भारतीय शास्त्रों तथा पुरणों में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग का उल्लेख कामना लिंग के रूप में किया गया है । झारखंड राज्य का संथालपरगना के तहत देवघर जिले के देवघर का चिताभूमि पर रावणेश्वर ( वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग ) "कामना लिंग" स्थापित हैं। देवघर का राजा पूरनमल द्वारा वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया था । लंका का राजा तथा राक्षस संस्कृति के प्रणेता रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर काटने को ही था कि शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये। भगवान शिव द्वारा रावण के दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा। रावण ने लंका में जाकर हिमालय में स्थित लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति देते हुए चेतावनी दी कि यदि मार्ग में शिवलिंग पृथ्वी पर रख देगा तब वह वहीं अचल हो जाएगा । रावण शिवलिंग लेकर चलने के मार्ग में देवघर स्थित चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को वैद्यनाथ बैजु को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। बैजु ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक वजन हान्रके के कारण चिताभूमि भूमि पर रख कर पूजन करने ल्यालगा था । रावण पूरी शक्ति लगाकर ज्योतिर्लिङ्ग को न उखाड़ सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया। इधर ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर चिताभूमि में स्थापित शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग को चले गये। ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है।
देवघर का शाब्दिक अर्थ है देवी-देवताओं का निवास स्थान। देवघर में बाबा भोलेनाथ का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है। सावन महीने में लाखों श्रद्धालु "बोल-बम!" "बोल-बम!" का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते है। श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं।
वैद्यनाथ मन्दिर के समीप शिवगंगा सरोवर स्थित है। वैद्यनाथ मन्दिर और माँ पार्वती मन्दिर से गठबंधन जुड़ा हुआ है। जरमुंडी में नाग वंश के प्रवर्त्तक वासुकी द्वारा स्थापित वासुकीनाथ
शिव मन्दिर के लिये जाना जाता है। वासुकीनाथ मन्दिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी के पास स्थित है। यहाँ पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इसके इतिहास का सम्बन्ध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है। वासुकिनाथ मन्दिर परिसर में कई मंदिर हैं।
बाबा बैद्यनाथ मन्दिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मन्दिर भी हैं। इन्हें बैजू मन्दिर है। वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। महाशिवरात्रि के दौरान बहुत-से श्रद्धालु सुल्तानगंज से कांवर में गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर पैदल चलकर और ‘बोल बम’ का जयघोष करते हुए वैद्यनाथधाम पहुंचते हैं सृष्टि और तीर्थ स्थल लिंगमय है ।भगवान शिव ने देव ,दानव, मानव , असुर और दैत्य और जीव जंतुओं सहित तीनों लोकों को लिंग रूप से व्याप्त कर रखा है ।शिव लिंग की पूजा और उपासना कर के मानव अवश्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है । भूतल पर संपूर्ण सिद्धियों का फल प्राप्ति के लिए ज्योतिर्लिंगों का स्मरण और उपासना आवश्यक है । शिवपुरण के कोटि रुद्र संहिता का अध्याय - 01 और लिंग पुराण के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंग का उल्लेख किया गया है । देवघर में प्राचीन काल मे नागवंशियों का शासन था । भगवान शिव द्वारा माता सती के शरीर का अंतिम संस्कार करने के कारण चिताभूमि के रूप में परिणत किया गया ।भगवान शिव और देवों का प्रिय स्थल प्रसिद्धि के कारण देवों ने निवास बनाया था । देवघर शक्ति पीठ , मनोकामना , कामना स्थल है ।
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