सोमवार, जून 07, 2021

ज्वाला शक्तिपीठ : शक्तिऔर ज्ञान की ज्योति...

 
        भारतीय संस्कृति और देवीभागवत , पुरणों , शास्त्रों में सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय के स्थल शक्ति पीठ का उल्लेख किया गया है । माता ज्वाला शक्तिपीठ को  धूमा देवी का स्थान कहा जाता है। माता सती की महाजिह्वा भगवान विष्णु जी के सुदर्शन चक्र से कट कर गिरी थी । ज्वाला माता मंदिर मे  नौ ज्योति रूपों में  महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, हिंगलाज भवानी, विंध्यवासिनी,अन्नपूर्णा, चण्डी देवी, अंजना देवी और अम्बिका देवी का दर्शन  है । ज्वाला देवी शक्तिपीठ की हिमाचल प्रदेश में अवस्थित ज्वाला  शक्तिपीठ है ।   हिमाचल पर राक्षसों का प्रभुत्व रहने के कारण  देवताओं में परेशानी होती थी ।  भगवान विष्णु के नेतृत्व में, देवताओं ने राक्षसों को  नष्ट करने का फैसला किया। भगवान विष्णु ने  अपनी ताकत पर ध्यान केंद्रित करने के कारण विशाल अग्नि की ज्योति जमीन से उठ गईं। अग्नि की ज्योति  से माता ज्वाला  ने जन्म लिया। माता ज्वाला  आदिशक्ति-प्रथम 'शक्ति'  है। सती के रूप में जानी जाने वाली, वह प्रजापति दक्ष के घर में पली-बढ़ी और बाद में, भगवान शिव की पत्नी बन गई। एक बार उसके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया सती को यह स्वीकार नहीं होने के कारण माता सती  खुद को हवन कुंड मे भस्म कर डाला। भगवान शिव ने अपनी पत्नी माता सती की मृत्यु के बारे में सुना टैब  भगवान शिव के क्रोध  का कोई ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने सती के शरीर को पकड़कर तीनों लोकों मे भ्रमण करना शुरू किया।   शिव के क्रोध के कारण देव गण कांप उठे और भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को चक्र के वार से खंडित कर दिया। जिन स्थानों पर ये टुकड़े गिरे, उन स्थानों पर इक्यावन पवित्र 'शक्तिपीठ' अस्तित्व में आए। "सती की जीभ ज्वालाजी (610 मीटर) हिमांचल पर गिरी थी और ज्वाला देवी ज्योति के रूप में प्रकट हुई। हिमांचल के  अमुक पर्वत से ज्वाला प्रकट प्रज्वलित होने के  बारे मे राजा भूमिचंद को जानकारी प्राप्त होने के बाद ज्वाला  भगवती का मंदिर का निर्माण किया था ।ज्वालामुखी युगों से एक तीर्थस्थल है। मुगल बादशाह अकबर ने एक बार आग की लपटों को एक लोहे की चादर से ढँकने का प्रयास किया और यहाँ तक कि उन्हें पानी से भी बुझाना चाहा। लेकिन ज्वाला की लपटों ने इन सभी प्रयासों को विफल कर दिया। तब अकबर ने तीर्थस्थल पर एक स्वर्ण छत्र भेंट किया और क्षमा याचना की। हालाँकि, देवी की सामने अभिमान भरे वचन बोलने के कारण ज्वाला देवी ने सोने के छत्र को एक विचित्र धातु में तब्दील कर दिया है। बादशाह अकबर ने इस घटना के बाद देवी में उनका विश्वास और अधिक मजबूत हुआ था ।
मां ज्वाला के 51 शक्तिपीठों में  ज्वालामुखी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। ज्वाला मंदिर को जोता वाली मंदिर कहा गया है । शाक्त सम्प्रदाय के ग्रंथों के अनुसार अमुक पर्वत के  स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। अमुक  स्थल पर  ज्वाला के रूप में विराजमान और उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं। ज्वाला मंदिर में   9 ज्वालाओ की उपासना  होती  है । भू-वैज्ञानिक ने  खुदाई करने के बाद यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है।  ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं  माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक हैं। मंदिर में बड़ी ज्वाला को ज्वाला देवी   और अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में  मां अन्नपूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज माता, देवी मां सरस्वती, मां अम्बिका देवी एवं मां अंजी देवी हैं। मां ज्वाला देवी के मंदिर का निर्माण सबसे पहले राजा भूमि चंद ने करवाया था। 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने इसका पुननिर्माण करवाया था। ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान मंदिर की ज्वाला जानने के लिए जमीन के नीचे दबी ऊर्जा का पता लगाने के लिए काफी कोशिश की गई लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा है । शास्त्रों के अनुसार, भक्त गोरखनाथ मां ज्वाला देवी के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा भक्ति में लीन रहते थे। एकबार भूख लगने पर गोरखनाथ ने मां से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं मीक्षा मांगकर आता हूं। जब गोरखनाथ मिक्षा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आया।  ज्वाला माता द्वारा निर्मित गर्मकुंड  को गोरखनाथ की डिब्बी  कहा जाता है। कलियुग के अंत में गोरखनाथ मंदिर वापस लौटकर आएंगे और तब तक ज्वाला जलती रहेगी।बादशाह अकबर ने मंदिर की ज्वाला के बारे में सुना तो उसने अपनी सेना बुलाकर इस ज्वाला को बुझाने के लिए कई बार कोशिश की लेकिन  मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाया। अकवर द्वारा निर्मित  नहर मंदिर की बायीं  है । बाद में वह मां के इस चमत्कार को देखकर नतमस्तक हो गया और सवा मन के सोने का छत्र चढ़ाने पहुंचा लेकिन माता ने उसे स्वीकार नहीं किया और वह गिरकर किसी अन्य धातु में बदल गया है ।, ध्यानू भगत ने अपनी भक्ति सिद्ध करने के लिए अपना शीश मां को चढ़ा दिया था। ज्वाला माता का भक्त ध्यानू भगत की श्रद्धा और भक्ति से माता ज्वाला द्वारा प्रसन्न होने पर ध्यानू को वरदान दी गयी थी । ज्वाला मंदिर में नव शक्ति की ज्योति का दर्शन तथा उपासना से मनोवांक्षित फल की प्राप्ति होती है । हिमाचल प्रदेश का कांगड़ा जिले और उन्नाव जिले

       

     

सीमा पर ज्वालामुखी स्थान पर माता ज्वाला मंदिर स्थित है । कांगडा का ढूँढ़ेश्वर शिव की दिव्य शक्ति  है ।  हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा  जिले में नेकेड खड्ड के तट पर कसेटी   का गांव स्थित नोकेड खोड़ कलुसल्वी में   ज्वाला देवी शक्तिपीठ है ।

                

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