और शिवलिंग लेे आए। यह देखकर राम बहुत प्रसन्न हुए और रामेश्वर ज्योतिलििंंग के साथ काशी के लिंंग कि  स्थापना कर दी। हनुमान जी द्वारा लाये गए  स्थापित  शिवलिंग रामनाथ स्वामी  है।  भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया में सेतुबंध तथा रामेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग  का वर्णन किया जाता है। राम के बनाए गए सेतु का उल्लेख  श्री राम के नल सेतु का कालिदास की रघुवंश और  पुराणों में  श्रीरामसेतु  है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में राम सेतु कहा गया है।नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए  धनुषकोडि से जाफना तक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, रामसेतु के नाम से जाना जाता है।  पुल को एडम्स ब्रिज का नाम मिला। राम  सेतु  लंबाई १०० योजन व चौड़ाई १० योजन थी। इसे बनाने में नाल और नील की  उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था
रामेश्वरम् शहर और रामनाथजी का प्रसिद्ध मंदिर टापू के उत्तर के छोर पर है। टापू के दक्षिणी कोने में धनुषकोटि  तीर्थ  हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी स्थल पर  है। इसी स्थान को सेतुबंध कहते है। राम सेतु   के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है। पंबन से प्रारंभ होने वाली धनुषकोडी रेल लाइन 1964 के तूफान में नष्‍ट हो गया था और 100 से अधिक यात्रियों वाली रेलगाड़ी समुद में डूब गई थी। 1964 का चक्रवात   हालांकि रामेश्‍वरम और धनुषकोडी के बीच एक रेलवे लाहन थी और एक यात्री रेलगाड़ी नियमित रूप से चलती थी, तूफान के बाद रेल की पटारियां क्षतिग्रस्‍त हो गईं और कालांतर में, बालू के टीलों से ढ़क गईं । और इस प्रकार विलुप्‍त हो गई। कोई व्‍यक्ति धनुषकोडी या तो बालू के टीलों पर समुद तट के किनारे से पैदल, मछुआरों की जीप या टेम्‍पो से पहुंच सकते है। भगवान राम से संबंधित यहां कई मंदिर हैं। यह सलाह दी जाती है कि गांव में समूहों में दिन के दौरान जाएं और सूर्यास्‍त से पहले रामेश्‍वरम लौट आएं क्‍योंकि पूरा 15 किमी का रास्‍ता सुनसान और रहस्‍यमय है! धनुष कोटि  में हम भारतीय महासागर के गहरे और उथले पानी को बंगाल की खाड़ी के छिछले और शांत पानी से मिलते हुए देख सकता है। चूंकि समुद यहां छिछला है, तो आप बंगाल की खाड़ी में जा सकते हैं और रंगीन मूंगों, मछलियों, समुद्री शैवाल, स्टार मछलियों और समुद्र ककड़ी आदि को देख सकते हैं । 
रामेश्वरम् शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन  पहाड़ी है। हनुमानजी ने गंध मैदान  पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बना हुआ है, जहां श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। इसे पादुका मंदिर कहते हैं । राम ने सीता जी की प्यास बुझाने के लिए धनुष की नोंक से कुआं खोदा था, तो कहीं पर उन्होनें सेनानायकों से सलाह की थी। सीताजी ने अग्नि-प्रवेश किया था , किसी अन्य स्थान पर श्रीराम ने जटाओं से मुक्ति पायी थी।  राम-सेतु के निर्माण में लगे पत्थर पानी पर तैरते हैं।  नल-नील नामक  ने उनको मिले वरदान के कारण जिस पाषाण शिला को छूआ, वो पानी पर तैरने लगी और सेतु के काम आयी। रामेश्वर  मंदिर में जिस प्रकार शिवजी की दो शिवलिङ्ग और माता  पार्वती की मूर्तियां अलग-अलग स्थापित की गई है। देवी की एक मूर्ति पर्वतवर्द्धिनी तथा दूसरी विशालाक्षी है । मंदिर के पूर्व द्वार के बाहर हनुमान की एक विशाल मूर्ति अलग मंदिर में स्थापित है। रामेश्वरम् का मंदिर है तो शिवजी का, परन्तु उसके अंदर कई अन्य मंदिर भी है। सेतुमाधव का कहलानेवाले भगवान विष्णु का मंदिर इनमें प्रमुख है।
रामनाथ के मंदिर के अंदर और परिसर में अनेक पवित्र तीर्थ है। ‘कोटि तीर्थ’ जैसे एक दो तालाब भी है। रामनाथ स्वामी मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां स्थित अग्नि तीर्थम में जो भी श्रद्धालु स्नान करते है उनके सारे पाप धुल जाते हैं। इस तीर्थम से निकलने वाले पानी को चमत्कारिक गुणों से युक्त माना जाता है। यह 274 पादल पत्र स्थलम् में से एक है, जहाँ तीनो श्रद्धेय नारायण अप्पर, सुन्दरर और तिरुग्नना सम्बंदर ने अपने गीतों से मंदिर को जागृत किया था। जो शैव, वैष्णव और समर्थ लोगो के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। भारत के तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम द्वीप पर और इसके आस-पास कुल मिलाकर 64 तीर्थ है। स्कंद पुराण के अनुसार, इनमे से 24 ही महत्वपूर्ण तीर्थ है। इनमे से 22 तीर्थ तो केवल रामानाथस्वामी मंदिर के भीतर ही है। 22 संख्या को भगवान की 22 तीर तरकशो के समान माना गया है। मंदिर के पहले और सबसे मुख्य तीर्थ को अग्नि तीर्थं नाम दिया गया है। इन तीर्थो में स्नान करना बड़ा फलदायक पाप-निवारक समझा जाता है। जिसमें श्रद्धालु पूजा से पहले स्नान करते हैं। हालांकि ऐसा करना अनिवार्य नहीं है।
रामेश्वरम के इन तीर्थो में नहाना काफी शुभ माना जाता है और इन तीर्थो को भी प्राचीन समय से काफी प्रसिद्ध माना गया है। वैज्ञानिक का कहना है कि इन तीर्थो में अलग-अलग धातुएं मिली हुई है। इस कारण उनमें नहाने से शरीर के रोग दूर हो जाते है और नई ताकत आ जाती है। रामेश्वरम् के मंदिर के बाहर भी दूर-दूर तक कई तीर्थ है। प्रत्येक तीर्थ के बारें में अलग-अलग कथाएं है। यहां से करीब तीन मील पूर्व में एक गांव है, जिसका नाम तंगचिमडम है। यह गांव रेल मार्ग के किनारे हो बसा है। वहां स्टेशन के पास समुद्र में एक तीर्थकुंड है, जो विल्लूरणि तीर्थ कहलाता है। समुद्र के खारे पानी बीच में से मीठा जल निकलता है, यह बड़े ही अचंभे की बात है। कहा जाता है कि एक बार सीताजी को बड़ी प्यास लगी। पास में समुद्र को छोड़कर और कहीं पानी न था, इसलिए राम ने अपने धनुष की नोक से यह कुंड खोदा था। तंगचिडम स्टेशन के पास एक जीर्ण मंदिर है। उसे ‘एकांत’ राम का मंदिर कहते है। इस मंदिर के अब जीर्ण-शीर्ण अवशेष ही बाकी हैं। रामनवमी के पर्व पर यहां कुछ रौनक रहती है। बाकी दिनों में बिलकुल सूना रहता है। मंदिर के अंदर श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान और सीता की बहुत ही सुंदर मूर्तिया है। धुर्नधारी राम की एक मूर्ति ऐसी बनाई गई है, मानो वह हाथ मिलाते हुए कोई गंभीर बात कर रहे हो। दूसरी मूर्ति में राम सीताजी की ओर देखकर मंद मुस्कान के साथ कुछ कह रहे है। ये दोनों मूर्तियां बड़ी मनोरम है। यहां सागर में लहरें बिल्कुल नहीं आतीं, इसलिए एकदम शांत रहता है। शायद इसीलिए इस स्थान का नाम एकांत राम है।
रामेश्वरम् के टापू के दक्षिण भाग में, समुद्र के किनारे, एक और दर्शनीय मंदिर है। यह मंदिर रमानाथ मंदिर से पांच मील दूर पर बना है। यह कोदंड ‘स्वामी का मंदिर’ कहलाता है। कहा जाता है कि विभीषण ने यहीं पर राम की शरण ली थी। रावण-वध के बाद राम ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक कराया था। इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां के साथ ही विभीषण की भी मूर्ति स्थापित है। रामेश्वरम् को घेरे हुए समुद्र में भी कई विशेष स्थान ऐसे बताये जाते है, जहां स्नान करना पाप-मोचक माना जाता है। रामनाथजी के मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने बना हुआ सीताकुंड इनमें मुख्य है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है, जहां सीताजी ने अपना सतीत्व सिद्व करने के लिए आग में प्रवेश किया था। सीताजी के ऐसा करते ही आग बुझ गई और अग्नि-कुंड से जल उमड़ आया। वही स्थान अब ‘सीताकुंड’ कहलाता है। यहां पर समुद्र का किनारा आधा गोलाकार है। सागर एकदम शांत है। रामेश्वरम् से सात मील दक्षिण में दर्भशयनम्’ पर राम ने  समुद्र में सेतु बांधना शुरू किया था।  राम सेतु  का वर्णन रामायण , रामचरितमानस , महाभारत,  कालीदास की रघुवंश और पुराणों में विवरण  है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका मे राम सेतु कहा गया है। नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। रामसेतु की लंबाई १०० योजन व चौड़ाई १० योजन थी। रामायण काल में श्री राम नाम के साथ, नाल और नील द्वारा उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था।रामेश्वरम् हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ शंख  द्वीप है। यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था। भगवान राम ने पहले सागर से प्रार्थना की, कार्य सिद्ध ना होने पर धनुष चढ़ाया, तो सागरदेव ने प्रकट होकर मार्ग दीया।इस लिए सागर एकदम शांत है। उसमें लहरें बहुत कम उठती है। इस कारण देखने में वह एक तालाब-सा लगता है। जिसपर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। यहां पर बिना किसी खतरें के स्नान किया जा सकता है। हनुमान कुंड में तैरते हुए पत्थर भी दिखाई देते हैं।  श्री राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर  सेतु तोड़ दिया था। ३० मील (४८ कि.मी) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं।रामेश्वर के समुद्र में तरह-तरह की कोड़ियां, शंख और सीपें मिलती है। कहीं-कहीं सफेद रंग का बड़ियास मूंगा मिलता है। रामेश्वरम् केवल धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से दर्शनीय है। रामेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग का उप लिंग जबलपुर जिले का रेवा  नदी के तट पर धारकुंडी पर्वत पर स्थित जाबालि ऋषि की गुफा में भगवान राम द्वारा शिव लीग स्थापि है । 1829 ई. में गुपेश्वर शिवलिंग की खोज की गई थी । धारकुंडी स्थल पर शरभंग ऋषि का आश्रम था । आर् रामचंद्रन की पुस्तक मिथ वी एस साइंस , अमेरिकी भू वैज्ञानिक , मूंगा कोरलतथा भारतीय बहु वैज्ञानिक  के अनुसार  रामसेतु का निर्माण 125 हजार वर्ष पूर्व बताई गई है । शास्त्रों के अनुसार भगवान राम द्वारा स्थापित  भगवान शिव का ज्योतिर्लिङ्ग  तथा राम सेतु का निर्माण त्रेतायुग में हुई थी । रामसेतु की लंबाई 100 योजन और चौड़ाई 10 योजन थी । रामेश्वरद्वीप को मन्नारद्वीप , रामरपालम कहा गया है ।
                                       
रामेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग
                                                 रामसेेतु

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