वेदों , पुरणों, उपनिषदों तथा वाङ्गमय साहित्य में पर्यावरण संरक्षण केआ उल्लेख किया गया है । शास्त्रों में पीपल , बरगद , आंवला , नीम , , केले , तुलसी , कर्मा , देवदार , चंदन आदि वृक्षों की प्रधानता दी गयी है । पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिये विश्व विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। पर्यावरण दिवस को 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद प्रारंभ किया गया था। 5 जून 1974 को प्रथम विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। विश्व पर्यावरण दिवस को संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में ईको डे , वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे ,डब्लू ई ड मानते है । वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव पर्यावरण विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन के दौरान विश्व पर्यावरण दिवस का सुझाव दिया गया । 5 जून 1974 से पर्यावरण दिवस मनाना प्रारंभ कर दिया गया। प्रत्येक वर्ष 143 देश के सरकारी, सामाजिक और व्यावसायिक लोग पर्यावरण की सुरक्षा, समस्या आदि विषय पर व्याख्यान करते हैं। पर्यावरण को सुधारने के लिए लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगरुकता हेतु संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस विश्व का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। पर्यावरण दिवस का उद्देश्य प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को परखना है। विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य पर भोपाल में स्थानी वृक्षों के बीज को मिट्टी की गेंद बना कर पुनर्रोपित करने की कार्यशाला प्रारम्भ की गई थी । 1974 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने केवल एक दुनियां , 1975 में बांग्लादेश का ढाका में मानव निपटान , 1976 में कनाडा में पानी: जीवन हेतु महत्वपूर्ण संसाधन , 1977 को बांग्ला देश में ओजोन परत पर्यावरण संबंधी चिंता; भूमि हानि और मृदा क्षरण , 1978 में बांग्लादेश द्वारा बिना विनाश के विकास तथा 1979 को हमारे बच्चों के लिए एक ही भविष्य है - बिना विनाश के विकास , 1980 नई सदी की नई चुनौती: बिना विनाश के विकास ,1981 में भूजल; मानव खाद्य श्रृंखला में जहरीले रसायन , 1982 को स्टॉकहोम में पर्यावरण संबंधी चिंता का नवीकरण , 1983 को बबांग्ला देश में खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान: अम्लीय वर्षा और ऊर्जा, 1984 को बांग्लादेश में बंजरता , 1985 में पाकिस्तान में युवा: जनसंख्या और पर्यावरण, 1986 को कनाडा में शांति के लिए एक पेड़ , 1987 को केन्या में पर्यावरण और शरण: एक छत से ज्यादा विषय पर विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया है ।
सच्चिदानन्द शिक्षा एवं समाज कल्याण संस्थान के सचिव साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि पर्यावरण 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का परिवेश है। पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों ,प्राणियों,और मानव तथा सजीवों और भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं । पर्यावरण में वायु ,जल ,भूमि ,पेड़-पौधे, जीव-जन्तु , मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम समावेश होता हैं। तंजानिया के उत्तरी भाग में सेरेन्गेटी सवाना मैदान में हाथी और ज़ेब्रा के लिए पर्यावरण के अनुकूल आवास बनाया गया है । विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा आविष्कारों की स्पर्धा के कारण मानव प्रकृति पर पूर्णतया विजय प्राप्त करने के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। वैज्ञानिक उपलब्धियों से मानव प्राकृतिक संतुलन को उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है। भूस्थल पर जनसंख्या की निरंतर वृद्धि , औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति से जहाँ प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त किया जा रहा है । प्रगति की दौड़ में आज का मानव इतना अंधा हो गया है कि वह अपनी सुख सुविधाओं के लिए करने को तैयार है।
पर्यावरण संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखकर सन् 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का 'पृथ्वी सम्मेलन' आयोजित किया गया है । सन् 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए विचार प्रकट हुए है । पर्यावरण के संरक्षण से धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है,अन्यथा धरती का जीवन-चक्र भी समाप्त हो जायेगा ।
पर्यावरण प्रदूषण के कुछ दूरगामी दुष्प्रभाव और घातक हैं । आणविक विस्फोटों से रेडियोधर्मिता का आनुवांशिक प्रभाव, वायुमण्डल का तापमान बढ़ना, ओजोन परत की हानि, भूक्षरण, संक्रमण आदि घातक दुष्प्रभाव हैं। प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव के रूप में जल, वायु तथा परिवेश का दूषित होना एवं वनस्पतियों का विनष्ट होना, मानव का रोगों से आक्रान्त होना आदि देखे जा रहे हैं। कारखानों से विषैला अपशिष्ट बाहर निकलने से तथा प्लास्टिक आदि के कचरे से प्रदूषण की मात्रा उत्तरोत्तर बढ़ रही है। विल्डरों द्वारा बड़े बड़े पैमाने पर मकान बनाये जाते परंतु वृक्ष नही लगाए जाते है । नदियों की स्थलों का अतिक्रमण , कचरे दाल काल नदियां प्रदूषित कर दिया जाता है । पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए ह मुख्य जरूरत ‘जल’ को प्रदूषण से बचाना होगा। कारखानों का गंदा पानी, घरेलू, गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल, सीवर लाइन का गंदा निष्कासित पानी समीपस्थ नदियों और समुद्र में गिरने से रोकना होगा। कारखानों के पानी में हानिकारक रासायनिक तत्व घुले रहने से नदियों के जल विषाक्त हो रहा हैं, परिणामस्वरूप जलचरों के जीवन को संकट का सामना करना पड़ता है। प्रदूषित पानी को सिंचाई के काम में लेते हैं जिसमें उपजाऊ भूमि विषैली हो जाती है। उगने वाली फसल व सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से रहित हो जाती हैं । जिनके सेवन से अवशिष्ट जीवननाशी रसायन मानव शरीर में पहुंच कर खून को विषैला बना देते हैं । वायु प्रदूषण ने पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। जल प्रदूषण के साथ वायु प्रदूषण मानव के सम्मुख एक चुनौती है। मानव विकास के मार्ग पर अग्रसर है परंतु वहीं बड़े-बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से लगातार उठने वाला धुआं, रेल व नाना प्रकार के डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के पाइपों से और इंजनों से निकलने वाली गैसें तथा धुआं, जलाने वाला हाइकोक, ए.सी., इन्वर्टर, जेनरेटर आदि से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड प्रति क्षण वायुमंडल में घुलते रहते हैं। वायु प्रदूषण सर्वव्यापक हो चुका है। पर्यावरण पर भविष्य आधारित है । महानगरों में नहीं बल्कि गाँवों में लोग ध्वनि विस्तारकों का प्रयोग करने लगे हैं। बच्चे के जन्म की खुशी, शादी-पार्टी सभी में डी.जे. एक आवश्यकता समझी जाने लगी है। मोटर साइकिल व वाहनों की चिल्ल-पों महानगरों के शोर को भी मुँह चिढ़ाती नजर आती है। औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के कोलाहल ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। इससे मानव की श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है। ध्वनि प्रदूषण का मस्तिष्क पर भी घातक प्रभाव पड़ता है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि तीनों ही हमारे व हमारे फूल जैसे बच्चों के स्वास्थ्य को चौपट कर रहे हैं। ऋतुचक्र का परिवर्तन, कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा का बढ़ता हिमखंड को पिघला रहा है। सुनामी, बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि या अनावृष्टि जैसे दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखते हुए अपने बेहतर कल के लिए ‘5 जून’ को समस्त विश्व में ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है ।‘पौधा लगाने से पहले वह जगह तैयार करना आवश्यक है जहां वह विकसित व बड़ा होगा।’उपर्युक्त सभी प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए यदि थोड़ा सा भी उचित दिशा में प्रयास करें तो बचा सकते हैं अपना पर्यावरण। सर्वप्रथम हमें जनाधिक्य को नियंत्रित करना होगा। दूसरे जंगलों व पहाड़ों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए। देखने में जाता है कि पहाड़ों पर रहने वाले लोग कई बार घरेलू ईंधन के लिए जंगलों से लकड़ी काटकर इस्तेमाल करते हैं जिससे पूरे के पूरे जंगल स्वाहा हो जाते हैं। कहने का तात्पर्य है जो छोटे-छोटे व बहुत कम आबादी वाले गांव हैं उन्हें पहाड़ों पर सड़क, बिजली-पानी जैसे सुविधाएं मुहैया कराने से बेहतर है उन्हें प्लेन में विस्थापित करें। इससे पहाड़ व जंगल कटान कम होगा, साथ ही पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। 5 जून 2021 को विश्व पर्यावरण दिवस का यू एन ई पी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 'पर्यावरण पुनरुत्थान' (इकोसिस्टम रीस्टोरेशन) घोषित थीम है ।
विश्व के कुल क्षेत्रफल का 2.4% पर दुनिया की जनसंख्या का 17.5% पोषण करने वाला भारत पर्यावरणीय मुद्दों का प्रबन्धन है | ईंधन के लिए लकड़ी और कृषि भूमि के विस्तार के लिए हो रही वनों की कटाई के कारण भारत में वन क्षेत्र मात्र 18.34% (637,000 वर्ग किमी) है, । देश के वनों का 25.7% महत्त्वपूर्ण भाग पूर्वोत्तर राज्यों में जंगल तेजी से नष्ट हो रहा है | भारत सरकार पर्यावरणीय गुणवत्ता को बेहतर करने के प्रयास कर रही है | जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखकर 1963 में एक गठित कमेटी ने जल प्रदूषण और निवारण हेतु कानून बनाने की सलाह दी, तत्पश्चात ‘’घरेलू तथा औद्योगिक बहिस्राव जल में नहीं मिलने दिया जाय । पीने के पानी के स्रोत, कृषि उपयोग तथा मत्स्य जीवन के पोषण के योग्य हो’’ के उद्देश्य से एक विधेयक वर्ष 1969 में तैयार किया गया | 30 नबम्बर, 1972 को संसद में प्रस्तुत विधेयक दोनों सदनों से पारित होकर 23 मार्च, 1974 को राष्ट्रपति से स्वीकृत हुआ है । जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण ) अधिनियम, 1974 कहलाया |जल प्रदूषण को रोकने में एक अन्य कानून जल (प्रदूषण और नियंत्रण ) अधिनियम, 1977 को राष्ट्रपति ने दिसम्बर, 1977 को मंजूरी प्रदान की। इस कानून के अंतर्गत जल प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्र तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को व्यापक अधिकार मिलता है वहीं जल प्रदूषित करने पर दंड का प्रावधान भी सुनिश्चित किया गया है।जल प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1974 तथा 1977, जल प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम हैं यह सरकार को अधिकार प्रदान करता है कि विषैले, नुकसानदेह और प्रदूषण फैलाने वाले कचरे को नदियों और अन्य जल प्रवाहों में फेंकने और प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित हो सके |बढ़ते औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण में निरंतर हो रहे वायु प्रदूषण और पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु वायु की गुणवत्ता और वायु प्रदूषण के नियंत्रण को ध्यान में रखने के लिए 29 मार्च, 1981 को यह अधिनियम परित हुआ और 16 मई, 1981 से लागू किया गया | अधिनियम में मुख्यत: मोटर-गाड़ियों और अन्य कारखानों से निकलने वाले धुएं और गंदगी का स्तर निर्धारित करने तथा उसे नियंत्रित करने का प्रावधान है, 1987 में इस अधिनियम में शोर प्रदूषण को भी शामिल किया गया |कृषि, उद्योगों और शहरीकरण से वनों का क्षरण हुआ, वनों के अत्यधिक कटने से वन्यजीव जंतुओं की कई प्रजातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं । वन्यजीवन में लुप्त होती प्रजातियों को बचाने के लिए सरकार ने सन 1952 में भारतीय वन्यजीवन बोर्ड का गठन किया | बोर्ड के अंतर्गत वन्य-जीवन पार्क और अभयारणय बनाए गए और 1972 में भारतीय वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम पारित किया गया | वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम, (1972) को अधिक व्यावहारिक व प्रभावी बनाने के लिए इसमें वर्ष 1986 तथा 1991 में संशोधन किए गये |आबादी बढ़ने तथा मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों का कटना स्वाभाविक है, किन्तु कुछ समय के लिए वनों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर पुन: पेड़-पौधे उगाने को समय देने के लिए भारत सरकार द्वारा 1980 में पारित अधिनियम वन संरक्षण अधिनियम का महत्वपूर्ण योगदान रहा | अधिनियम को अधिक प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिए इसमें वर्ष 1988 में संशोधन किया है।
संयुक्त राष्ट्र का प्रथम मानव पर्यावरण सम्मेलन (स्टाकहोम) 5 जून, 1972 से प्रभावित होकर भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया | मानव, प्राणियों, जीवों, पादपों को संकट से बचाना तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु सामान्य एवं व्यापक कानून का निर्माण करना साथ लागू कानूनों के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण सस्थानों का गठन कर तथा उनकी क्रियाविधि के मध्य समन्वय स्थापित करना सम्भव हुआ है ।
पर्यावरणीय नियमों की व्यापक आवश्यकता को देखते हुए पर्यावरण तथा वन मंत्रालय ने दिसम्बर 2004 को राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2004 का ड्राफ्ट जारी किया है, जिसके तहत पारित अधिनियम से पर्यावरणीय संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित हो सके |गत वर्षों में हो रहे क्लाइमेट चेंज के मामले पर भारत सरकार ने गम्भीर होते हुए पहल की और फ्रेश एयर, सेव वाटर, सेव एनर्जी, ग्रो मोर प्लांट्स, अर्बन ग्रीन जैसे कैम्पेन चलाने का निर्णय लिया, इन सभी कैंपेन का उद्देश्य वातावरण की रक्षा करना है । समाज के सभी को आपसी सहयोग कर पर्यावरण संरक्षण करने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए |विस्फोटक आबादी, भोगवादी संस्कृति, प्राकृतिक संसाधनों का अनवरत दोहन, युद्ध, परमाणु परीक्षण, औद्योगिक विकास के द्वारा उत्पन्न समस्याओं को रोकना वर्तमान मानव जाति का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिये, जिससे वाली पीढ़ी को संतुलित पर्यावरण कर सकें | नदियाँ का पानी , हवा , ध्वनि प्रदूषण का फैलाव होने से पर्यावरण असुरक्षित हो गया है । कल कारखाने , विल्डरों द्वारा बड़े बड़े मकान बनाये जा रहे है , वाहनों का विकास , ऊंची आवाज वाले लाउडस्पीकर , वृक्षों की अंधाधुंध कटाई , नदियों के स्थलों का अतिक्रमण से पर्यावरण को प्रदूषित के कारण अनेक संक्रमण से जूझ रहा है । प्रकृति द्वारा इंसान को उपभोग करने के लिए बहु स्थल पर दिया परंतु इंसान स्वार्थलोलुपता के कारण प्रकृति का कराए गए उपलब्ध को नष्ट करने पर उतर गया है । वृक्षारोपण , पौधरोपण , नदियों , तलाव के जल को , वायु और ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति होने पर इंसान को सुरक्षित रखने से पर्य वरण की सुरक्षा संभव है ।
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