मंगलवार, जून 08, 2021

मंगला शक्तिपीठ : पोषण और मंगल कामना स्थल...

    
सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय के देवी भागवत , मार्कण्डेय पुराण ,वायु , पद्म , अग्नि पुरणों और शास्त्रों में मंगला शक्तिपीठ का उलेख किया गया है ।  गया के ब्रह्मयोनि पर्वत समूह की भस्मगिरि की चोटी पर माता सती की स्तनों के गिरने के कारण पोषाहार की देवी मंगला शक्तिपीठ कहा गया है । का गया जिले के  गया में स्थित ब्रह्मयोनि पर्वत समूह की भस्मगिरि पर्वत की 440 फीट 134 मीटर की ऊँचाई के श्रंखला पर मंगलागौरी  शक्तिपीठ है। भस्मगिरि गिरि का गुफा युक्त में मंगलागौरी मंदिर के गर्भगृह में माता सती की स्तन की उपासना की जाती है । गर्भगृह में मंगला देवी का स्तन  प्रतीक स्थापित और प्राचीन नक्काशीदार मूर्तियां तथा अखंड ज्योति प्रज्वलित हैं। मंदिर के सामने एक छोटा हॉल या मंडप खड़ा है। आंगन में घर के लिए एक अग्नि कुंड  है। मंदिर परिसर में मां काली, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और भगवान शिव के मंदिर हैं।  पुराण के अनुसार; देवी सती का स्तन मंदिर के स्थान पर गिरा; जब  भगवान शिव द्वारा संसार को नष्ट करने से रोकने के लिए देवताओं द्वारा खंडित किया गया था। यहां जिस आकृति की पूजा की जाती है वह चट्टान का एक टुकड़ा  पूरी दुनिया में मौजूद सभी रचनाओं के लिए  स्तन का प्रतीक है। मंदिर में अखंड ज्योत जलाने वाली ज्योति मंदिर के अंदर के स्वरूप को रोशन करती है। प्राकृतिक गुफा युक्त  मंगलगौरी मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं है । मंगला गौरी व्रत श्रावण मास के मंगलवार को देवी सती की विशेष पूजा की जाती है। मंगला गौरी का व्रत करने से विवाह और वैवाहिक जीवन की हर समस्या दूर होती  है । मंगल दोष की समस्या से छुटकारा पाने के लिए मंगलागौरी की उपासना मंगलवार को करने से  अत्यधिक लाभदायी  है । पति की लंबी आयु के लिए भी मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है । मां मंगला गौरी की उपासना से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा होती है । मंगला गौरी का व्रत करने से विवाह और वैवाहिक जीवन की हर समस्या दूर की जाती है । ग्रंथों के अनुसार  धर्मपाल  के पास धन की कोई कमी नहीं  लेकिन संतान नही रहने के कारण दुःखी रहता था ।गया के सेठ धर्मपाल ने  गुरु के परामर्श के अनुसार,  माता मंगलागौरी की श्रद्धा पूर्वक पूजा उपासना की थी । धरपाल की तपस्या और उपासना से प्रसन्न होकर माता मंगलागौरी ने उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया, लेकिन संतान अल्पायु होगी । माता मंगलागौरी के वरदान के कारण धर्मपाल की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया । सेठ  धर्मपाल ने ज्योतिषी को बुलाकर पुत्र का नामांकरण करवाया और उन्हें माता मंगलागौरी  की भविष्यवाणी के बारे में बताया । ज्योतिषी ने धर्मपाल को राय दी कि वह अपने पुत्र की शादी उस कन्या से कराए जो मंगला गौरी व्रत करती है । मंगला गौरी व्रत के पुण्य प्रताप से आपका पुत्र दीर्घायु होगा । मंगला व्रत महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और पुत्र प्राप्ति के लिए करती हैं । सेठ धर्मपाल ने अपने इकलौते पुत्र का विवाह मंगला गौरी व्रत रखने वाली एक कन्या से करवा दिया । कन्या के पुण्य प्रताप से धर्मपाल का पुत्र मृत्यु पाश से मुक्त हो गया. तभी से मां मंगला गौरी के व्रत करने की परंपरा प्रारम्भ है । 
मंगला गौरी स्तोत्र -ॐ रक्ष-रक्ष जगन्माते देवि मङ्गल चण्डिके ।हारिके विपदार्राशे हर्षमंगल कारिके ।हर्षमंगल दक्षे च हर्षमंगल दायिके ।शुभेमंगल दक्षे च शुभेमंगल चंडिके. ।मंगले मंगलार्हे च सर्वमंगल मंगले ।सता मंगल दे देवि सर्वेषां मंगलालये ।पूज्ये मंगलवारे च मंगलाभिष्ट देवते ।पूज्ये मंगल भूपस्य मनुवंशस्य संततम् ।मंगला धिस्ठात देवि मंगलाञ्च मंगले ।संसार मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् ।देव्याश्च मंगलंस्तोत्रं यः श्रृणोति समाहितः ।प्रति मंगलवारे च पूज्ये मंगल सुख-प्रदे ।तन्मंगलं भवेतस्य न भवेन्तद्-मंगलम् ।वर्धते पुत्र-पौत्रश्च मंगलञ्च दिने-दिने ।मामरक्ष रक्ष-रक्ष ॐ मंगल मंगले । ।..इति मंगलागौरी स्तोत्रं सम्पूर्णं : ।। मंगला गौरी व्रत की आरती - जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता  । ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता । जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता ।अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग । जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता ।।सिंह को वाहन साजे कुंडल है, साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था ।सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता ।शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता ।सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता ।देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता ।मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता सदा सुख संपति पाता । । भस्मगिरि की 440 फीट की ऊँचाई पर 1300 ई. में निर्मित मंगलागौरी मंदिर मंगलकामना सिद्ध पीठ है । भस्मगिरि को मंगलागौरी गिरि तथा  मंगला गिरि , मंगल गिरि और मंगलागौरी पहाड़ के नाम से जाना जाता है । कीकट प्रदेश का असुरसंस्कृति के पोषक गया नगर का संस्थापक राजा गय का प्रिय आराध्या मां मंगलागौरी थी । पाण्डव पुत्र भीम का प्रिय स्थल था । मंगलागौरी मंदिर का माधव गिरि बाबा डंडी स्वामी द्वारा  15 वीं शताब्दी में जीर्णोद्धार कराया गया था । मंगलागौरी शक्तिपीठ के गया के रक्षक गया के गोदावरी में भैरव देव स्थापित है । गया के गोदावरी में भैरव मंदिर का निर्माण 7 21  ई. अर्थात 1300 वर्ष पूर्व में कई गयी थी । भैरव नाथ मंदिर में अगहन कृष्ण अष्टमी को भैरव नातन की पूजा होती है । पांडव पुत्र भीम द्वारा मंगलागौरी के परिसर में अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिये पिंड अर्पित करने के कारण भीम वेदी के रूप में ख्याति अर्जित किया गया था । माता मंगलागौरी की आराधना करने और मंगलवार को पूजन , उपासना से मनोवांक्षित फल की प्राप्ति होती है ।  शाक्त सम्प्रदाय की सांस्कृतिक विरासत मंगलागौरी स्थल है । गया मैन माता बांग्ला , माता बागेश्वरी , माता शीतला , माता काली मंदिर है । 





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